दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला खिलाड़ी है सिंधु
भारत की आजादी को 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। इसके उपलक्ष्य में पूरे देश में जश्न का माहौल है और इस मौके पर हर कोई खुद को तिरंगे के रंग में रंगने में लगा हुआ है।
भारत की आजादी को 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। इसके उपलक्ष्य में पूरे देश में जश्न का माहौल है और इस मौके पर हर कोई खुद को तिरंगे के रंग में रंगने में लगा हुआ है। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत सभी के लब पर आजादी के बोल हैं। इस मौके पर हम आपके सामने उन खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं, जिन्होंने न सिर्फ इतिहास रचा बल्कि विश्व पटल पर तिरंगे का मान भी बढ़ाया। भारतीय बैडमिंटन को नए शिखर पर ले जानी वाली पीवी सिंधु इतिहास के पन्नों में खुद को सुनहरे अक्षरों में दर्ज कर चुकीं एक ऐसी ही स्टार खिलाड़ी हैं।
सिंधु दो ओलंपिक मेडल जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला खिलाड़ी
27 साल की पीवी सिंधु इस वक्त देश की शीर्ष महिला शटलर हैं। वह हाल ही में कॉमनवेल्थ गेम्स में बैडमिंटन एकल का अपना पहला गोल्ड मेडल जीतकर भारत लौटी हैं और अब उनकी निगाह अपने अगले लक्ष्य की तरफ है। हमेशा अपने लक्ष्य को पाने के लिए प्रयासरत रहने वाली सिंधु अब अपने पहले ओलंपिक गोल्ड की तरफ बढ़ने की तैयारी में लग चुकी हैं। यही एक ऐसा मेडल है जिसे हासिल करने के लिए वह बेताब हैं। क्योंकि वह ओलंपिक में पहले ही सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल अपनी झोली में डाल चुकी हैं। सिंधु देश की एकमात्र महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ओलंपिक में दो मेडल जीते हैं और वह भी लगातार।
सिंधु ने 21 साल की उम्र में जीता पहला ओलंपिक मेडल
हैदराबाद की सिंधु ने 21 साल की उम्र में अपना पहला ओलंपिक मेडल जीत लिया था। वह साइना नेहवाल के बाद ओलंपिक मेडल जीतने वाली दूसरी और सिल्वर जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी थीं। 19 अगस्त 2016 को ब्राजील के रियो में आयोजित ओलंपिक खेलों में सिंधु ने बैडमिंटन में देश को पहला गोल्ड दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन स्पेन की कैरोलिना मरीन की चुनौती से पार नहीं पा सकीं। बावजूद इसके उन्होंने साइना के ब्रॉन्ज से एक कदम आगे बढ़ते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया।
रियो में पहली बार ओलंपिक में खेलीं सिंधु
सिंधु जब 2016 में अपने पहले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने के लिए रियो पहुंची थीं, तब शायद ही किसी को उनसे पदक की उम्मीद रही होगी। साइना नेहवाल के लंदन ओलंपिक मेडल के बाद सभी की निगाह उन्हीं पर थी, लेकिन उनके ग्रुप स्टेज से बाहर होने के बाद बैडमिंटन में भारत के मेडल की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा था। सिंधु के शब्दों में मैं शुरुआत में मेडल के बारे में नहीं सोच रही थी। मैं एक बार में एक ही मैच पर ध्यान देना चाहती थी।
सिंधु ने दिखाया था जबरदस्त खेल
