सड़क किनारे चाय बेच रहा है ये क्रिकेटर, कभी सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली जैसे दिग्गज के साथ था उठना बैठना
वो कभी नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) में सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज खिलाड़ियों के साथ रहा. असम के सिलचर का ये क्रिकेटर आज सड़क किनारे स्थित स्टाल पर चाय, दालपूरी बेचने के लिए मजबूर है. बात हो रही है प्रकाश भगत की. बाएं हाथ के इस स्पिनर ने बिहार के खिलाफ अंडर-17 विजय मर्चेंट ट्रॉफी मैच में एक हैट्रिक समेत 7 विकेट चटकाए थे, इसी से इसकी प्रतिभा का पता चलता है. प्रकाश ने रणजी ट्रॉफी में भी असम का प्रतिनिधित्व किया. इन दिनों उसके रूटीन में सिलचर में मां के साथ सड़क किनारे स्टाल पर बैठना शामिल है.
आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक सिलचर के इटाखोला इलाके में रहने वाले 34 साल के प्रकाश ने बचपन से ही क्रिकेट में करियर बनाने और एक दिन भारत के लिए खेलने का सपना देखा था. परिवार की खस्ता माली हालत के बावजूद प्रकाश अपने टैलेंट और लगन के दम पर राज्य स्तर का क्रिकेटर बना और रणजी, विजय मर्चेंट ट्रॉफी के मैचों में खेला.
2002-03 में न्यूजीलैंड दौरे से पहले टीम इंडिया तैयारियों में जुटी थी. तब प्रकाश को बेंगलुरु स्थित नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) से बुलावा आया. ये बुलावा पाकर प्रकाश को सुखद हैरानी हुई. वो बड़ी उम्मीदों के साथ बेंगलुरु के लिए रवाना हुआ. उस वक्त न्यूजीलैंड की टीम के स्पिनर डेनियल वेटोरी की पूरी दुनिया में तूती बोलती थी. टीम इंडिया के तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली और टीम के बाकी सदस्य वेटोरी की बोलिंग का सामना करने के लिए तैयारी कर रहे थे. गांगुली चाहते थे कि टीम के प्रमुख बैट्समैन लेफ्ट हैंड स्पिनर्स की बोलिंग का सामना करने की अधिक से अधिक प्रैक्टिस करें क्योंकि वेटोरी इसी तरह के बॉलर थे.
उस वक्त प्रकाश ने नेशनल क्रिकेट एकेडमी में सौरव गांगुली और अन्य बैट्समैन को नेट्स पर प्रैक्टिस कराई थी. प्रकाश उन दिनों को याद करते हुए कहते है, उस वक्त मैं अंडर-17 प्लेयर था, मैं सौरव गांगुली, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण से मिला था. नेट्स प्रैक्टिस के दौरान गांगुली को मैंने बोलिंग भी की थी.'
प्रकाश के मुताबिक उनके क्रिकेट करियर की शुरुआत 1999 में सिलचर से हुई और उन्होंने जिला टीम की नुमाइंदगी की. 2007 में सिलचर की टीम नुरुद्दीन ट्रॉफी इंटर डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट चैम्पियनशिप की विजेता बनी. रणजी ट्रॉफी में दो सीजन के लिए असम की टीम की ओर से खेला. प्रकाश ने 2009 से 2011 तक असम के लिए दो सीजन में रणजी ट्रॉफी मैच खेले.
घर में पिता के देहांत के बाद हालात बदल गए. परिवार की जिम्मेदारी प्रकाश के सिर पर आ गई. प्रकाश के सामने दो ही विकल्प थे क्रिकेट खेलना जारी रखे या परिवार की जिम्मेदारी उठाए. प्रकाश के मुताबिक एक ही वक्त में ये दोनों चीजें करना उसके लिए मुमकिन नहीं था. क्रिकेट में करियर के लिए रेग्युलर प्रैक्टिस बहुत जरूरी है. प्रकाश का कहना है कि वहीं से उनका क्रिकेट छूटना शुरू हुआ. बड़े भाई का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था, इसलिए प्रकाश ने घर की जिम्मेदारी संभालने का बीड़ा उठाया.
प्रकाश ने बताया, हम किराए के मकान में रहते हैं. मैं एक कंपनी में काम करता था लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन की वजह से वो नौकरी चली गई. तब मुझे 10,000-12,000 रुपए महीना मिलते थे जो परिवार के लिए बड़ा सहारा था. वो जॉब चले जाने के बाद परिवार के लिए दिक्कतें बढ़ गईं. मेरे पिता पहले ये चाय का स्टाल चलाया करते थे. अब मां और मैं इसे संभालते हैं.'