खेल: जुनूनी और जुझारू एक विकलांग महिला क्रिकेटर के संघर्ष पर आधारित बॉलीवुड फिल्म ‘घूमर’ (Film Ghoomer) को दर्शकों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है. फिल्म की कहानी अनीना (सैयामी खेर) पर केंद्रित है जो भारतीय टीम से खेलने का सपना पाले है और इसके लिए जीजान से जुटी है. वह नेशनल क्रिकेट टीम में जगह बनाने में सफल भी होती है लेकिन तभी कहानी में ट्विस्ट आता है. एक एक्सीडेंट में अनीना दायां हाथ गंवा बैठती है. वह निराश हो जाती है, जिंदगी बोझ जैसी लगने लगती है. इसी दौर में पूर्व क्रिकेटर पद्म सिंह सोढ़ी उर्फ पैडी (अभिषेक बच्चन) फिर से अनीना में उसके सपनों को पूरा करने का हौसला भरता है. जिंदगी से निराश और शराब की लत का शिकार पैडी न सिर्फ अनीना के आत्मविश्वास को वापस लाता है बल्कि उसकी प्रेरणा से वह देश के लिए खेलती है. वापसी की राह में रूल्स भी अनीना के लिए बाधा बनते हैं लेकिन आखिरकार वह भारत की ओर से खेलने के सपने को ‘जीने’ में सफल होती है.
भले ही रुपहले परदे पर उतरी अनीना की यह कहानी काल्पनिक हो लेकिन वास्तविक जीवन में कई प्लेयर्स विकलांगता और अन्य शारीरिक परेशानियों में खुद को साबित करते हुए न सिर्फ देश के लिए खेले हैं बल्कि फैंस के दिलों पर राज भी किया.. नजर डालते हैं, इन खास क्रिकेटरों पर…
पाकिस्तान के शोएब अख्तर (Shoaib Akhtar) जब लंबे रनअप से बॉलिंग के लिए दौड़ लगाना शुरू करते थे तो बैटर का कलेजा मुंह को आता था. विश्व क्रिकेट की सबसे तेज गेंद (161.3 KM प्रति घंटा) फेंकने का रिकॉर्ड उनके ही नाम पर है लेकिन शोएब पांच वर्ष की उम्र तक चल भी नहीं पाते थे और घुटनों के बल रेंगते थे. वे फ्लैटफुटेड हैं जिसके कारण दौड़ने में परेशानी होती थी. जोड़ो में Hyperextension के कारण घुटनों में fluid भर जाता था, इस कारण सूजन और भारी दर्द रहता था. इसके बावजूद शोएब न केवल पाकिस्तान के लिए खेले बल्कि टीम के ‘ट्रंप कार्ड’ रहे. उन्होंने 46 टेस्ट में 178, 163 वनडे में 247 और 15 टी20 में 19 विकेट लिए.
एक कान से सुनाई नहीं देता वॉशिंगटन सुंदर को
वॉशिंगटन सुंदर (Washington Sundar) की गिनती शार्टर फॉर्मेट के बेहतरीन ऑलराउंडर्स में होती है लेकिन उन्हें एक कान से सुनाई नहीं देता. इस कमजोरी के कारण आउटफील्ड में कप्तान और साथी प्लेयर्स के निर्देशों को सुनने में परेशानी होती है .हालांकि वॉशिंगटन ने इस कमजोरी को क्रिकेट की राह में आड़े नहीं आने दिया. वे अब तक चार टेस्ट, 16 वनडे और 37 टी20 मैच खेल चुके हैं.
गप्टिल के एक पैर में केवल दो अंगुलियां
मार्टिन गप्टिल (Martin Guptill) न्यूजीलैंड के शॉर्टर फॉर्मेट के बेहतरीन बैटर रहे हैं. इस ओपनर के बाएं पैर में तीन अंगुलिया नहीं हैं. उनके इस पैर में केवल अंगूठा और एक अंगुली है, इस कारण उन्हें दौड़ने में काफी परेशानी होती है. गप्टिल जब 13 साल के थे तो एक फोर्क लिफ्ट में उनका पैर कुचल गया था. इसके बावजूद उन्होंने देश के लिए क्रिकेट खेलने के सपने को पूरा किया. ODI में दोहरा शतक बना चुके गप्टिल ने 47 टेस्ट, 198 वनडे और 122 टी20 खेले हैं. वनडे में 41.73 के औसत से 7346 और टी20I में 31.81 के औसत से 3531 रन बना चुके हैं.
