नई दिल्ली: आज से करीब 36 साल पहले 26 अप्रैल 1986 की अलसुबह चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) में विस्फोट हुआ. जिसे दुनिया का सबसे बुरा परमाणु हादसा (World's Worst Nuclear Disaster) कहा जाता है. कई सालों के वैज्ञानिक रिसर्च और सरकारी जांच के बावजूद अब भी इस हादसे को लेकर कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं. सबसे बड़ा सवाल ये है कि यहां से हो रहे विकिरण यानी रेडिएशन (Radiation) का असर कब खत्म होगा. वो लोग और उनकी पीढ़ियां कब ठीक होंगी जो परमाणु रेडिएशन के शिकार हुए.
वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन के अनुसार चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट यूक्रेन (Ukraine) की राजधानी कीव (Kyiv) से 130 किलोमीटर उत्तर और पड़ोसी मुल्क बेलारूस (Belarus) से 20 किलोमीटर दक्षिण की ओर है. यह प्लांट चार रिएक्टरों से बना है, जिनकी डिजाइनिंग 1970 से 1980 के बीच की गई थी. इसके पास ही एक इंसानों द्वारा निर्मित तालाब है. यह करीब 22 वर्ग किलोमीटर बड़ा है, जिसमें प्रीप्यत नदी (Pripyat River) का पानी आता है. इस तालाब का पानी परमाणु संयंत्रों के रिएक्टर में कूलिंग के लिए काम आता था.
प्रीप्यत शहर (Pripyat City) को 1970 में बसाया गया था. यह चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था. यहां पर साल 1986 में करीब 50 हजार लोग रहते थे. प्लांट से करीब 15 किलोमीटर दूर चेर्नोबिल कस्बा था, जहां पर करीब 12 हजार लोग रहते थे. बाकी का हिस्सा खेती-बाड़ी के लिए उपयोग होता था. या फिर जंगल था.
चेर्नोबिल पावर प्लांट (Chernobyl Power Plant) में सोवियत डिजाइन के चार RBMK-1000 न्यूक्लियर रिएक्टर लगे थे. जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत और कमजोर पाया गया है. RBMK रिएक्टर्स प्रेशर ट्यूब डिजाइन के थे, जिनमें यूरेनियम-235 डाईऑक्साइड को पानी गर्म करने के लिए ईंधन की तरह उपयोग किया जाता था. जिससे भाप निकलती थी. इससे रिएक्टर के टर्बाइन चलते थे. बिजली पैदा होती थी.
बहुत सारे परमाणु संयंत्रों में पानी का उपयोग कूलेंट की तरह होता है. ताकि रिएक्टिविटी को नियंत्रित किया जा सके. ज्यादा गर्मी और भाप को कम किया जा सके. लेकिन RBMK-1000 कोर रिएक्टिविटी को कम करने के लिए ग्रेफाइट (Graphite) का उपयोग करता था. लेकिन न्यूक्लियर कोर जैसे ही ज्यादा गर्म होता है तो उसमें भाप के बुलबुले बनने लगते हैं. इससे कोर ज्यादा रिएक्टिव होने लगता है.
UN Scientific Committee on the Effects of Atomic Radiation के अनुसार 26 अप्रैल 1986 को चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) रूटीन मेंटेनेंस जांच चल रही थी. तभी विस्फोट हुआ. हुआ ये कि संयंत्र के संचालक किसी इलेक्ट्रिकल सिस्टम की जांच करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने जरूरी कंट्रोल सिस्टम्स को बंद कर दिया था. जो सुरक्षा के नियमों के खिलाफ है. इसकी वजह से रिएक्टर खतरनाक स्तर पर असंतुलित हो गए. रिएक्टर-4 बंद किया गया था. ताकि सुरक्षा संबंधी तकनीकों की जांच की जा सके. लेकिन इसी समय विस्फोट हो गया. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि यह हादसा अधिक भाप और अधिक हाइड्रोजन की वजह से हुआ.
