रूह कंपाने वाली थी विधि,अटाकामा रेगिस्तान में 7000 साल से दफन है चिंचोरो सभ्यता, जिन्होंने पहली बार लाश को बनाया 'ममी'
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सैंटियागो : चिली के अटाकामा रेगिस्तान में लगभग 7000 साल पहले दफन ममियां संकट में हैं। धीरे-धीरे ये मिट्टी में मिलती जा रही हैं। इलाके में अक्सर जमीन से तीन फीट से भी कम नीचे ममियां मिल जाती हैं। पुरातत्वविद इन्हें 'अल्टीमेल सर्वाइवर' (Ultimate Survivor) कहते हैं क्योंकि ये मिस्र की कुछ सबसे पुरानी ममियों से लगभग 2 हजार साल पुरानी हैं। लेकिन दुर्लभ पुरातात्विक खजाना अब एक लुप्तप्राय प्रजाति बनने के करीब है और इसके पीछे इसकी प्राचीनता के अलावा भी कई कारण हैं।
बीबीसी ट्रैवल के जुआन फ्रांसिस्को रिमालो ने ममियों के महत्व पर एक रिपोर्ट की है। उनकी रिपोर्ट उत्तरी चिली के चिंचोरो लोगों के संरक्षित शरीर के संकट पर बात करती है, यह 'दुनिया में पहली ज्ञात सभ्यता है जो मृतकों को ममी बनाती थी'। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार अटाकामा रेगिस्तान के 'शुष्क और मुश्किल उत्तरी तट' में रहते हुए, इन 'समुद्री शिकारियों' ने, 5450 ई.पू. से 890 ई. पू., 4000 से अधिक साल तक इस सभ्यता को बरकार रखा।
'कृत्रिम ममीकरण का सबसे पुराना सबूत'
यूनिवर्सिटी ऑफ तारापाका के मानवविज्ञानी बर्नार्डो अरियाज़ा ने बीबीसी को बताया कि वे 'अटाकामा रेगिस्तान के खोजकर्ता थे'। लेकिन प्राचीन सभ्यता की ममियों को अब जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मानवविज्ञानियों को उम्मीद थी कि 2021 में कुछ बदलाव आएगा जब चिंचोरो सभ्यता को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में जगह मिल गई। संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने इस जगह को 'कृत्रिम ममीकरण का सबसे पुराना ज्ञात पुरातात्विक साक्ष्य' कहा है।
चिंचोरो में बिना भेदभाव के होता था ममीकरण
1917 में शुरुआती जानकारियां जुटाने के बाद पुरातत्वविदों को 280 से अधिक ममी मिल चुकी हैं। इनमें से सिर्फ लगभग 100 को ही जनता के देखने के लिए प्रदर्शनी में रखा गया है। एरिका की स्थानीय सरकार अब क्षेत्र में 'चिंचोरो संग्रहालय और पुरातात्विक पार्क' बनाने पर विचार कर रही है। चिंचोरो ममियों की सबसे खास बात यह थी कि हर मृतक का ममीकरण किया जाता था, चाहें वह किसी भी परिवार का हो या कितना भी अमीर हो। वे अपने मृतकों को दफनाते नहीं थे।
ममी बनाने का तरीका था बेहद खौफनाक
एरिका में कैमरोन की नगर पालिका के प्रमुख पुरातत्वविद वलेस्का लैबोर्डे के मुताबिक जब एक चिंचोरो परिवार एक जगह से दूसरी जगह जाता था तो वे अपने परिवार के ममीकृत शवों को अपने साथ ले जाते थे। गार्जियन के लारेंस ब्लेयर लिखते हैं, 'ममीकरण की प्रक्रिया को आज काफी भीषण माना जाएगा। लाश को बिना त्वचा और आंतरिक अंगों के छोड़ दिया जाता था और सिर्फ कंकाल बचता था। इसके बाद हड्डियों को घास के लेप, समुद्री शेर की खाल, मिट्टी, अल्पाका के ऊन और इंसानों के बालों में लपेटा जाता था।' चिंचोरो के लिए ममीकरण एक कला थी। अरियाज़ा ने गार्जियन को बताया कि शरीर उनके लिए एक कैनवास था जहां वे अपनी भावनाएं जाहिर करते थे।