कलर ब्लाइंडनेस के शिकार हैं मैथ्यू वेड
ऑस्ट्रेलिया के विकेटकीपर बैटर मैथ्यू वेड (Matthew Wade) कलर ब्लाइंडनेस के शिकार हैं, उन्हें रंगों को पहचानने में परेशानी होती है. इस कमी वाले क्रिकेटर्स को ‘पिंक बॉल’ (डे-नाइट टेस्ट) का सामना करने में ज्यादा दिक्कत आती है. यही नहीं, 16 वर्ष की उम्र में वेड को टेस्टिकल कैंसर हो गया था, इस कारण उन्हें कीमोथेरैपी से भी गुजरना पड़ा. 36 टेस्ट, 97 वनडे और 75 टी20 खेल चुके वेड ने 2021 के टी20 वर्ल्डकप सेमीफाइनल में पाकिस्तान के शाहीन अफरीदी की आखिरी तीन गेंदों पर छक्के जड़कर ऑस्ट्रेलिया को जीत दिलाई थी.
हादसे में एक आंख गंवा बैठे थे पटौदी, भारत के लिए 46 टेस्ट खेले
‘टाइगर’ के नाम से लोकप्रिय मंसूर अली खान पटौदी (Mansoor Ali Khan Pataudi) को 20 वर्ष की उम्र में कार एक्सीडेंट में एक आंख गंवानी पड़ी थी. कार का कांच उनकी आंख में घुस गया था लेकिन इसके छह माह बाद ही टेस्ट डेब्यू किया. भारत के लिए 46 टेस्ट खेलते हुए 2793 रन (6 शतक) बनाए. वे भारतीय टीम के कप्तान भी रहे. टेस्ट क्रिकेट में एक दोहरा शतक (नाबाद 203 रन) भी उनके नाम है. एक आंख से खेलने के बावजूद मंसूर अली खान बेहतरीन फील्डर थे.
पोलियोग्रस्त था चंद्रशेखर का बॉलिंग हैंड
भगवत चंद्रशेखर (BS Chandrasekhar) ने शारीरिक विकलांगता को ही क्रिकेट में अपनी ताकत बनाया. भारत की मशहूर स्पिनर चौकड़ी के सदस्य चंद्रशेखर ने लेगब्रेक बॉलिंग से देश को कई टेस्ट जिताए. ‘चंद्रा’ का दायां हाथ पोलियोग्रस्त था और इसी से वे गेंदबाजी करते थे. पोलियोग्रस्त होने के कारण उनका बॉलिंग हैंड काफी तेजी से नीचे आता था. इस कारण उनकी कई गेंदों में काफी गति होती थी, इस कारण भी विपक्षी बैटर चकमा खा जाते थे. गुगली फेंकने में भी वे माहिर थे. 58 टेस्ट में चंद्रशेखर ने 29.74 के औसत से 242 विकेट लिए.
हटन का एक हाथ, दूसरे से था दो इंच छोटा
इंग्लैंड के लेन हटन (Len Hutton) ने टेस्ट डेब्यू वर्ष 1937 में किया था लेकिन 1941 में कमांडो ट्रेनिंग में भीषण हादसे के कारण उनके क्रिकेट छोड़ने की नौबत आ गई. कंपाउंड फ्रैक्चर के बाद बाएं हाथ को ठीक करने के लिए उनकी तीन बोन्स ‘ग्राफ्ट’करनी पड़ींं. इस कारण हटन का बायां हाथ, दाएं हाथ से दो इंच छोटा हो गया था.इसके बावजूद हटन ने न सिर्फ इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी की बल्कि तीन दोहरे शतक भी लगाए. उन्होंने 79 टेस्ट में 56.67 के औसत से 6971 रन बनाए और 364 रन उनका सर्वोच्च स्कोर रहा.
अजीम हफीज के दाएं हाथ में थीं केवल दो उंगली
पाकिस्तान के लिए 80 के दशक में इंटरनेशनल क्रिकेट खेले अजीम हफीज के दाएं हाथ में जन्म से ही दो उंगलियां नहीं थीं. वे बाएं हाथ के तेज गेंदबाज थे. पाकिस्तान के वकार यूनुस, भारत के पार्थिव पटेल और ऑस्ट्रेलिया के पैट कमिंस के हाथ में भी एक-एक उंगली नहीं है.