आइपीएल में लगभग हर मैच आखिरी ओवर तक जाता है और इसलिए हर रन, हर डाट बाल मायने रखती है और उस प्रयास में कुछ खिलाड़ी अनजाने में कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे हंगामा हो सकता है। इसमें मुझे कोलकाता और दिल्ली के बीच वह लीग मैच याद आता है जिसमें अश्विन ने एक रन लेने का प्रयास किया वह भी तब जब गेंद दूसरे बल्लेबाज रिषभ पंत को लग कर दूर गई। अब परंपरा यह है कि जब भी गेंद बल्लेबाज को लगती है और क्षेत्ररक्षक से दूर रहती है तो वह रन लेने का प्रयास करते हैं। वहीं क्षेत्ररक्षक भी इस दौरान रन आउट करने के प्रयास में थ्रो करता है। ऐसे में अंपायर इसे डेड बाल नहीं कहते क्योंकि ऐसी संभावना है कि गेंद लगने के बाद भी बल्लेबाज रन आउट हो सकता है। इसलिए जब अतिरिक्त रन लिया गया तो कोलकाता टीम की प्रतिक्रिया हुई, विशेषकर गेंदबाज साउथी ने अपने हिसाब से विरोध जताया। उनकी गेंदबाजी के आंकड़े में ही एक रन जोड़ा गया था और कप्तान इयोन मोर्गन ने स्वाभाविक रूप से सोचा था कि लक्ष्य का पीछा करने के लिए उनके सामने एक रन अतिरिक्त बढ़ गया है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि इस लीग में हर एक रन काफी मायने रखता है।
इसके बाद जब अश्विन आउट हुए तो साउथी ने उन्हें छेड़ दिया लेकिन अश्विन पीछे हटने वालों में से नहीं है। इसके अलावा कार्तिक के मामला शांत कराने से पहले इयोन मोर्गन भी मौखिक रूप से इस मामले में कूद पड़े थे। इसके बाद एक बार फिर क्रिकेट की भावना को लोगों ने तूल दिया, जिस पर क्रिकेट पंडित और दिग्गज अपने खेल के दिनों की उस काल्पनिक खेल भावना की रेखा के बारे में बात करते हैं, जिसे केवल वे ही जानते हैं लेकिन बाकी क्रिकेट जगत उससे वाकिफ नहीं है।
अश्विन से सवाल करने वालों ने यह नहीं पूछा कि पंत क्यों भागे? जिसे गेंद लगी थी। अगर परंपरा यह है कि गेंद बल्लेबाज के लगने के बाद रन नहीं लेना है तो दिल्ली के कप्तान पंत को इस बात का पता होना चाहिए था। यह सब कुछ टीम के कुल स्कोर में एक और रन जोड़ने की चाहत के चलते हुआ लेकिन अश्विन को दोष क्यों दिया गया, हो सकता है कि उसने गेंद को अपने कप्तान से टकराते हुए भी न देखा हो क्योंकि वह दूसरे छोर तक पहुंचने के लिए बाध्य रहा होगा और हो सकता है कि उसने केवल उस गेंद को देखा हो जो एक क्षेत्ररक्षक से दूर थी और इसलिए अतिरिक्त रन के लिए वह दौड़ पड़ा। पंत इस स्थिति को खत्म कर सकते थे, लेकिन मैच की उच्च तीव्रता और विशेष रूप से गर्म और आर्द्र रेगिस्तानी वातावरण में, शांत सिर रखना बेहद कठिन है, इसलिए उन्हें अहसास नहीं हुआ कि क्या हुआ था।
कुछ दिनों बाद एक और घटना हुई जो सुíखयों में नहीं आई क्योंकि इसमें दो अनकैप्ड भारतीय युवा शामिल थे। यशस्वी जायसवाल ने गेंद पर प्वाइंट की दिशा में कट शाट मारा और थ्रो के आने से पहले ही वह अपनी क्रीज पर टिके रहे। विकेटकीपर ने थ्रो को पकड़ा और जायसवाल के अपने पिछले पैर को उठाने का वह इंतजार कर रहे थे ताकि जैसे ही उनका पैर हवा में उठे और वह स्टंप्स की गिल्लियां उड़ाकर आउट होने की अपील कर सकें। और उन्होंने ऐसा किया भी। इस स्थिति में ध्यान दें कि एक रन लेने का कोई प्रयास नहीं किया गया था क्योंकि शाट खेलने के बाद जायसवाल उसी स्थिति में रुके थे और गेंद को रोककर कीपर को फेंकने की पूरी क्रिया कुछ ही सेकेंड में हो गई। अंपायर ने अपील को सही ढंग से नकार दिया और टीवी अंपायर के पास भी नहीं गए क्योंकि जायसवाल द्वारा चलने का कोई प्रयास नहीं किया गया था लेकिन यह तथ्य कि विकेटकीपर का इस तरह सोचना ही परेशान करने वाला है क्योंकि हर कीमत पर जीतने की यह मानसिकता आपको जीत दिला सकती है लेकिन टीम को सामान्य क्रिकेट जगत में सबसे अलोकप्रिय भी बना देगी।
यही वह दबाव है जो आइपीएल लेकर आता है और ऐसे खिलाड़ी पैदा करता है जो अधिक से अधिक दबाव के अभ्यस्त हो जाते हैं। यह उन तीखे अभ्यासों को भी प्रोत्साहित कर सकता है जिनके बिना भी क्रिकेट खेला जा सकता है। भारतीय क्रिकेट खेल के सभी प्रारूपों में दुनिया पर हावी होने के लिए तैयार है और यह सभी भारतीय क्रिकेट समर्थकों के लिए सबसे रोमांचकारी होगा, लेकिन उम्मीद है कि यह उस तरह का क्रिकेट होगा जैसा कि पिछली सदी के सातवें और आठवें दशक में वेस्टइंडीज ने खेला था। वे विरोधी टीम को हथौड़े से मारकर उसे खोखला कर देते थे लेकिन फिर भी वह क्रिकेट जगत की सबसे पसंदीदा टीम थे।