पुरस्कार लेने कनाडा से लौटे भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कोच सुखविंदर सिंह
भारतीय टीम के स्टॉपर बैक के रूप में खेलने वाले सुखविंदर को बीते वर्ष ध्यानचंद लाइफटाइम पुरस्कार के लिए चुना गया था
आईएम विजयन, जो पॉल अंचेरी और बाईचुंग भूटिया जैसे सितारों से सजी 2000 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व मुख्य कोच सुखविंदर सिंह ने महज चार माह पहले ही देश छोड़ा था। वह कनाडा में बेटे के पास बस गए, लेकिन ध्यानचंद पुरस्कार की ट्रॉफी लेने दिल्ली अपने खर्च पर आए। सुखविंदर के मुताबिक यह सम्मान उनके लिए बहुत बड़ा है। वह इन यादों को अपने पास संजोकर रखना चाहते हैं।
भारतीय टीम के स्टॉपर बैक के रूप में खेलने वाले सुखविंदर को बीते वर्ष ध्यानचंद लाइफटाइम पुरस्कार के लिए चुना गया था। कोरोना के चलते उनकी राष्ट्रपति के हाथों ट्रॉफी लेने की हसरत रह गई। उन्हें वर्चुअल समारोह में राष्ट्रपति ने सम्मान दिया। सुखविंदर जेसीटी केकरीब 20 साल कोच रहे। फगवाड़ा में ही उनका घर था।
पहले एशियाई खेलों के विजेता को मिली पहली पहचान
दिल्ली में 1951 में हुए पहले एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाले तैराक सचिन नाग को मरणोपंरात ध्यानचंद लाइफटाइम पुरस्कार मिला। अशोक ने अपने पिता के लिए यह पुरस्कार लिया। वह कहते हैं कि अब उनके पिता को पहचान मिली है।
बीते वर्ष पिता का सौवां जन्मदिवस था। उसी दौरान उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना गया। यह मेरे लिए भावुक पल हैं। पिता ने जीते जी कभी भी पुरस्कार नहीं मांगा। उनके जाने के बाद मैंने उनकी पहचान के लिए संघर्ष छेड़ा था।