देश में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल पर जोर...तो आगे चलकर बिजली, हवा और गैस से चलेंगी गाड़ियां?

Update: 2022-04-14 12:02 GMT

नई दिल्ली: 'पेट्रोलियम के भंडार सीमित हैं. एक न एक दिन ये खत्म हो जाएंगे. इसलिए इन्हें बचाकर रखना जरूरी है.' पर्यावरण की पढ़ाई करते वक्त ये बात बचपन में हम सबने पढ़ी होगी. इसके साथ ही ये भी पढ़ा होगा कि पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियां वायु प्रदूषण बढ़ाती हैं.

पेट्रोल और डीजल के सीमित भंडार होने और वायु प्रदूषण फैलाने में इनके योगदान के कारण अब इनके विकल्पों को भी तलाशा जा रहा है. भारत समेत दुनियाभर में अब दूसरे उपाय ढूंढे जा रहे हैं. कई उपाय ढूंढ भी लिए गए हैं और कइयों पर रिसर्च जारी है.
भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 1950-51 में देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत 3.5 लाख मीट्रिक टन थी, जो 2021-22 में बढ़कर 20.27 करोड़ मीट्रिक टन हो गई. वहीं, अगर बात सिर्फ पेट्रोल और डीजल की खपत की बात करें तो 2021-22 में पेट्रोल की 308 लाख मीट्रिक टन और डीजल की खपत 766 लाख मीट्रिक टन रही. हर साल सबसे ज्यादा पेट्रोल-डीजल की खपत करने के मामले में भारत, अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर है.
भारत के लिए पेट्रोल और डीजल के लिए दूसरे विकल्प तलाशना इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि हमारी जरूरत का 85% कच्चा तेल बाहर से आता है. सरकार के मुताबिक, पिछले साल अप्रैल से दिसंबर तक कच्चा तेल खरीदने के लिए 1.31 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का खर्च हुआ है. पेट्रोलियम मंत्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि अगर पेट्रोलियम उत्पादों को बचाकर नहीं रखा गया तो आने वाले समय में भारत की हालत बद से बदतर हो सकती है.
पेट्रोल-डीजल जैसे पेट्रोलियम उत्पादों को जीवाश्म या जैविक ईंधन कहा जाता है. इन्हें जीवाश्म ईंधन इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और समुद्री जीवों के अवशेषों के करोड़ों सालों तक धरती या महासागरों में दबे रहने के बाद बने हैं. ऐसे ईंधन के साथ एक दिक्कत ये है कि इससे बहुत ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड निकलती है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है.
2015 में पेरिस समझौते पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते के तहत, 2030 तक भारत ने कार्बन उत्सर्जन में 33 से 35 फीसदी तक की कमी लाने का टारगेट रखा है. सड़क-परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले साल न्यूज एजेंसी से बात करते हुए कहा था कि 2030 तक भारत में हर साल बिकने वाली कारों में 30% इलेक्ट्रिक होंगी, जबकि बाइक और स्कूटर के मामले में ये 40% होगा.
नितिन गडकरी ने पिछले साल दिसंबर में बताया था कि उन्होंने ऑटो कंपनियों को अगले 6 महीने में फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल और फ्लेक्स फ्यूल स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इलेक्ट्रिक व्हीकल का प्रोडक्शन शुरू करने को कहा है. फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल इस तरह के व्हीकल होते हैं जिन्हें अलग-अलग ईंधनों पर चलाया जा सकता है. इन्हें पेट्रोल-डीजल के अलावा और दूसरे ईंधन पर भी चलाया जा सकता है.
भारत में इथेनॉल और मिथेनॉल से ईंधन बनाने पर काम चल रहा है. इथेनॉल और मिथेनॉल को वैकल्पिक ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. पेट्रोल और डीजल वाली गाड़ियों में ही अगर फ्लेक्स फ्यूल इंजन लगाए जाने लगें, तो उन्हें पेट्रोल और डीजल के अलावा इथेनॉल या मिथेनॉल से भी चलाया जा सकता है.
भविष्य में क्या-क्या बन सकता है पेट्रोल-डीजल का विकल्प?