क्योंकि अधिक भाप तब बनता है जब कूलिंग वाटर खत्म हो. गर्म हो. या कम हो. इससे रिएक्टर के अंदर तेजी से भाप बनता है. कूलिंग पाइप्स के अंदर ज्यादा भाप बनने से बहुत ज्यादा ऊर्जा पैदा हुई. और रिएक्टर फट गया. यह हादसा 25 अप्रैल की देर रात 1.23 बजे हुआ था. इससे पूरा रिएक्टर-4 फट गया. चारों तरफ रेडियोएक्टिव पदार्थ, यंत्रों के टुकड़ें गिरे. प्लांट और उसके आसपास की इमारतों में आग लग गई. जहरीली गैसें और धूल निकलने लगे. जो हवा के साथ चारों तरफ फैलने लगे. लोग बीमार पड़ने लगे.
चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) में हुए विस्फोट से तुरंत दो कर्मचारियों की मौत हो गई. कुछ ही देर में कुछ अन्य कर्मचारियों की भी मौत हो गई. अगले कुछ दिनों तक इमरजेंसी सेवाओं के लोग आग बुझाने और रेडिएशन रोकने पर लगे हुए थे. प्लांट के लोगों के मरने की संख्या तेजी से बढ़ रही थी. क्योंकि वो तीव्र रेडिएशन के शिकार हो चुके थे. शुरुआती आग सुबह 5 बजे तक बुझ गई थी. लेकिन ग्रेफाइट की आग 10 दिनों तक जलती रही. इसे बुझाने में करीब 250 फायरफाइटर लगे रहे.
फटे हुए रिएक्टर से आयोडीन-131, सेसियम-134 और सेसियम-137 का रेडिएशन निकल रहा था. आयोडीन-131 का रेडिएशन तो 8 दिन में खत्म हो गया था. लेकिन इसकी वजह से लोगों के गले थाइरॉयड ग्लैंड्स में दिक्कत हो गई. सेसियम के आइसोटोप्स का हाफ-लाइफ 30 साल होता है. यानी उसका रेडिएशन ज्यादा लंबे समय तक रहेगा. यानी पर्यावरण और लोगों पर ज्यादा दिनों तक असर. 27 अप्रैल तक प्रीप्यत शहर को खाली कराया गया. यानी घटना के 36 घंटे बाद तक. ज्यादातर लोगों को उलटियां आ रही थीं. सिर दर्द हो रहा था. 14 मई तक प्रशासनिक अधिकारियों ने 30 किलोमीटर का इलाका खाली करा दिया था. इस दौरान 116,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया. अगले कुछ सालों में 2.20 लाख लोगों को कम रेडिएशन इलाकों में भेज दिया गया.
US Nuclear Regulatory Commission के अनुसार चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) हादसे के चार महीने के अंदर प्लांट के 28 कर्मचारियों की मौत हो गई. इनमें से कुछ कर्मचारी तो लोगों को बचाने के चक्कर में रेडिएशन के शिकार हो गए. रेडिएशन से भरी हवा बेलारूस की तरफ मुड़ गई. सोवियत सरकार ने हादसे की सूचना दुनिया को बहुत बाद में दी. इसकी वजह से तीन दिन में रेडिएशन स्वीडन तक पहुंच गया. तब जाकर संयुक्त राष्ट्र के दबाव में सोवियत संघ ने इस हादसे की जानकारी दुनिया को दी.
चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) हादसे में कुल मिलाकर 31 लोगों की मौत सीधे तौर पर हुई थी. साल 1991 से 2015 के बीच थाइरॉयड कैंसर के 20 हजार मामले दर्ज किए गए. इनमें से ज्यादातर मरीज कम उम्र के थे. यानी 18 साल से कम. हालांकि, इसके अलावा कैंसर के अतिरिक्त मामले भी सामने आए हैं. क्योंकि कई कर्मचारी, स्थानीय निवासी और लोग रेडिएशन की चपेट में आए.
