Spotrs.खेल: नितिन शर्मा। कपिल परमार बचपन में अपने पिता के साथ अखाड़ों में जाते थे। टूरिस्ट गाइड का काम करने वाले राम सिंह विदेशियों को अखाड़ें दिखाते, और उन्हें देखकर कपिल के दिल में पहलवान बनने का सपना पनपने लगा। गुरुवार रात परमार ने पेरिस पैरालंपिक में जूडो में देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता। यह देश का जूडो में पहला पैरालंपिक मेडल था लेकिन पहलवान बनने का सपना देखने वाले कपिल जूडो खिलाड़ी कैसे बने। इसकी कहानी में दर्द है, देश के लिए मेडल जीतने का सपना है और उम्मीद है।
कपिल को लगा था बिजली का झटका
कपिल के पिता के तीन बच्चे थे। कपिल की बड़ी बहन है और छोटा भाई है। कपिल को पहलवानी करनी थी। हालांकि किस्मत में यह नहीं था। साल 2010 में परमार अपने घर में मोटर पंप के ढीले पड़े तार को ठीक करने लगे। इसी गौरान उन्हें जबरदस्त झटका लगा। कपिल पर इसका गहरा असर हुआ। उन्हें भोपाल के अस्पताल में भर्ती कराया गया।
छह महीने में कोमा में रहे कपिल
कपिल छह महीने तक कोमा में रहे। जब वह ठीक हुए तो उन्हें पता चला कि आंखो की रोशनी कम हो गई है। वह फिर भी खेलना चाहते थे। हालांकि उनके शहर में कपिल जैसे खिलाड़ियों के लिए कोई सुविधा नहीं थी। साल 2017 में परमार की मुलाकात हुई भगवान दास से। भगवान मध्य प्रदेश के ब्लाइंड जूडो एसोसिएशन के सचिव थे। उन्होंने परमार को जूडो सिखाया। हादसे के कारण परमार बहुत कमजोर हो गए थे। हालांकि कपिल मेडल के लिए सबकुछ करने को तैयार थे।
कपिल परमार ने चुना जूडो
साल 2019 में उन्हें नेशनल पैरा कोच मुनावर अंजर मिले। नेशनल कैंप में आने के बाद कपिल परमार के खेल में बहुत सुधार हुआ। बीते साल वर्ल्ड पैरा चैंपियनशिप में परमान 17वें स्थान पर रहे थे। हालांकि हांघझो पैरा एशियन गेम्स में उन्होंने पुरुषों के 60 Kg J1 कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता।
कपिल और उनका परिवार यह हकीकत जानता है कि कपिल की आंखों की रोशनी आने वाले समय में और कम हो जाएगी। एक समय ऐसा आएगा जब कपिल देख नहीं पाएंगे। ऐसे में उन्हें खेल भी छोड़ना पड़ेगा। हालांकि इस समय परिवार में पैरालंपिक के ऐतिहासिक मेडल की खुशी है। कपिल हमेशा की तरह गुड़ चावल खाकर अपनी जीत का जश्न मनाएंगे।