बढ़ती उम्र के साथ होती है भूलने की दिक्कत, अब वैज्ञानिक निकाल रहे इसका हल

बढ़ती उम्र के साथ भूलने की दिक्कत लगभग सभी को होती है

Update: 2021-08-26 11:35 GMT

बढ़ती उम्र के साथ भूलने की दिक्कत लगभग सभी को होती है. छोटी-छोटी बातें याद नहीं रहतीं. अब वैज्ञानिक बढ़ती उम्र में भूलने की बीमारी (Age Related Memory Loss) को वापस पलटने के नजदीक पहुंच चुके हैं. भविष्य में इलाज का ऐसा तरीका सामने आएगा, जिससे इंसान बुढ़ापे में भी कोई बात नहीं भूलेगा. इससे हजारों-लाखों लोगों को फायदा होगा. इंग्लैंड के शोधकर्ताओं ऐसी थेरेपी ईजाद कर ली है, जो याद्दाश्त संबंधी समस्याओं का निदान बनेगी. 

दिमाग जिस प्रक्रिया के तहत चीजें सीखता या उन्हें अपनाता है, उसे न्यूरोप्लास्टिसिटी (Neruoplasticity) कहते हैं. इसी प्रक्रिया से याद्दाश्त बनती है. हाल ही में दिमाग के अंदर पेरीन्यूरोनल नेट्स (Peruneuronal Nets - PNNs) की खोज की गई जो न्यूरोप्लास्टिसिटी में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं. 
PNN एक नरम हड्डी जैसी यानी कार्टिलेज (Cartilage) जैसी आकृतियां होती हैं, जो दिमाग के अंदर इनहिबटरी न्यूरॉन्स (Inhibitory Neurons) को घेरकर रखती हैं. इनका मुख्य काम होता है दिमाग में न्यूरोप्लास्टिसिटी की प्रक्रिया को चलाते रहना. ये सबसे पहले इंसान में पांच साल की उम्र में दिखाई पड़ती हैं. उसके बाद ये बढ़ती उम्र के साथ ये धीरे-धीरे कम होती चली जाती हैं. ये दिमाग में मौजूद कनेक्शंस को छोड़ने लगती हैं.
एक उम्र के बाद दिमाग की प्लास्टिसिटी यानी न्यूरोप्लास्टिसिटी आंशिक रूप से कमजोर होने लगती है. जिसकी वजह से दिमाग का लचीलापन खत्म होने लगता है. न ये कुछ सीख पाता है, न ही समझ पाता है. साथ ही याद्दाश्त कमजोर होने लगती है. PNNs में एक खास रसायन कोन्ड्रोइटिन सल्फेट्स (Chondroitin Sulphates) होता है. इसमें से कुछ कोन्ड्रोइटिन 4-सल्फेट्स होते हैं. जो पेरीन्यूरोनल नेट्स की प्रक्रिया को बाधित करते हैं. इससे न्यूरोप्लास्टिसिटी कमजोर होती है. (फोटोःगेटी)
वहीं, कोन्ड्रोइटिन 6-सल्फेट न्यूरोप्लास्टिसिटी को बढ़ावा देता है. जब हमारी उम्र बढ़ती है, तब इन रसायनों का काम पलट जाता है. जैसे-जैसे कोन्ड्रोइटिन 6 सल्फेट का स्तर घटता जाता है, वैसे-वैसे हमारी नई मेमोरी बनाने की क्षमता कम होती चली जाती है. इसी को सामान्य भाषा में उम्र-संबंधी भूलने की बीमारी या दिक्कत कहते हैं. अब इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने PNNs के कोन्ड्रोइटिन सल्फेट रसायनों को बदलने का तरीका खोजा है. जिससे भविष्य में न्यूरोप्लास्टिसिटी बढ़े और उम्र संबंधी याद्दाश्त का कम होना घटने लगे. (फोटोःगेटी)
इस प्रयोग को करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक 20 महीने के चूहे को लिया. जिसे उसकी उम्र के हिसाब से बुजुर्ग कहा जा सकता है. कई जांच के बाद पता चला कि उसे भी मेमोरी लॉस की दिक्कत होती है. जबकि छह महीने का चूहा उससे ज्यादा याद्दाश्त वाला होता है. उन्होंने यह पता करने के लिए चूहे की याद्दाश्त में कितना अंतर आया, उसे एक बक्से में रखा. वहां पर Y आकार के एक जैसे सामान रख दिए. थोड़े दिन रहने के बाद उसे निकाल लिया गया. (फोटोःगेटी)
थोड़े समय बाद उसे फिर उसी बक्से में डाला गया. जिसमें थोड़ी पहेलीनुमा रास्ते बनाए गए. वैज्ञानिकों ने देखा कि चूहे ने एक हाथ में Y आकार डुप्लीकेट सामान और दूसरे हाथ कोई अन्य वस्तु पकड़ी थी. वैज्ञानिकों ने इस दौरान देखा कि चूहा कितने समय में उस डुप्लीकेट सामान को पहचानने में लगा रहा है. बुजुर्ग चूहे ने सही आकार का सामान छोड़ दिया, जबकि युवा चूहे ने सही सामान पकड़ा. 
इसके बाद वैज्ञानिकों एक वायरल वेक्टर तैयार किया. यानी ऐसा वायरस जो कोन्ड्रोइटिन 6-सल्फेट की मात्रा को PNNs में बढ़ाने का काम करता है. थोड़े समय के बाद वैज्ञानिकों ने बुजुर्ग चूहे के दिमाग में परिवर्तन देखा. वह चीजों का ज्यादा याद रख पाने में सक्षम था. इस रिसर्च को करने वाली एक वैज्ञानिक डॉ. जेसिका वोक ने कहा कि हमें बेहद हैरान करने वाले परिणाम मिले हैं. 
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता जेम्स फॉसेट ने कहा कि हमारी स्टडी अभी सिर्फ चूहों पर हुई है. लेकिन यही प्रक्रिया इंसानों में भी होती है. हमारे दिमाग में और चूहों के दिमाग में मौजूद रसायन एक समान होते हैं. इसलिए हम यह दावा कर पा रहे हैं कि भविष्य में बुजुर्ग इंसानों को भूलने की समस्या से निजात दिला सकते हैं. इस समय हम यह पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या हमारी इस स्टडी से अलजाइमर्स जैसे रोगों का इलाज किया जा सकता है क्या? (फोटोःगेटी)
प्रोफेसर फॉसेट ने कहा कि हम कोन्ड्रोइटिन सल्फेट के वायरल वेक्टर के जरिए अलजाइमर्स जैसे रोगों का इलाज कर सकते हैं. हमारी ही यूनिवर्सिटी की दूसरी टीम जो कि सेंटर फॉर ब्रेन रिपेयर में काम करती है, उसने हाल ही में एक रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की थी कि कैसे ग्लूकोमा और डिमेंशिया जैसी बीमारियों से होने वाले दिमागी नुकसान को ठीक किया जा सकता है. यह रिपोर्ट्स मॉलिक्यूलर साइकिट्री में प्रकाशित हुई है. 
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