टेक्सास टेक यूनिवर्सिटी के नेशनल साइंस रिसर्च लेबोरेटरी के अनुसार चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) हादसे के बाद आसपास के जंगलों में मौजूद पेड़ रेडिएशन की वजह से मर गए. यह इलाका बाद में रेड फॉरेस्ट (Red Forest) कहलाने लगा. क्योंकि यहां रेडिएशन से खराब हुए पेड़ों का रंग लाल अदरक की तरह हो गया था. बाद में इन पेड़ों को गिरा दिया गया और उनके तनों को जमीन में दफन कर दिया गया. रिएक्टर से निकलने वाले रेडिएशन रोकने के लिए उसे कॉन्क्रीट से सीलबंद कर दिया गया.
कॉन्क्रीट का यह ढांचा साल 2006 में बनना शुरु हुआ. जो साल 2017 में जाकर पूरा हुआ. यह करीब 853 फीट चौड़ा, 531 फीट लंबा और 356 फीट ऊंचा है. इस कॉन्क्रीट के ढांचे ने रिएक्टर-4 को पूरी तरह से पैक कर दिया है. यह कम से कम 100 सालों तक इसे सुरक्षित रख पाएगा. लेकिन चेर्नोबिल पावर प्लांट का रिएक्टर-3 साल 2000 तक यूक्रेन को बिजली की सप्लाई करता रहा है. रिएक्टर-2 और 1 साल 1991 और 1996 में बंद हो गए थे. साल 2028 तक इस प्लांट को पूरी तरह से डिकमीशन यानी बंद कर दिया जाएगा.
प्लांट और भूतिया शहर प्रीप्यत और चेर्नोबिल का इलाका करीब 2600 वर्ग किलोमीटर का है. इसे एक्सक्लूसन जोन (Exclusion Zone) कहा जाता है. यहां पर सिर्फ वैज्ञानिक और सरकारी अधिकारी ही आ सकते हैं. इसके अलावा किसी भी व्यक्ति को यहां आने की अनुमति नहीं है. साल 2011 में यूक्रेन ने इस इलाके पर्यटन के हिसाब से खोल दिया था. लोगों को सुरक्षित तरीके से चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) की यात्रा कराई जाती थी.
National Geogrpahic के अनुसार आज चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) के आसपास का इलाका यानी एक्सक्लूसन जोन कई प्रकार के जीव-जंतुओं से भरा हुआ है. क्योंकि यहां पर इंसानों की मौजूदगी नहीं है. यहां पर भेड़िये, हिरण, लीन्क्स, बीवर, बाज, भालू, एल्क जैसे जानवर अक्सर दिखते हैं. उनकी आबादी लगातार बढ़ रही है. क्योंकि इस प्लांट के चारों तरफ अब घना जंगल पैदा हो गया है. यहां मौजूद पेड़ों और जानवरों के शरीर में सेसियम-137 का उच्च स्तरीय रेडिएशन मौजूद रहता है. साल 2019 में 30 से 40 फीसदी ज्यादा लोग यानी पर्यटक इस इलाके में घूमने गए थे. ताकि वो हादसे को समझ सके. वहां की वर्तमान परिस्थितियों को देख सकें.
24 फरवरी 2022 को यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र (Chernobyl Nuclear Plant) और उसके आसपास के इलाकों में रूसी सेना ने कब्जा कर लिया. प्लांट में अंदर रखे परमाणु ईंधन पर अगर किसी तरह का मिसाइल या बम फटता है तो बड़ी आपदा आ सकती है. अगर परमाणु कचरा घर किसी भी तरह से युद्ध के दौरान क्षतिग्रस्त होता है तो रेडियोएक्टिव धूल की वजह से यूक्रेन, बेलारूस और यूरोपियन देशों में नई आफत आ सकती है. यह खबर Livescience.com में प्रकाशित हुई है.