सिंधु की पहली भिड़ंत हंगरी की लौरा सारोसी ने हुई, जिसे उन्होंने 21-8, 21-9 से करारी शिकस्त दी। इसके बाद उन्होंने कनाडा की मिशेल ली से 2014 कॉमनवेल्थ गेम्स की हार का बदला लेते हुए दूसरे मैच को 19-21, 21-15 और 21-17 से जीत लिया। सिंधु को अब प्री क्वॉर्टरफाइनल में चीनी ताइपेई की ताई जू यिंग से भिड़ना था, जो ज्यादा मुश्किल चुनौती थी। लेकिन सिंधु के इरादे कुछ और ही थे और उन्होंने इसे जाहिर करते हुए 21-13 और 21-15 से मुकाबला जीतकर सबसे बड़ा उलटफेर कर दिया। इसके बाद वह यहीं नहीं रूकीं और क्वॉर्टर फाइनल में वांग यिहान को सीधे गेम में 22-20, 21-19 से हराकर सेमीफाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली। अब उनके सामने जापान की नोजोमी ओकुहारा थीं, जिनके सामने सिधु का रिकॉर्ड अच्छा नहीं था और वह इस प्रतिद्वंदी के खिलाफ तब सिर्फ एक बार ही जीत पाई थीं। ऐसे में ओकुहारा मैच में जीत की दावेदार मानी जा रही थीं, लेकिन सिंधु एक नया अध्याय लिखने की तैयारी में थीं और फिर क्या था उन्होंने ओकुहारा को 21-19, 21-10 से सीधे गेम में हराकर बाहर कर दिया। यह पहली बार था जब सिंधु ने जापानी खिलाड़ी को सीधे गेम में हराया था। इस जीत के साथ ही सिंधु फाइनल में गोल्ड के करीब पहुंच चुकी थीं।
फाइनल में बढ़त के बाद मिली हार
फाइनल में सिंधु का इंतजार कोई और नहीं बल्कि दो बार की वर्ल्ड चैंपियन और दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी कैरोलिना मरीन कर रही थीं। सिंधु ने हालांकि जबरदस्त खेल दिखाते हुए पहला गेम अपने नाम कर लिया। लेकिन इसके बाद मरीन ने अपने अनुभव का प्रदर्शन करते हुए जोरदार वापसी की और सिंधु को संभलने का कोई मौका नहीं दिया। उन्होंने सिंधु के गोल्ड के सपने को आखिरी दो गेम में 21-12 और 21-15 से जीतकर चकनाचूर कर दिया। सिंधु भले ही गोल्ड से चूक गईं लेकिन वह ओलंपिक में सिल्वर जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनने का रिकॉर्ड अपने नाम करने में सफल रहीं।
सिंधु बनीं ओलंपिक में सिल्वर जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी
सिंधु रियो में इतिहास रचने के बाद बैडमिंटन की दुनिया में एक बड़ा नाम बन चुकी थीं और उनका आत्मविश्वास काफी बढ़ चुका था, जो आगे के टूर्नामेंट्स में दिखने लगा था। उन्होंने इसके बाद बीडब्लयूएफ वर्ल्ड चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन गेम्स में मेडल जीते। उन्होंने 2019 में वर्ल्ड चैंपियनशिप का अपना पहला गोल्ड भी जीता और इसके बाद रियो ओलंपिक की गोल्ड मेडलिस्ट से नंबर वन का ताज भी छीन लिया।
टोक्यो में भी दिखाई ताकत
रियो में सिल्वर जीत चुकीं पीवी सिंधु को टोक्यो ओलंपिक में दुनिया जान चुकी थी और सभी को उनसे एक बार फिर से पदक की उम्मीद थी। सिंधु ने सभी की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए शानदार खेल दिखाया और ब्रॉन्ज जीतने में सफल रहीं। एक साल की देरी से आयोजित हुए टोक्यो ओलंपिक में सिंधु ने इजराइल की सेनिया पोलिकरपोवा को 21-17, 21-10 से हराकर जीत से आगाज किया। इसके बाद उन्होंने चेउंग यी को 41 मिनट में ही बिना कोई गेम गंवाए 21-9, 21-16 से हराकर चलता किया और क्वॉर्टरफाइनल में पहुंच गईं। उन्होंने इसके बाद डेनमार्क की मिया ब्लिचफेल्ट को भी सीधे गेम में 21-15 और 21-13 से हराकर बाहर किया। सिंधु ने फिर चौथी वरीय जापान की यामागुची अकाने का भी वही हस्र किया और उन्हें भी 2-0 से हराया और सेमीफाइनल में पहुंच गईं। हालांकि यहां सिंधु का सामना पुरानी प्रतिद्वंदी ताई जू यिंग से हुआ, जो उनके विजय अभियान को रोकने में सफल रहीं। ताई जू ने सिंधु के खिलाफ बॉडी शॉट खेले और पूरे मैच में उनपर हावी रहीं। सिंधु के पास भी कोई जवाब नहीं था और जल्दी ही भारतीय खिलाड़ी गोल्ड की रेस से बाहर हो गई। सिंधु के पास हालांकि अभी भी ब्रॉन्ज जीतने का मौका था लेकिन इसके लिए उन्हें हि बिंग जियाओ से भिड़ने था। सिंधु भी इस बार पूरी तैयारी और मेडल जीतने के इरादे से उतरीं और कड़ी टक्कर के बावजूद 21-19, 21-19 से मैच और मेडल दोनों जीतने में कामयाब रहीं