- इथेनॉलः इसे गन्ने और मक्के से तैयार किया जाता है. इथेनॉल से पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता तो कम होगी ही, साथ ही ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा. भारत में इथेनॉल पेट्रोल-डीजल का विकल्प इसलिए बन सकता है, क्योंकि हमारे यहां गन्ने और मक्के का उत्पादन अच्छा होता है. इससे किसानों की भी कमाई बढ़ेगी. अमेरिका में 2001 से ही इथेनॉल ईंधन का इस्तेमाल हो रहा है. इसकी कीमत पेट्रोल-डीजल की तुलना में लगभग 40% कम होती है. इतना ही नहीं, इथेनॉल ईंधन पर गाड़ियां चलाने पर कोई दिक्कत भी नहीं आती. भारत ने पेट्रोल में 2025 तक 20 फीसदी इथेनॉल को मिलाने का टारगेट रखा है.
- इलेक्ट्रिकः अब बिजली से भी गाड़ियां चलाई जा रहीं हैं. अमेरिका समेत कई विकसित देशों में इलेक्ट्रिक गाड़ियों का इस्तेमाल बहुत होता है. लेकिन अब भारत में भी इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री लगातार बढ़ रही है. पेट्रोल-डीजल की तुलना में इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चलाने में खर्चा कम आता है. हालांकि, ऐसी गाड़ियों की कीमत ज्यादा होती है. अभी देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या 10.60 लाख से ज्यादा है. हालांकि, इनमें से ज्यादातर टू-व्हीलर और थ्री-व्हीलर हैं. इलेक्ट्रिक कारों की संख्या महज 27,930 है.
- बायोडीजलः इसे वेजिटेबल ऑयल और जानवरों के फैट से निकलने वाले तेल से बनाया जाता है. बायोडीजल की खास बात ये है कि इससे बहुत ही कम धुआं निकलता है, जिससे बहुत ज्यादा प्रदूषण नहीं होता. बायोडीजल को शुद्ध रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है या कुछ डीजल में मिलाकर भी. लोकसभा में सरकार ने बताया था कि अभी डीजल में बायोडीजल को सिर्फ 0.1% मिलाया जाता है. सरकार ने 2030 तक डीजल में 30 फीसदी तक बायोडीजल मिलाने का टारगेट सेट किया है.
- नेचुरल गैसः ये भी एक तरह का जीवाश्म ईंधन है, जिसमें ज्यादातर मीथेन गैस होती है. इसे कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) और लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इनकी कीमत भी पेट्रोल-डीजल की तुलना में काफी कम होती है. भारत में CNG गाड़ियों का इस्तेमाल तो शुरू हो गया है, लेकिन LNG पर अभी काम चल रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, इस समय देश में 40 लाख से ज्यादा CNG गाड़ियां हैं. सरकार का कहना है कि वो अभी देश में LNG स्टेशन बनाने की पहल कर रही है.
- एलपीजीः अभी हमारे घरों में जो खाना पकाने में जो गैस इस्तेमाल होती है, उसे लिक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG) कहा जाता है. अब LPG को भी पेट्रोल-डीजल का विकल्प माना जा रहा है. अमेरिका में LPG पर गाड़ियां चलने भी लगी हैं. हालांकि, अभी LPG स्टेशन की संख्या कम है. भारत में भी LPG गाड़ियों का इस्तेमाल हो रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, देश में लगभग 25 लाख गाड़ियां ऐसी हैं जो LPG पर चलती हैं. दक्षिण भारत में ज्यादातर ऑटो LPG पर शिफ्ट हो रहे हैं.
- हाइड्रोजनः ये भी भविष्य का ईंधन है. हाइड्रोजन पर चलने वाली गाड़ियों में हाइड्रोजन फ्यूल सेल लगे होते हैं. ये फ्यूल सेल हवा में मौजूद ऑक्सीजन से केमिकल रिएक्शन करके बिजली पैदा करते हैं. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के केमिकल रिएक्शन के बाद जो पानी बनता है, वह गाड़ी के साइलेंसर से धुंए की जगह बाहर निकल जाता है. इसकी खास बात ये है कि ये वातावरण में प्रदूषण बिल्कुल भी नहीं बढ़ाती है. हाल ही में नितिन गडकरी देश की पहली हाइड्रोजन कार लेकर संसद पहुंचे थे.
- मिथेनॉलः इथेनॉल के अलावा दुनियाभर में मिथेनॉल को भी वैकल्पिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने पर काम चल रहा है. मिथेनॉल की खास बात ये है कि ये पेट्रोल और डीजल दोनों को ही रिप्लेस कर सकता है. इसे पेट्रोल या डीजल में थोड़ी मात्रा में मिलाकर भी इस्तेमाल किया जा सकता है और 100% भी इस्तेमाल हो सकता है. मिथेनॉल से भी प्रदूषण कम करने में मदद करेगी. देश में अभी इथेनॉल मिश्रित ईंधन का इस्तेमाल तो होने लगा है, लेकिन मिथेनॉल पर काम चल रहा है.
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