यह तबाही का अलार्म! इंसानों को बचकर रहने की जरूरत, जाग रहा है सूरज
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नई दिल्ली: सूरज जाग रहा है और वो चाहता है कि ये बात हम सभी को पता चले. 3 और 4 नवंबर को सूरज ने धरती की ओर तेज सौर लहरें फेंकी थीं. जिसकी वजह से अमेरिका समेत धरती के उत्तरी गोलार्द्ध में नॉर्दन लाइट्स देखने को मिली थी. इससे पहले सूरज 1 और 2 नवंबर को भी गुस्से में था. सूरज में लगातार स्पॉट बन रहे हैं, उनमें होने वाले विस्फोट से निकलने वाली लहरें धरती की ओर आ रही हैं. आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? अचानक से सूरज जाग कैसे गया? वो सो क्यों रहा था?
असल में सूरज के सक्रिय होने का एक साइकिल होता है. जिसे सोलर साइकिल (Solar Cycle) कहते हैं. यह 11 साल का होता है. ग्यारह साल ये शांत रहता है, उसके बाद ये तेजी से विस्फोट करने लगता है. इसमें कोरोनल मास इजेक्शन होता है. यानी सनस्पॉट बनते हैं. फिर वो फटते हैं. उनसे निकलने वाली लहरें धरती की ओर आती हैं. नेशनल ओशिएनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) में स्पेस वेदर प्रेडिक्शन सेंटर के प्रोग्राम कॉर्डिनेटर बिल मुर्ताघ ने बताया कि पिछले कुछ सालों से सूरज में किसी तरह भी गतिविधि नहीं हो रही थी. वो शांत था. लेकिन अब नहीं है.
बिल मुर्ताघ ने कहा कि जिस समय सूरज की गतिविधि कम थी, उसे सोलर मिनिमम (Solar Minimum) कहते हैं. अगला सोलर मैक्सिमम (Solar Maximum) यानी सूरज की ज्यादा गतिविधि साल 2025 में होने की आशंका है. ये गतिविधि दो साल पहले साल 2019 से धीरे-धीरे शुरु हुई है. साल 2025 तक यह तीव्र स्तर पर होगी. ऐसे सौर तूफानों और सौर गतिविधियों के लिए हमें अगले कुछ सालों तक तैयार रहना होगा. इसकी वजह से सैटेलाइट्स और इलेक्ट्रिक ग्रिड्स को नुकसान होता है.
पिछले हफ्ते सूरज से कई सौर तूफान धरती की तरफ आए. यानी वहां पर कई कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection - CME) हुए हैं. वहां पर सूरज आग के बुलबुले फोड़ रहा है. ये एक बार में अरबों टन वजनी प्लाज्मा गैस और चुंबकीय फील्ड पैदा होता है. ये तेजी से सौर मंडल में फैलने लगता है. यह गर्म और आवेषित लहर तेजी से धरती की ओर आने लगती है. उसे करीब 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है.
बिल मुर्ताघ ने बताया कि धरती का अपना चुंबकीय क्षेत्र है. जब सूरज से आने वाली सौर लहर और धरती का चुंबकीय क्षेत्र आपस में टकराते हैं, तब आसमान में जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म की स्थिति पैदा होती है. यानी नॉर्दन लाइट्स देखने को मिलता है. अगर इस तूफान की तीव्रता ज्यादा हो जाती है तो सैटेलाइट्स, पावर ग्रिड्स आदि को नुकसान पहुंच सकता है.
कई बार ये सौर तूफान खुद को सौर मंडल में फैलने के दौरान ही बढ़ाते हैं. जैसे एक लहर बढ़ी, जब तक वो कमजोर हो...तब तक पीछे से एक मजबूत लहर आ जाती है. इसकी वजह से सौर तूफान मजबूत हो जाता है. यह निर्भर करता है कि कोरोनल मास इजेक्शन कितना बड़ा है. साथ ही इस लहर के आसपास चुंबकीय क्षेत्र कितना है. पिछले हफ्ते मध्यम तीव्रता का सौर तूफान आया था. जिसकी वजह से अमेरिका समेत उत्तरी गोलार्द्ध पर काफी ज्यादा आसमानी आतिशबाजी यानी नॉर्दन लाइट्स देखने को मिला था.
बिल मुर्ताघ ने कहा कि कई बार ये सौर लहरें एक दूसरे को ही खा जाती हैं. इसलिए हम इन्हें कैनिबल सीएमई (Cannibal CME) कहते हैं. सबसे बड़ा डर ये है कि हमारे पास सौर तूफान और उससे पड़ने वाले असर को लेकर डेटा बहुत कम है. इसलिए हम ये अंदाजा नहीं लगा सकते कि नुकसान कितना बड़ा होगा. दुनिया में सबसे भयावह सौर तूफान 1859, 1921 और 1989 में आए थे. इनकी वजह से कई देशों में बिजली सप्लाई बाधित हुई थी. ग्रिड्स फेल हो गए थे. कई राज्य घंटों तक अंधेरे में थे.
1859 में इलेक्ट्रिकल ग्रिड्स नहीं थे, इसलिए उनपर असर नहीं हुआ लेकिन कम्पास का नीडल लगातार कई घंटों तक घूमता रहा था. जिसकी वजह से समुद्री यातायात बाधित हो गई थी. उत्तरी ध्रुव पर दिखने वाली नॉर्दन लाइट्स यानी अरोरा बोरियेलिस (Aurora Borealis) को इक्वेटर लाइन पर मौजूद कोलंबिया के आसमान में बनते देखा गया था. नॉर्दन लाइट्स हमेशा ध्रुवों पर ही बनता है.
1989 में आए सौर तूफान की वजह से उत्तर-पूर्व कनाडा के क्यूबेक में स्थित हाइड्रो पावर ग्रिड फेल हो गया था. आधे देश में 9 घंटे तक अंधेरा कायम था. कहीं बिजली नहीं थी. पिछले दो दशकों से सौर तूफान नहीं आया है. सूरज की गतिविधि काफी कमजोर है. इसका मतलब ये नहीं है कि सौर तूफान आ नहीं सकता. ऐसा लगता है कि सूरज की शांति किसी बड़े सौर तूफान से पहले का सन्नाटा है.