टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पहलवान दीपक पुनिया की हार हो गई है. वह ब्रॉन्ज मेडल के लिए लड़ रहे थे, लेकिन आखिरी छह सेकंड में उनकी हार हो गई. हालांकि, शुरुआत में दीपक ने बढ़त बना ली थी. लेकिन अंत में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. दीपक को Nazem Myles के हाथों 2-4 से शिकस्त मिली है.
उनके पिता दीपक दूध बेचा करते थे, इसलिए परिवार में आर्थिक तंगी भी रहती थी. काफी कम उम्र में ही दीपक ने अपने चचेरे भाई सुनील कुमार के साथ मिलकर दंगल में भाग लेना शुरू कर दिया, ताकि दंगल में जीते पैसों से परिवार की मदद हो सके. जब उन्होंने पहला दंगल जीता तो उसके लिए उन्हें इनाम के तौर पर 5 रुपये दिए गए थे.
आर्थिक तंगी के बावजूद उनके माता-पिता ने उनका साथ दिया, क्योंकि वो चाहते थे कि उनका बेटा कुछ बड़ा करे. भाई सुनील ने जब दंगल में दीपक की प्रतिभा को देखा तो 2015 में आगे की तैयारी के लिए उन्होंने उन्हें दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम भेजा.
छत्रसाल स्टेडियम में दीपक को सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त जैसे बड़े पहलवानों का गाइडेंस मिला. सुशील कुमार को दीपक 'गुरुजी' कहकर बुलाते थे. दो बार के ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील ने ही दीपक को सेना में सिपाही की नौकरी करने से रोका और उन्हें कुश्ती पर ही ध्यान देने की सलाह दी.
दीपक को जो खास बनाती है वो है उनकी स्टैंडिंग डिफेंस टेक्नीक. इसमें दीपक अपने हाथों को विरोधी की बांहों के नीचे रख लेते हैं, जो विरोधी पहलवान को धूल चाटने पर मजबूर कर देती है. बहुत कम ही ऐसे पहलवान हैं, जिनके पास दीपक की इस टेक्नीक का तोड़ है.
हालांकि, दीपक पूनिया की रेसलिंग स्किल काफी हद तक बजरंग पूनिया के जैसे ही है, लेकिन दोनों में कोई समानता नहीं है. हालांकि, दोनों ही हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले हैं, लेकिन दीपक का छारा गांव बजरंग के खुदान गांव से करीब 30 किलोमीटर दूर है.
2020 में लॉकडाउन के दौरान दीपक ने अपनी तैयारी को कमजोर नहीं पड़ने दिया. उन्होंने दिल्ली-हरियाणा सीमा के एक छोटे से गांव नरेला में अपने लिए एक अखाड़ा बनवाया और निजी कोच के मार्गदर्शन में तैयारी की. एक बार उन्होंने कहा था, "मैं दोस्तों के साथ कहीं बाहर नहीं गया था. मैंने अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दिया था."
हालांकि, वो दिसंबर 2020 में बेलग्रेड में इंडिविजुअल वर्ल्ड कप में मोल्दोवा के पियोट्र इयानुलोव से 4-1 से हार गए, लेकिन अप्रैल में अल्माटी में एशियन चैम्पियनशिप में उन्होंने जोरदार वापसी करते हुए सिल्वर मेडल हासिल किया.