इंसानों ने कब शुरू किया चिकन खाना... पहले तो इसे 'पवित्र' मानते थे, जानें

मुर्गे को खाने से पहले इंसानों ने उसे पालना शुरु किया

Update: 2022-06-10 16:11 GMT

मुर्गे को खाने से पहले इंसानों ने उसे पालना शुरु किया. लेकिन पालना कब शुरू किया और क्यों? क्या मुर्गे देखने में अच्छे लगते थे. या फिर उनका इंसानों के साथ कोई खास संबंध था. क्योंकि इंसानों को पहले तो मुर्गे का स्वाद नहीं पता था. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि मुर्गा इतना पसंदीदा व्यंजन बन गया. इस बात का पता करने के लिए यूरोप के वैज्ञानिकों ने दुनियाभर के कई देशों में खोजबीन की. आइए जानते हैं मुर्गे को पालने से लेकर खाने की रोचक कहानी..

पहले हुई स्टडीज में इस बात का खुलासा हुआ था कि मुर्गे को पालने की परंपरा 10 हजार साल पहले एशिया में शुरू हुई. खासतौर से चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया या भारत में. बाद में यह बताया गया कि यूरोप में 7000 साल पहले चिकन खाना शुरू किया गया था. हालांकि आपको बता दें कि मुर्गा इकलौता ऐसे जीव है, जिसे सबसे ज्यादा घरेलू तौर पर पाला जाता है. चाहे वह खाने के लिए हो या फिर अंडों के लिए. 
यूरोपियन रिसर्चर्स ने यह बात पुख्ता तौर पर पता कर ली है कि मुर्गे का इंसानों ने पालना कब शुरू किया. मुर्गे को घरेलू तौर पर पालने की शुरुआत 1500 ईसा पूर्व के आसपास शुरु हुई थी. यानी आज से करीब 3522 साल पहले. इन्हें पालने की शुरुआत के जो सबूत मिलते हैं उनके हिसाब से इन्हें सबसे पहले लाओस (Laos), कंबोडिया (Cambodia), वियतनाम (Vietnam), म्यांमार (Myanmar) और थाईलैंड (Thailand) में पाला गया था. इसका मतलब ये है कि चीन और यूरोप में हजारों साल पहले मुर्गे नहीं पाले गए थे. कम से कम नई स्टडी से तो यही पता चलता है
मुर्गे को घरेलू बनाने को लेकर जो स्टडी हुई है, वह दो अलग-अलग जर्नल में प्रकाशित हुई है. पहली है एंटीक्विटी और दूसरी है प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस (PNAS). इस स्टडी में एक्स्टर, म्यूनिख, कार्डिफ, ऑक्सफोर्ड, बॉर्नमाउथ, तोलाउस, जर्मनी और फ्रांस की यूनिवर्सिटीज के वैज्ञानिक शामिल हैं. इन लोगों ने अपने काम दो हिस्सों में बांटा. उसके उन पर स्टडी की, जो दो अलग-अलग जर्नल में प्रकाशित हुई है. 
वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी के लिए 89 देशों के 600 आर्कियोलॉजिकल स्थानों की जांच की. उन्होंने वहां से मिले मुर्गों के अवशेषों का अध्ययन शुरू किया. ताकि मुर्गों की हड्डियों से उनकी आंतरिक सरंचना के बारे में पता कर सकें. इसके बाद जिन स्थानों पर ये हड्डियां मिलीं हैं, वहां की संस्कृतियों और समाज के इतिहास के बारे में पता किया गया. रेडियोकार्बन डेटिंग से मुर्गों के जिंदा रहने और मारे जाने के समय का पता किया गया.
यूनिवर्सिटी ऑफ एक्स्टर के प्रेस रिलीज के मुताबिक एवियन आर्कियोलॉजी की एक्सपर्ट डॉ. जूलिया बेस्ट ने बताया कि पहली बार रेडियोकार्बन डेटिंग के जरिए हमने समाज में मुर्गों के महत्व का पता किया है. हमारी स्टडी से स्पष्ट तौर पर पता चलता है कि इंसानों का मुर्गों से आमना-सामना कब हुआ था. कब उन्होंने मुर्गों को अपने पास आने की इजाजत दी. कब मुर्गों को पालना शुरू किया और कब उसे खाना शुरू कर दिया था.

Similar News

-->