अनंतनाग, (आईएएनएस)| सभी चुनौतियों का सामना करते हुए दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के युवा उद्यमी ने अपने क्रिकेट बैट ब्रांड को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में कामयाबी हासिल की है। अनंतनाग जिले के पहने वाले फवजुल कबीर से मिलिए, जिनकी उम्र 30 साल है, इन्होंने इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, अवंतीपोरा से एमबीए किया हैं। कबीर कनिर संगम के पास श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर जीआर 8 स्पोर्ट्स नाम से एक कश्मीरी विलो बैट उद्योग चलाते हैं। कबीर के बल्ले अब कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी इस्तेमाल कर रहे हैं।
जीआर8 स्पोर्ट्स की शुरुआत कबीर के पिता अब्दुल कबीर डार ने 1974 में की थी और तब से कंपनी जाने-माने ब्रांडों को बिना ब्रांड वाले बैट्स की आपूर्ति करती थी, जो 2010 तक जारी रहा। हालांकि, उनका ब्रांड युवा कबीर की कड़ी मेहनत और जुनून के साथ चमकने लगा, जिन्होंने जीआर8 बैट्स को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, खासकर इंग्लैंड में। अब जीआर8 बैट का इस्तेमाल कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों द्वारा किया जा रहा है, जिनमें 2021 और 2022 में आयोजित टी20 विश्व कप में खेलने वाले खिलाड़ी भी शामिल हैं।
पिछले साल यूएई में हुए टी20 वल्र्ड कप में ओमान के क्रिकेटरों को जीआर8 बैट का इस्तेमाल करते देखा गया था, जबकि यूएई के खिलाड़ियों ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में संपन्न हुए टी20 वल्र्ड कप में उनका इस्तेमाल किया था। कबीर ने कहा, "2010 के बाद से, हमने जाने-माने ब्रांडों को गैर-ब्रांडेड आइटम भेजने का अपना तरीका बदल दिया, और अपने ब्रांड को मान्यता दिलाने के लिए क्रिकेट खेलने वाले देशों में गए। जब हम कई आयातकों, खरीदारों और अन्य लोगों से मिले, तो उन्होंने शुरू में अच्छी प्रतिक्रिया नहीं दी।"
कबीर ने तब अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) से संपर्क किया और कई चीजें सीखने में कामयाब रहे, जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानक, आयाम और अन्य विवरण। उन्होंने कहा, "फिर हमने उन शिल्पकारों से मुलाकात की, जिन्होंने स्टीव वॉ, सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा और रिकी पॉइंटिंग जैसे शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिए बल्ले का निर्माण किया, जिन्होंने हमें बहुत मदद की।"
कंपनी ने जल्द ही अपने बल्ले का निर्माण शुरू कर दिया और आईसीसी को नमूने पेश किए। आईसीसी की मंजूरी के बाद अब कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी बल्ले का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कबीर अब गर्व से कहते हैं कि पहली बार कश्मीरी विलो से बने बल्लों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है।