अजिंक्य रहाणे ने दिया दिल जीत लेने वाला बयान...बोले कप्तानी मैं करूं या विराट कोहली...भारतीय टीम जीतनी चाहिए
भारतीय क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी धरती पर चार टेस्ट मैचों की सीरीज में 2-1 से हराकर इतिहास रचा।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भारतीय क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया को उसकी धरती पर चार टेस्ट मैचों की सीरीज में 2-1 से हराकर इतिहास रचा। इसके बाद ही जीत के नायक अजिंक्य रहाणे को विराट कोहली की जगह स्थायी कप्तान बनाने की मांग उठने लगी लेकिन अब तक पांच टेस्ट में नेतृत्व करके चार में जीत दिलाने वाले सौम्य, सरल रहाणे इस बहस में नहीं पड़ना चाहते हैं। उनका कहना है कि कप्तानी विराट करे या मैं टीम इंडिया जीतनी चाहिए। ऑस्ट्रेलिया दौरे की रणनीति और जीत को लेकर अभिषेक त्रिपाठी ने अजिंक्य रहाणे से विशेष बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सीरीज जीतना क्या मायने रखता है आपके लिए?
बहुत मायने रखती है वह सीरीज। कोई भी टेस्ट या सीरीज जीतना हर खिलाड़ी के लिए बड़ी बात होती है। एक टीम के नाते जहां हम 36 रनों पर ऑलआउट हुए थे वहां से सीरीज जीतना हम सभी के लिए बड़ी बात है। यह केवल मेरे अकेले की जीत नहीं बल्कि सभी खिलाडि़यों की मेहनत है। सभी के परिश्रम से हम यह परिणाम लाने के में सफल रहे हैं। मैं कभी अपने लिए नहीं खेला। मेरे लिए टीम हमेशा सर्वोच्च रही है।
जब आप ब्रिसबेन में आखिरी टेस्ट के लिए टीम चुन रहे थे तो क्या दबाव में थे? क्या सोचकर टीम चुनी?
कोई दबाव नहीं था। हमारे पास जो खिलाड़ी उपलब्ध थे, उन्हीं के साथ हमें जाना था। हमें पता था कि हमारे खिलाडि़यों में अनुभव की कमी है लेकिन उनमें जो जोश और जज्बा है उससे ऑस्ट्रेलियाई टीम को हराया जा सकता है। पूरे टेस्ट में हमने किसी भी सत्र में मेजबान टीम को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। हर खिलाड़ी ने अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन किया।
नस्ली टिप्पणी, स्लेजिंग, शरीर पर गेंदें, इन सबके बीच आपने खुद को शांत कैसे बनाए रखा?यह सभी चीजें खेल का हिस्सा हैं। हमारे खिलाडि़यों के शरीर पर गेंदें फेंककर विपक्षी टीम हमें डराने का प्रयास करती है। उनका प्रयास होता है कि हम दबाव में आकर कोई गलती करें मगर हमने भी डटकर उस परिस्थिति का सामना किया। जहां तक नस्लभेद की बात है, क्रिकेट में यह कभी भी नहीं होना चाहिए. बतौर कप्तान उस वक्त मुझे मेरे खिलाड़ी, मेरी टीम और देश के बारे में सोचना था। हमारे सामने मैदान छोड़ कर जाने का विकल्प था मगर हम क्रिकेट खेलने आए थे, लिहाजा मैदान छोड़ने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।
सात खिलाड़ियों के चोटिल होने के बावजूद आपने टीम का हौसला कैसे बनाए रखा? पर्दे के पीछे आपने खिलाड़ियों को क्या सलाह दी?
