उल्कापिंड और धूमकेतुओं के साथ क्या है महाविनाश का संबंध? वैज्ञानिकों ने बताई ये बात
विशाल ज्वालामुखी और धूमकेतु से टक्कर
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कयामत या प्रलय के दिन किसी फिल्मी कहानी के क्लाइमैक्स जैसा लगता है लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि विज्ञान के आधार पर यह आकलन किया भी जा सकता है कि प्रलय कब आएगी। एक्सपर्ट्स के मुताबिक धरती पर हर 2.7 करोड़ साल के बाद वैश्विस स्तर पर भीषण विनाशकारी घटनाएं होती हैं लेकिन आखिरी बार ऐसी घटना 6.6 करोड़ साल पहले हुई थी जब शायद एक ऐस्टरॉइड या धूमकेतु के गिरने से डायनोसॉर विलुप्त हो गए थे। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रलय कम से कम 3 करोड़ साल पीछे है।
पूरी धरती पर अंधेरा, आग और एसिड की बारिश...
दरअसल, एक्सपर्ट्स का मानना है कि विनाशकारी घटनाएं, जैसे उल्कापिंडों का गिरना या कोई विस्फोट साइकल में बंधा होता है। नए स्टेटिस्टिकल अनैलेसिस के आधार पर अमेरिका के रिसर्चर्स ने पाया है कि पूरे जीवन को खत्म कर देने वाले धूमकेतुओं की बारिश हर 2.6 से 3 करोड़ साल पर होती है जब वे गैलेक्सी से होकर गुजरते हैं। अगर ये धूमकेतु धरती से टकराते हैं तो पूरी दुनिया में अंधेरा और ठंड, जंगलों में आग, एसिड की बारिश होगी और ओजोन परत खत्म हो जाएगी। इससे जमीन के साथ-साथ पानी में रहने वाले जीव भी खत्म हो जाएंगे।
एक साथ आती है आफत
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया है कि अभी तक जमीन और पानी पर एकसाथ हुए सारे विनाश तब हुए थे जब धरती के अंदर से लावा निकलकर बाहर आ गया था। इसकी वजह से भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें पैदा हो जाती हैं और महासागरों में ऑक्सिजन कम हो जाती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि आकाशगंगा में जिस तरह से हमारा ग्रह चक्कर लगाता है, उससे खतरा भी तय होता है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रफेसर और स्टडी के लेखक माइकल रैम्पीनो का कहना है, 'ऐसा लगता है कि बड़े ऑब्जेक्ट और धरती के अंदर होने वाली ऐक्टिविटी जिससे लावा निकल सकता है, ये 2.7 करोड़ साल के अंतर पर विनाशकारी घटनाओं के साथ हो सकता है।'
विशाल ज्वालामुखी और धूमकेतु से टक्कर
उन्होंने यह भी बताया है पिछली तीन ऐसी विनाशकारी घटनाएं तभी हुई थीं जब 25 करोड़ साल पहले सबसे बड़े इंपैक्ट देखे गए थे। ये सभी वैश्विक स्तर पर आपदा और सामूहिक विनाश का कारण बनने की क्षमता रखते थे। वैश्विक स्तर पर सामूहिक विनाश की घटना ऐसी टक्करों और विशाल ज्वालामुखियों की वजह से हुए होंगे। ये सभी नतीजे हिस्टॉरिकल बायॉलजी पत्रिका में छपे हैं। माना जाता है कि ऐस्टरॉइड्स की टक्कर से ही डायनोसॉर की पूरी प्रजाति विलुप्त हो गई थी।