अमेरीकी रिपोर्ट- महासागर करेंगे हवा से कार्बन हटाने में मदद
जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को रोकने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन (CO2 Emission) कम करना काफी नहीं होगा
वैज्ञानिक अब महसूस कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को रोकने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन (CO2 Emission) कम करना काफी नहीं होगा. अमेरिका के नेशनल एकेडमीज ऑफ साइंसेस, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2050 तक हर साल दुनिया से 10 अरब टन की कार्बन डाइऑक्साइड हटानी होगी. जो वर्तमान सालाना उत्सर्जन का चौथाई हिस्सा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस काम के लिए महासागरों की प्रक्रियाओं की मदद ली जा सकती है. उन्होंने सुझाया है कि इस दिशा में गहन शोध शुरू किया जाना चाहिए. महासागरों में बहुत सी प्रक्रियाएं ऐसी है जो कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने में कारगर साबित हो सकती हैं. इनमें से 6 की अनुशंसा भी की गई है.
पोषण उर्वरण (Nutrition Fertilization) एक बहुत काम की प्रक्रिया है. इसमें फॉसफोरस या नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्वों को महासागरों की सतह पर डाला जाता है. इससे सतह पर ही पादप प्लवक (phytoplankton) से प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया बढ़ जाती है. इन पादप प्लवको के मरने पर उनका कुछ हिस्सा समुद्र में डूब जाता है जिससे गहरे समुद्र में कार्बन की मात्रा ज्यादा जाने लगती है जहा वह कार्बन सदियों तक रह सकता है.
दूसरी तकनीक के रूप में रिपोर्ट में समुद्री शिवार या समुद्री खरपतवार की खेती (Seaweed Cultivation) का जिक्र किया है. विशाल स्तर पर इसकी खेती कार्बन (Carbon) को गहरे समुद्र या अवसादों में पहुंचा देगी. रिपोर्ट के अनुसार मध्यम प्रभावोत्पादकता के साथ कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) हटाई जा सकेगी. लेकिन इसमें जोखिम ज्यादा भी हो सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए शोध में करीब 13 करोड़ डॉलर की जरूरत होगी.
पारिस्थितिकी तंत्र सुधार (Ecosystem Recovery) वैज्ञानिकों की सुझाई तीसरी तकनीक है. इसमें समुद्र तटीय पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और बहाली के लिए काम किया जाएगा. इससे मछलियां , व्हेल, और अन्य समुद्री वन्य जीवों की बहाली की जाएगी जो कार्बन को पकड़ कर उसे अलग कर सकते हैं. इसमें पर्यावरणीय जोखिम कम हैं और इसे अन्य लाभ भी हैं. इसमें 22 करोड़ का खर्चा आ सकता है.
महासागरीय क्षारीयता वृद्धि (Ocean Alkalinity Enhancement) तकनीक में महासागरों Oceans) के पानी में रासायनिक बदालव कर उसकी क्षारीयता बदली जाएगी जिससे समुद्र रासायिक प्रतिक्रियाओं के लिए और भी कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण (CO2 Absorbtion) करने लगेगा. इसमें पर्यावरणीय जोखिम मध्यम है और खर्चा 12.5 से लेकर 20 करोड़ डॉलर का खर्चा हो सकता है.
इलेक्ट्रोकैमिकल प्रक्रिया (Electrochemical process) भी कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा को कम करने में सहयाक हो सकती है. जब पानी में विद्युत धारा (Electric Current) प्रवाहित की जाती है तो या तो वह समुद्री पानी में अम्लीयता बढ़ा देगी या फिर क्षारीयता बढ़ा देगी. लेकिन यह प्रक्रिया सुझाई गई प्रक्रियाओं में सबसे महंगी है. लेकिन इसकी प्रभावोत्पादकता भी बहुत अधिक है. इसमें करीब 35 करोड़ डॉलर का खर्चा होगा.
आर्टिफीशियल अपवेलिंग और डाउनलोडिंग (Artificial Upwelling and Downwelling) वैज्ञानिकों की सुझाई एक और प्रक्रिया है. अपवेलिंग में ठंडा, पोषक युक्त CO2 समृद्ध गहरा पानी सतह पर आता है इससे पादक प्लवक (phytoplankton) की वृद्धि होने लगती है. वहीं डाउनवेलिंग में सतह से पानी नीचे जाता है और उसके साथ कार्बन (Carbon) भी गहरे समुद्र में जाता है. इस प्रक्रिया की सटीकता की उम्मीद तो कम है, लेकिन इसमें खर्चा केवल 2.5 करोड़ डॉलर तक आएगा.