IND vs NZ: नया भारत को सर्वोच्चता हर कीमत पर कायम रखने की हसरत
पाकिस्तान के बाद न्यूजीलैंड के खिलाफ हार टीम इंडिया की लगातार दूसरी हार थी।
भारत को सुपर-12 राउंड के दूसरे मैच में न्यूजीलैंड के हाथों आठ विकेट से हार का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान के बाद यह टीम इंडिया की लगातार दूसरी हार थी। पढ़िए इस मामले पर खेल पत्रकारिता से लंबे समय से जुड़े रहे विमल कुमार का लेख...
''इंग्लैंड टीम के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने जब सोशल मीडिया पर ये लिखा कि भारत को दुनिया के बाकि मुल्कों से सीखना चाहिए कि कैसे टी20 क्रिकेट खेली जाए, ऐसा सीखने के लिए बीसीसीआई को अपने खिलाड़ियों को दूसरे लीग में खेलने के लिए इजाजत देनी होगी। कई सारे भारतीय फैंस और यहां तक कुछ स्पोर्ट्स के तथाकथित दिग्गज भी वॉन को ट्रोल करने लगे कि क्या सीखने के लिए? दरअसल, उनकी दकियानूसी सोच यही है कि जिस देश में दो महीने का दुनिया सबसे बड़ा टी20 टूर्नामेंट होता है उसे बाहर मुल्क में जाकर कुछ सीखने की ज़रुरत है भी क्या?
दरअसल, टीम इंडिया और बीसीसीआई का टी20 वर्ल्ड कप के लिए भी सोच कुछ ऐसा ही दंभ भरा रहा है। वरना कौन सी टीम हार्दिक पंड्या जैसे खिलाड़ी को ज़बरदस्ती ऑलराउंडर ना सिर्फ बनाने के लिए ज़िद पर अड़ी रही बल्कि उसे सही साबित करने के लिए हर हाल में प्लेइंग इलवेन में शामिल भी करवा दिया। मुझे डर इस बात का है कि शायद पंड्या अब ऑलराउंडर के तौर पर टीम इंडिया के लिए कभी नहीं खेल पायें। अगर रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ जो कि भविष्य के कप्तान और कोच होने वाले हैं ने ठोस कदम उठायें तो पंड्या सिर्फ एक शुद्ध बल्लेबाज़ के तौर पर अगले साल ऑस्ट्रेलिया में होने वाले वर्ल्ड कप में खेले और ये कोई ग़लत फैसला नहीं होगा, क्योंकि तब पंड्या जिम्मेदारी और स्वच्छंदता दोनों के साथ खेल पायें।
यही बात इस बार वर्ल्ड के पहले दो मैचों में नहीं दिखी। कोच रवि शास्त्री ने अपनी ज़िम्मेदारी नहीं दिखायी सुलझे हुए फैसले लेने में तो विराट कोहली ना सिर्फ कप्तान के तौर पर बल्कि बल्लेबाज़ के तर पर भी आज़ादी के लिए तरसते दिखे। अगर कप्तान और कोच इस तरह से शिकंजे में कसा दिखाई दे तो टीम का नतीजा शायद ऐसा ही होना था।
बहरहाल, इतना भी मायूस होने की फिलहाल ज़रुरत नहीं है। टूर्नामेंट में भारत ने 2 अहम मैच हारें हैं लेकिन तीन मुकाबले अब भी बचे हुए हैं। अगर हां मैं जानता हूं कि कार्य बहुत बड़ा है, लेकिन नामुमकिन भी तो नहीं है। अगर अफगानिस्तान न न्यूज़ीलैंड को हरा दिया और फिर भारत ने अफगानी टीम को हराया तो फिर से टूर्नामेंट में एक नया मोड़ आ सकता है। आप कहेंगे कि इस बात की संभावना कम है, लेकिन पाकिस्तान जैसी टीम को जब पिछले दिनों पठानों की टीम ने लगभग पानी पिला दिया तो अपने शानदार स्पिनर्स के बूते वो कीवी टीम को भी रोक सकते हैं। कम से कम 1 अरब से ज़्यादा से भारतीय फैंस की दुआयें उनके साथ होगी।
दूसरी बात ये है कि टीम इंडिया हारी ज़रुर है लेकिन इस बात को भी नहीं भूलान चाहिए कि क्रिकेट के दो फॉर्मेट जो कि वन-डे और टेस्ट है उसके मुकाबले टी20 में उलफेर ज्याद मुमकिन है। इसके बावजूद 15 साल बाद ये सिर्फ दूसरा मौका है जब भारत को किसी मैच में 33 गेंद रहते हार का सामना करना पड़ा। मतलब मैच इतना ज़्यादा इकतरफा रहा। कहने को तो ये भी कहा जा सकता है कि आईपीएल की थकान, लगातार एक बायोबबल से दूसरे बायोबबल में जाना और फिर खिलाड़ियों को इतने लंबे समय तक परिवार से दूर रहना भी अहम कारण हो सकते हैं इस निराशाजनक खेल के, लेकिन भारतीय क्रिकेट में जब तक आप जीतते हैं तब तक आपकी जयजयकार होती है लेकिन हारने के साथ ट्रोलिंग आम बात है।
पहले किसी टूर्नामेंट में हार को फिर इस बात के लिए पचा लिया जाता था कि विरोधी अच्छा खेले लेकिन नया भारत हर समय अपनी सर्वोच्चता को हर कीमत पर कायम रखने की हसरत रखता है और शायद इसलिए लगातार दो हार से मान को इतनी ज़्यादा ठेस पहुंचती है।''