चीनी नेतृत्व का अगला दौर, शी चिनफिंग को एक और कार्यकाल
चीन की राजधानी पेइचिंग में कम्युनिस्ट पार्टी का बहुचर्चित 20वां अधिवेशन रविवार को शुरू हो गया। करीब एक सप्ताह चलने वाले इस अधिवेशन पर दुनिया भर की नजरें लगी हैं तो उसकी कई ठोस वजहें हैं।
नवभारतटाइम्स; चीन की राजधानी पेइचिंग में कम्युनिस्ट पार्टी का बहुचर्चित 20वां अधिवेशन रविवार को शुरू हो गया। करीब एक सप्ताह चलने वाले इस अधिवेशन पर दुनिया भर की नजरें लगी हैं तो उसकी कई ठोस वजहें हैं। इस पूरी कवायद के केंद्र में इस बार यह बात है कि शी चिनफिंग को लगातार तीसरी बार सत्ता की कमान मिलना लगभग तय है। चूंकि दो कार्यकाल की सीमा पहले ही समाप्त की जा चुकी है तो तीसरे कार्यकाल पर अब कोई बाधा नहीं रही। लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि जैसे तीसरे कार्यकाल को संभव बनाया गया है वैसे ही चौथे और पांचवें कार्यकाल के लिए भी राह तैयार की जा सकती है। मतलब यह कि हो सकता है शी आजीवन सत्ता में बने रहें।
चीन में सत्ता के केंद्रीकरण की जो स्थिति है, उसमें यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। फिर भी, इस वक्त जो सवाल देश-दुनिया के लिए ज्यादा अहमियत रखता है वह यह कि शी के नेतृत्व वाला चीन आने वाले वर्षों में किस तरह की चुनौतियों से जूझने वाला है और इसका दुनिया के अन्य देशों पर किस तरह का प्रभाव पड़ने वाला है। आंतरिक मोर्चे पर तात्कालिक नजरिए से देखें तो चीन के सामने इधर कुआं, उधर खाई जैसी स्थिति दिख रही है। उसे जल्दी ही जीरो-कोविड पॉलिसी और आर्थिक विकास की धीमी पड़ी रफ्तार पर कोई निर्णायक फैसला करना होगा। अगर वह जीरो-कोविड पॉलिसी पर गर्व करना जारी रखता है तो इकॉनमी की गिरावट परेशान करने वाली स्थिति में पहुंच सकती है और अगर जीरो-कोविड पॉलिसी से अलग हटते हुए हुए लॉकडाउन में ढील देता है तो वैक्सीन के सुरक्षा दायरे से बाहर की आबादी में मौत की संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।
दीर्घकालिक तौर पर चीन के सामने एक बड़ी दिक्कत आबादी में वृद्धों के बढ़ते अनुपात की आने वाली है, जिससे श्रमशील लोगों की कम संख्या एक बड़ी चुनौती बनेगी। बाहरी मोर्चे पर एक समय में चीन के उदय को सोवियत संघ की काट के रूप में देखने वाले देश अब उसके विकास की रफ्तार पर अंकुश लगाने की जरूरत महसूस कर रहे हैं। खासकर चीन को उसका पुराना गौरव वापस दिलाने की मंशा के चलते दक्षिण चीन सागर और लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा समेत अनेकानेक क्षेत्रों में उसकी हरकतों से खतरा महसूस कर रहे देशों की संख्या बढ़ गई है। इसका असर न केवल सामरिक क्षेत्र में दिख रहा है बल्कि व्यापारिक मामलों में भी खासकर वैकल्पिक सप्लाई चेन के निर्माण की कोशिशों के रूप में दिख रहा है। ताइवान एक अलग मोर्चा है ही, जिस पर दोनों तरफ से तलवारें खिंची हुई हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो शी के नेतृत्व का अगला चरण न केवल चीन के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए नाजुक साबित हो सकता है।