सिडनी टेस्ट आते-आते हमारे कई खिलाड़ी चोटिल हो चुके थे। मेलबर्न की जीत के बाद हमें विश्वास था की अगर हम अपनी क्षमता के अनुसार क्रिकेट खेलते हैं तो हम सिडनी टेस्ट में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। हमें केवल आखिरी तक डटकर मुकाबला करना था। जडेजा पहली पारी में चोट के बावजूद बल्लेबाजी के लिए तैयार था लेकिन रविचंद्रन अश्विन और हनुमान विहारी की जितनी तारीफ करें वह कम है। जिस तरह हैमस्टि्रंग की चोट के बाद भी विहारी विकेट पर खड़े रहे वो टीम के लिए बड़ी बात थी। अश्विन के तो टेस्ट क्रिकेट में चार शतक है। कमर में दर्द के बावजूद उन्होंने विकेट पर अपनी बल्लेबाजी का पूरा अनुभव झोंक दिया। मैंने सभी खिलाडि़यों को आजादी थी कि वे अपनी तरह से क्रिकेट खेलें लेकिन टीम को संकट से उबारें। मैं लकी हूं कि मेरी टीम ने वैसा ही प्रदर्शन किया जिसकी मुझे उम्मीद थी। जहां तक गाबा टेस्ट के आखिरी दिन की बात है तो मैंने खिलाडि़यों को स्कोरबोर्ड की और देखने की जह सत्र दर सत्र योजना के साथ खेलने को कहा। हमने सुबह ही सोच लिया था की हम टी ब्रेक के दौरान तय करेंगे कि आगे की रणनीति कैसे बनाएंगे। पूरे मैच के दौरान केवल हर विकेट के लिए कितनी बड़ी साझेदारी हो सके उसी पर फोकस था। सभी खिलाडि़यों से उनका खुद का नैसर्गिक खेल खेलने की बात कर रहे थे।
गाबा में आपने पहली पारी में 93 पर 37 रन लगाए लेकिन दूसरी पारी में उतरते ही मारना शुरू कर दिया। ये क्या रणनीति थी?
गाबा में जब हम आखिरी दिन 300 रनों से ज्यादा के लक्ष्य का पीछा करने उतरे तो हमने जीत के लिए जाने की कोई योजना नहीं बनाई थी। हमारी योजना थी कि हम साझेदारी बनाएंगे और अपना क्रिकेट खेलेंगे। इससे हमें मौका मिल सकता है। जब शुभमन और चेतेश्वर के बीच बड़ी साझेदारी हुई तो मैंने तय किया कि इनमें से कोई भी आउट होगा तो मैं उतरकर तेजी से रन बनाऊंगा। पिछले दौरे में पर्थ में मैंने तेज पारी खेली थी। यहां पर मैंने जाते ही ऐसे किया। एक छक्का और एक चौका मारा लेकिन अपर कट खेलने के चक्कर में आउट हो गया। जब मैं आउट हुआ तो टी-ब्रेक के लिए 20 मिनट का समय बचा था। रिषभ मैदान में आ रहा था, मैंने उससे कहा कि ये 20 मिनट निकाल ले, उसके बाद अपना गेम खेलना। इसमें ऑस्ट्रेलिया को विकेट नहीं देना है। अगर हमने ऐसा कर लिया तो जीत के लिए बने रहेंगे। उसने वैसा ही किया। इससे ऑस्ट्रेलिया की लय खराब हो गई। टी-ब्रेक के दौरान मैंने रिषभ से कहा कि अब ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज और तेज गेंद फेंकने की कोशिश करेंगे, अब हम जीतने की ओर जा सकते हैं। रिषभ ने ठीक वैसा ही किया।
एडिलेड की दूसरी पारी में 36 रन पर आउट होने और सीरीज में 0-1 से पीछे होने के बाद आपको कप्तानी करनी थी। दिमाग में क्या चल रहा था?
