ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और चीन का अंतरिक्ष में अभियान खासतौर पर खतरनाक है, वह भी तब जब अंतरिक्ष उपग्रहों की भीड़ से भर गया है। एलन मस्क, जेफ बेजोस जैसे अरबपतियों से लेकर रवांडा और फिलीपीन्स तक खुद का सैटलाइट लॉन्च कर रहे हैं। इनका मकसद डिजिटली दुनिया के साथ कदम ताल करना है और व्यवसायिक अवसरों की तलाश करना है। अमेरिका और चीन का बहुत कुछ इसको लेकर दांव पर लगा है लेकिन दोनों के बीच मतभेद काफी बढ़ते जा रहे हैं। अंतरिक्ष में चीन और अमेरिका के सहयोग नहीं करने से स्पेस में हथियारों की होड़ शुरू होने का खतरा पैदा हो गया है।
चांद पर 'कब्जा' करने की तैयारी कर रहा 'ड्रैगन', बनाएगा लूनर रिसर्च स्टेशन
'दक्षिण चीन सागर की तरह से चांद के संसाधनों पर चीन का होगा दावा'
इसके अलावा चांद पर अरबों डॉलर के खनिज पदार्थ छिपे हुए हैं, जिन्हें निकालने के लिए भी दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ सकता है। ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्रालय के एक पूर्व अधिकारी मैल्कम डेविस ने कहा, 'पश्चिमी में हमारी चिंता यह है कि सड़क पर चलने का रास्ता कौन तय करेगा, खासतौर पर संसाधनों तक पहुंच।' डेविस ने कहा, 'सबसे बड़ा खतरा यह है कि आपके पास दो अलग-अलग नियम हैं। आप पा सकते हैं कि साल 2030 के दशक तक एक चीनी कंपनी चांद पर होगी और पूरे दक्षिण चीन सागर की तरह से चांद के संसाधनों पर अपना दावा कर सकती है।'
अंतरिक्ष अब तक ऐसी जगह थी जहां पर मानवता के हित के लिए विरोधी देश भी एक साथ आ गए थे। हालांकि अब अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी देश चीन और रूस के साथ चल रही प्रतिस्पर्द्धा को अंतरिक्ष तक लेकर पहुंच गए हैं। चीन और रूस का आरोप है कि अमेरिका यूक्रेन और ताइवान में तनाव को बढ़ा रहा है। चीन के सरकारी मीडिया ने चेतावनी दी है कि अमेरिका अब 'अंतरिक्ष में नाटो' बनाना चाहता है। दरअसल, इस पूरे विवाद की जड़ में अमेरिका का बनाया अर्तेमिस समझौता है जो उसने चांद, मंगल और उसके आगे के ब्रह्मांड के लिए बनाया है। इसके सिद्धांत कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। नासा इस दशक के अंत तक चांद पर इंसान को उतारना चाहती है और वहां से अनमोल खनिजों की खुदाई शुरू करना चाहती है।
चीन को एक स्पेस पावर बनाना चाहते हैं शी जिनपिंग
अर्तेमिस समझौते को अब तक 19 देशों ने अपनी सहमति दे दी है। यूक्रेन ने साल 2020 में इस समझौते को मंजूरी दे दी थी। चीन और रूस दोनों ने ही इस समझौते का विरोध किया है। चीन और रूस दोनों ने ही अब अंतरिक्ष में और ज्यादा सहयोग बढ़ाने का ऐलान किया है। वे अब चांद के लिए एक वैकल्पिक प्रोजेक्ट को बढ़ावा दे रहे हैं और उनका कहना है कि यह सभी देशों के लिए खुला रहेगा। इसे अंतरराष्ट्रीय लूनर रिसर्च स्टेशन नाम दिया गया है। चीन को अमेरिकी समझौते में मुख्य आपत्ति 'सेफ्टी जोन' को लेकर है। यह सेफ्टी जोन चांद पर बनाए गए कुछ इलाके होंगे जिससे अन्य देशों को परहेज करना होगा। चीन इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मान रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का सपना है कि देश को स्पेस इंडस्ट्री बनाना चाहिए। वह चीन को एक स्पेस पावर बनाना चाहते हैं। चीन रोबोट से लैस लूनर मिशन साल 2025 में रवाना करने जा रहा है। चीन की साल 2030 तक अंतरिक्षयात्री चांद पर भेजने की योजना है। चीन भविष्य का नासा बनना चाहता है