कब कहां और कैसे पालतू जानवर बनी थीं मुर्गियां

मानव इतिहास लिखने से पहले मानव सभ्यता के विकास की बहुत सी जानकारियां हमें काफी कुछ सिखा सकती हैं. कैसे इंसान ने जंगलों से बाहर निकल कर मैदानों में खेती करना सीखा.

Update: 2022-06-12 02:34 GMT

मानव इतिहास (Human History) लिखने से पहले मानव सभ्यता के विकास की बहुत सी जानकारियां हमें काफी कुछ सिखा सकती हैं. कैसे इंसान ने जंगलों से बाहर निकल कर मैदानों में खेती करना सीखा. कैसे जानवरों को पालना (Domestication of Animal) सिखा. कैसे सामाजिक व्यवस्थाएं विकसित की और कैसे अर्थव्यव्स्था के आयाम बनते चले गए. ये सारी चीजें कब कैसे और कहां विकसित हुईं यह जानना हमारे प्रागैतिहास के अहम तत्व हैं. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि वास्तव में किन हालातों में और कब मानव ने मुर्गियों () को पालना (Domestication of Chickens) शुरू किया था. इस नए अध्ययन ने पुरानी जानकारी को पूरी तरह से खारिज कर दिया है. 

इस अध्ययन ने 3500 साल पहले मुर्गियों के पालन (Domestication of Chickens) की शुरुआत के समय और हालात, उनका एशिया से पश्चिम में फैलाव और उनके बारे में समाजों में प्रचलित धारणाओं की समझ में बदलाव किया है. विशेषज्ञों ने पाया है कि चावल की खेती (Rice Farming) शुरू होने से एक प्रक्रिया शुरू हुई जिसका नतीजा यह हुआ कि मुर्गियां दुनिया की संबसे ज्यादा संख्या वाली जानवर हो गईं. उन्होंने पाया कि पहले मुर्गियों को तो अजीब जानवर समझा जाता था लेकिन कई सदियों बाद ही वह खाने (Chicken As Food) का हिस्सा बनीं. 

इससे पहले की पड़तालों ने दावा किया था कि मुर्गियों को दस हजार साल पहले चीन, दक्षिण एशिया या भारत में पालतू जानवर (Domestication of Chickens) बनाया गया था और यूरोप में यह काम करीब 7 हजार साल पहले हुआ था. नए अध्ययन में दर्शाया गया है कि यह गलत है. मुर्गियों के पालतू बननने की पीछे का कारक बल दक्षिणपूर्व एशिया में सूखे चावल की खेती (Rice Farming) का शुरू होना था जहां मुर्गियों के जंगली पूर्वज लाल जंगली फाउल (red jungle fowl) रहा करते थे. सूखे चावल की खेती ने मुर्गी के पूर्वजों के लिए चुंबक का काम किया जिससे ये जंगलों के पेड़ों को छोड़ कर बाहर आए और उनका इंसानों से नाता बनना शुरू हुआ और मुर्गियों का विकास भी. 

मुर्गियों की पालतू (Domestication of Chickens) बनने की प्रक्रिया तो करीब 1500 साल ईसापूर्व दक्षिण पूर्वी एशिया प्रायद्वीप में ही शुरू हो गई थी. अध्ययन सुझाता है कि मुर्गियां तब पहले एशिया (Asia) में फैले और उसके बाद ग्रीक, फिनीसियन आदि समुद्री व्यापरियों के द्वारा उपयोग किए गए रास्तों के जरिए भूमध्यसागर के इलाकों में फैल गए. यूरोप के लौह युग में मुर्गियों की पूजा (veneration of Chicken) की जाती थी और उन्हें खाया नहीं जाता था. अध्ययनों ने दर्शाया है कि बहुत सी शुरुआती मुर्गियों को अकेले ही दफनाया जाता था, बहुतों को तो लोगों के साथ दफनाया जाता था. रोमन साम्राज्य ने मुर्गियों और अंडों को भोजन के रूप में प्रचारित किया. वहीं ब्रिटेन में भी तीसरी सदी तक मुर्गियां नियमित खुराक का हिस्सा नहीं बनी थीं.

इस अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक टीम 89 देशों के 600 जगहों पर मुर्गियों (Chickens) के अवशेषों का पुनर्मूल्यांकन किया. उन्होंने मुर्गियों के हड्डियों के ढांचे (Chicken Skeleton) का अध्ययन किया, उनके दफनाने के स्थान और उनके सामाजिक और सांस्कृतिक ऐतिहासिक रिकॉर्ड की पड़ताल की जहां उनकी हड्डियां मिली थीं. इनमें सबसे पुरानी हड्डियां मध्य थाइलैंड (Thailand) में मिली जो 1650 और 1250 ईसापूर्व की थीं. शोधकर्ताओं ने पाया कि यूरोप में मुर्गियां एक सदी ईसा पूर्व की जगह 800 ईसापूर्व में आईं थीं. 

वहीं भूमध्य सागर के इलाकों में आने के बाद भी स्कॉटलैंड, आयरलैंड आइसलैंड और स्कैनडीनेवियन देशों में मुर्गियों के प्रचलित होने (Domestication of Chickens) में एक हजार साल का समय लग गया था. एंटिक्विटी और प्रोसिडिंग्स ऑफ दे नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस नाम के दो जर्नल में प्रकाश अध्ययन के शोधकर्ताओं ने बताया कि मानव (Humans) का मुर्गियों से संबंध ज्यादा जटिल था और सदियों तक उन्हें पूजा (veneration) जाता था. इस अध्ययन से पता चलता है कि कैसे चावल की खेती ने एक उत्प्रेरक के तौर पर काम करते हुए उनके पालतू बनने और उनके वैश्विक प्रसार में योगदान दिया था.

पहली बार इतने बड़े पैमाने पर रोडियोकार्बन डेटिंग तकनीक (Carbon Dating Technique) का उपयोग किया गया. शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके नतीजे दर्शाते हैं कि पहले के प्रस्तावित मुर्गियों नमूने की तारीखों पर फिर से काम करने की जरूरत है. वहीं अनाज आधारित खुराक, समुद्री रास्तों ने मुर्गियों (Chickens) को एशिया (Asia), ओशियाना, अफ्रीका और यूरोप में फैलने में सहायता दी. शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि ये अध्ययन संग्रहालय और पुरातन काल का खुलासा करने वाले पुरातत्व पदार्थों की अहमियत के मूल्यों को प्रदर्शित करते हैं. 

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