मेरा फोकस सिर्फ इस बार पर था कि खिलाडि़यों पर दबाव नहीं बनाना है। एडिलेड टेस्ट में जो भी हुआ वह हम सभी को पता था। ऐसा नहीं की हम डे-नाइट टेस्ट में खराब क्रिकेट खेले लेकिन तीसरे दिन आखरी घंटे ने परिणाम बदल कर रख दिया। एडिलेड टेस्ट के बाद मैंने साथियों से इतना ही कहा कि हम किसी भी प्रकार से नकारात्मक बात नहीं सोचेंगे। हम हर वक्त अपने और साथी खिलाडि़यों पर भरोसा करेंगे तो परिणाम निश्चित रूप से हमारी तरफ होगा। आपने देखा होगा की इतने खिलाड़ी चोटिल होने के बावजूद ब्रिसबेन में हम किस जिद से खेले और आप किसी भी क्षेत्र में एक सकारात्मक रवैया अपना कर मैदान में उतरते हो तो सफलता आपको मिलनी ही है। व्यक्तिगत तौर पर मेरा यही मानना है और मैंने अपने सभी खिलाडि़यों को यही बात समझाई, जिसको उन्होंने अमल किया और परिणाम पूरे विश्व ने देखा। यह जीत पूरी टीम की है. पूरे भारत की है।
क्या आप सीरीज शुरू होने से पहले ही कप्तानी की तैयारी कर रहे थे?
देखिए मुझे यह तो पता ही था कि विराट डे-नाइट टेस्ट के बाद चला जाएगा और तीन टेस्ट में मुझे कप्तानी करनी है। दो अभ्यास मैचों के दौरान मैं हर खिलाड़ी को समझ रहा था कि कौन खिलाड़ी क्या कर रहा है, कैसा महसूस कर रहा है और वह हमारी योजना में कितना फिट बैठता है। हर कप्तान का अलग प्लान होता है और मुझे अपने प्लान के हिसाब से चलना था। 36 पर ऑलआउट होने के बाद टीम की कमान मेरे हाथ में थी। मैंने कहा जो हुआ, उसे भूल जाओ। आपको जो चाहिए मुझे बताओ, मैं आपके पीछे खड़ा हूं। एक के बाद एक खिलाड़ी चोटिल होते गए लेकिन हमने टेंशन नहीं ली। हमारी टीम में यह भावना पैदा हुई कि हर परिस्थिति में हम ताकतवर हैं और जीत सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि अगर आप इस दौरे में सवा अरब भारतीयों के बीच से निकलकर इस टीम का हिस्सा बनकर यहां आए हो तो आपमें कुछ तो है ही। हम अगर मैदान में अपना सर्वश्रेष्ठ दिखाएं और जो रोल निभाने का मौका मिले उसे पूरा कर लें तो जीत सकते हैं। सबको पता था कि यह फुल टीम नहीं है और ऐसे में जो प्रदर्शन करके जीत दिलाएगा वह देश का हीरो बनेगा और यही हुआ। इस जीत में सपोर्ट स्टाफ का भी बहुत योगदान है। लगातार खिलाड़ी चोटिल होने से फिजियो नितिन पटेल और योगेश परमार का काम काफी बढ़ गया लेकिन उनके चेहरे पर शिकन नहीं थी। वह हंसते हुए काम करते रहे। यह जितनी मेरी जीत है उतनी ही सहयोगी स्टाफ की भी।
अब आपको टेस्ट टीम का स्थायी कप्तान बनाने की मांग उठ रही है। क्या आप तैयार हैं?
यह मेरे हाथ में नहीं है। बीसीसीआइ के आला अधिकारी और चयनकर्ता इस बात का फैसला लेंगे। मुझे जो जिम्मेदारी दी जाए मैं उस पर काम करने लिए हमेशा तैयार रहता हूं, चाहे वह बल्लेबाज के तौर पर हो या उपकप्तान के तौर पर या कप्तान के रूप में। किसी भी हालत में मैं अपनी टीम को हारते हुए देखना नहीं चाहता। विराट की अनुपस्थिति में टीम की कमान संभालने का मौका मुझे मिला उसे मैंने बख़ूबी निभाया। सच कहूं तो मैंने कभी भी टीम की कप्तानी के बारे में सोचा नहीं। अगर आप अच्छा परिणाम देते है तो आपके बारे में बातें होना लाजमी हैं मगर मैंने कभी किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं रखी। मेरा काम हर रोल में अपनी टीम को शत प्रतिशत सफलता दिलाने का है जिसके लिए में हरदम प्रयास करता रहा हूं और आगे भी करता रहूंगा। कप्तानी चाहे विराट करे या मैं, सफलता टीम इंडिया के कदम चूमे, यही हम सभी की सोच होती है।