शिशु के दिल की धड़कन और उसकी समस्या को छोटे से उपकरण की मदद से घर पर ही सुन सकेंगे- जाने तकनीकी के बारे में
तकनीक की मदद से प्रसूताओं को आसान इलाज मिल सके, इस दिशा में चल रहे शोध में डा. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) को बड़ी सफलता हासिल हुई है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पुलक त्रिपाठी, लखनऊ। अब सामान्य स्थिति में गर्भस्थ शिशु का हाल जानने के लिए बार-बार अल्ट्रासाउंड व अन्य जांचों से निजात मिलेगी। शिशु के दिल की धड़कन और उसकी गतिविधियों (हाइपोक्सिया) आदि जैसी समस्या को छोटे से उपकरण की मदद से घर पर ही जाना जा सकेगा। तकनीक की मदद से प्रसूताओं को आसान इलाज मिल सके, इस दिशा में चल रहे शोध में डा. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) को बड़ी सफलता हासिल हुई है। एकेटीयू के सेंटर आफ एडवांस स्टडीज (सीएएस) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लर्निंग एल्गारिद्म की मदद से यह उपकरण तैयार किया है।
ग्रामीण इलाकों के लिए होगा वरदान:
ग्रामीण इलाकों में जहां डाक्टरों और चिकित्सा सुविधाओं की कमी है, वहां गर्भस्थ की जान का जोखिम बना रहता है। इसके चलते प्रसूता को तमाम जांचों व चिकित्सीय प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। नए उपकरण के बाजार में आने से इन क्षेत्रों में भ्रूण के स्वास्थ्य की जांच आसान हो जाएगी। सेंटर फार एडवांस स्टडीज के वैज्ञानिकों की टीम ने फीटल हार्ट रेट (एफएचआर) का उपयोग करके उपकरण तैयार किया। प्रक्रिया के तहत डाप्लर व सेंसर की मदद गर्भस्थ शिशु से सिग्नल के रूप में डाटा कलेक्शन किया गया। जिसके बाद उपकरण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लॄनग तकनीक से गर्भस्थ शिशु के दिलकरी धड़कन के बारे में सटीक जानकारी मुहैया कराता है।
अंतरराष्ट्रीय जनरल में प्रकाशित हुआ शोध:
सीएएस के निदेशक डा. एमके दत्ता ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय जनरल एलसीवियर में शोध प्रकाशित हुआ। देश में कोरोना की दूसरी लहर के कारण चेक गणराज्य के एक अस्पताल की 500 से अधिक प्रसूताओं पर शोध के तहत इस उपकरण का उपयोग किया गया, जिसमें बेहद सार्थक परिणाम सामने आए हैं। चूंकि इसकी कीमत काफी कम होगी, इसलिए क्लिनिकल ट्रायल के बाद इसे सरकारी प्रयासों से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) तक पहुंचाने का प्रयास होगा।
निजी केंद्र में अल्ट्रासाउंड खर्चीला:
अभी गर्भवती को शिशु के स्वास्थ्य का हाल लेने के लिए कई बार निजी केंद्र में अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक, एक बार की अल्ट्रासाउंड जांच में करीब एक हजार रुपये खर्च होते हैैं। अधिकांश सीएचसी व पीएचसी में अल्ट्रासाउंड की सुविधा उपलब्ध ही नहीं है। ऐसे में यह सस्ता उपकरण ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल में बड़ी मदद कर सकता है।
उपकरण की खासियत
-इस उपकरण के दुरुपयोग की संभावना नहीं होगी, क्योंकि इससे भ्रूण के लिंग का पता नहीं लगाया जा सकता।
-डाटा कलेक्शन की प्रक्रिया दस सेकेंड की होगी।
-उपकरण प्रसूता के दिल की धड़कन, कमरे में चल रहे पंखे, एसी व अन्य आवाज को प्रक्रिया के दौरान फिल्टर कर हटा देता है और सिर्फ बच्चे से लिए गए सिग्नल पर ही काम करता है।
- क्नीनिकल ट्रायल के बाद इस उपकरण की बाजार में कीमत अधिकतम पांच हजार से दस हजार रुपये होने की उम्मीद है।
मशीन लर्निंग ने हमारी राह आसान की
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व मशीन लर्निंग ने हमारी राह आसान की है। इसी एल्गारिद्म पर यह उपकरण तैयार किया गया है। ट्रायल के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि इसकी कीमत काफी कम होगी। यह भारत जैसे देश के लिए उपयोगी तकनीक व उपकरण हो सकता है।
- प्रो. एम के दत्ता, निदेशक, सेंटर फार एडवांस स्टडीज, एकेटीयू
इस दिशा में काफी गहन अध्ययन
एआइ व एमएल तकनीक के जरिए सीएएस इस दिशा में काफी गहन अध्ययन कर रहा है। सामने आया यह परिणाम न सिर्फ बड़ी उपलब्धि है बल्कि स्वस्थ भारत की शुरुआत का संकेत भी है।
-प्रो विनय कुमार पाठक, कुलपति, एकेटीयू
यह एक बड़ी उपलब्धि
यदि कोई डिवाइस बच्चे के बारे में जानकारी दे सकती है तो निश्चित तौर पर यह एक बड़ी उपलब्धि है। इसके क्लिनिकल ट्रायल के बाद काफी मदद मिलेगी।
-डा. उमा सिंह, डीन व एचओडी, क्वीन मेरी, केजीएमयू
यह उपकरण काफी कारगर साबित हो सकता है
इंट्रा यूट्राइन डेथ (आइयूडी) यानी गर्भ में ही बच्चे की मृत्यु के मामले अक्सर आते हैं। ऐसे मामलों में प्रसूता को इस बात का भ्रम रहता है कि बच्चे का मूवमेंट हो रहा है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए यह उपकरण काफी कारगर साबित हो सकता है। प्रसूताओं के लिए यह काफी उपयोगी कहा जा सकता है।