लता मंगेशकर की सुरीली आवाज सदियों तक फिजाओं में गूंजती रहेगी, साइंटिफिक कारण जानें कोई मधुर क्यों गाता है?
नई दिल्ली: किसी भी गायक के शरीर का आकार आम इंसानों जैसा ही होता है. उसका फेफड़ा उतना ही बड़ा होता है, जितना किसी अन्य इंसान का. यहां तक उसका गला भी. गले और मुंह में बातचीत करने वाली मांसपेशियां और ग्रंथियां भी एक जैसी और एक ही आकार की होती हैं. फिर कोई बेहतर क्यों गा लेता है? कोई गा ही नहीं पाता और कुछ तो गाने के नाम पर बेड़ागर्क कर देते हैं. आखिर जब गायकों के शरीर की संरचना आम इंसानों जैसी ही होती है तो वो बेहतर गाते कैसे हैं?
the world.org में प्रकाशित खबर के अनुसार मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के वॉयस सेंटर के निदेशक डॉ. स्टीवन जीटेल्स कहते हैं कि किसी बेहतर गाने या सुमधुर आवाज के पीछे वोकल मसल (Vocal Muscle) जिम्मेदार होती हैं. यह हमारे चेहरे के पीछे स्थित एक खास प्रकार की मांसपेशी है, जो हमे बोलने और गाने में मदद करती है. ये आमतौर पर लैरिंक्स (Larynx) में होती हैं.
लैरिंक्स को वोकल फोल्ड (Vocal Fold) भी कहते हैं. ये वोकल फोल्ड सफेद रंग के लिगामेंट्स से बने होते हैं. दो V अक्षर की तरह दिखते हैं. जो एक पतली झिल्ली यानी मंब्रेन (Membrane) से ढकी होती है. जब भी हम बोलते या गाते हैं, ये सफेद रंग के लिगामेंट्स कांपते हैं, यानी वाइब्रेट (Vibrate) होते हैं. जो गायक जितनी ज्यादा देर तक इन लिगामेंटस को वाइब्रेट कर सकता है, वह उतना बेहतर गा सकता है.
इस वोकल फोल्ड यानी सफेद लिगामेंट को अलग-अलग तरह के कंपाने या वाइब्रेट करने के लिए आपको मजबूत फेफड़ों की जरूरत होती है. क्योंकि जब फेफड़ों की हवा वोकल फोल्ड में पहुंचती है, तब सफेद रंग के लिगामेंट उसे जरूरत के हिसाब से मॉड्यूलेट करते हैं. कम या ज्यादा या हवा को लहराना. हवा के मॉड्यूलेशन से लिगामेंट से निकलने वाली आवाज सुरीली लगती है. मुंह से निकलने वाली यह हवा और लहराती हुई ध्वनि लहर को कान आवाज समझता है.
बेहतर गाने के लिए सबसे जरूरी क्या है- सांस (Breath)?
सबसे पहले जरूरी होती है सांस (Breath). कुछ भी बोलने, गाने, चलने, फिरने या कोई भी काम करने के लिए जरूरी है सांस लेते रहना. बोलने और गाने में तो इसकी जरूरत सबसे ज्यादा पड़ती है. फेफड़ों को कितना फुलाना है, कितना पिचकाना है ये गायक बेहतर जानता है. इसके लिए वह अभ्यास भी करता है, ताकि सांसों पर नियंत्रण कर सके. इस काम में डायफ्राम, पेट की मांसपेशिया, पीठ की मांसपेशियां और पसलियों के बीच मौजूद मांसपेशियां बहुत ज्यादा मदद करती हैं. इनके एकसाथ काम करने की वजह से आपकी आवाज निकलती है. आप गा पाते हैं. क्योंकि सांस को नियंत्रित करने में ये सारे अंग जरूरी हैं.
सांस देती है आवाज को जन्म (Breath Gives Birth of Sound)
लंदन सिंगिंग इंस्टीट्यूट के अनुसार फेफड़े से निकली सांस आपको वोकल कॉर्ड (Vocal Cord) को सक्रिय करती है. वोकल कॉर्ड में छोटी-छोटी मांसपेशियां होती हैं, जिन्हें हमने पहले वोकल फोल्ड भी कहा है. ये लैरिंक्स (Larynx) में पाई जाती हैं. लैरिंक्स को ही आवाज का डिब्बा (Voice Box) कहा जाता है. ये आपके गले में लटकी होती है, जो आवाज को पैदा करती है. सांस इसमें आती है और वही सफेद रंग की लिगामेंट उससे कंपित होकर ध्वनि तरंगें निकालती है. जो मुंह से बाहर आती है, और कान उसे आवाज समझता है.
आवाज पर नियंत्रण यानी अंगों की क्रियाओं पर संतुलन
आपने देखा होगा कि गायक अपनी आवाज को कभी लहराते हुए काफी ऊंचा उठाता है, कभी एकदम नीचे. तो कभी देर तक ही स्वर में गाता रहता है. यह सब गायक कैसे कर लेते हैं. असल में यह कोई भी कर सकता है. लेकिन आवाज पर नियंत्रण पाने के लिए गायक अपने कई अंगों की क्रियाओं पर पहले संतुलन पाते हैं. इसके लिए वो बरसों अभ्यास करते हैं. मतलब रियाज करते हैं या यूं कहें कि गाने की प्रैक्टिस करते हैं. कितना मुंह खोलना है, जीभ कितनी हिलानी है. सांस कितनी लेनी और छोड़नी है. फेफड़े से निकली हवा का कितना हिस्सा गले में लेकर जाना है. यह संतुलन ही गायक को बेहतरीन बनाता है.
गाना एक व्यायाम है (Singing is Excercise)
अगर कोई इंसान रोज गाता है तो वह एक बेहतरीन व्यायाम करता है. मान लीजिए अगर कोई 68 किलोग्राम का व्यक्ति रोज एक घंटे गाता है तो वह करीब 140 कैरोली बर्न करता है. जो साथ में अलग शारीरिक व्यायाम भी करते हैं, उन्हें और फायदा होता है. अगर आप एरोबिक करते हैं तो आपके सांस लेने की क्षमता बढ़ती है. जिससे मांसपेशियों पर सकारात्मक असर पड़ता है. गाते समय शरीर के कई अंगों की मांसपेशियां काम आती हैं. इसलिए गाने से भी व्यायाम होता है और एरोबिक से भी मांसपेशियों का फायदा होता है. इसलिए गाने में मदद मिलती है.
गाने का दिमाग पर क्या असर होता है (Singing Effect on Brain)
जब हम बोलते हैं तब हमारी दिमाग का बायां हिस्सा सक्रिय होता है. क्योंकि यही हिस्सा किसी वाक्य को बनाने में मदद करता है. लेकिन जब हम गाते हैं या गाना सुनते हैं तब दाहिना हिस्सा सक्रिय होता है. यह लय और सुरों के लिए जाना जाता है. इसलिए आपने कई बार देखा होगा कि कुछ लोग जो हकलाते हैं वो भी बेहतरीन गाना गा लेते हैं. कुछ लोग अपनी स्थानी स्लैंग बोली भूलकर शुद्ध हिंदी या अंग्रेजी में उम्दा गा लेते हैं. क्योंकि बोलने और गाने में दिमाग का अलग-अलग हिस्सा काम करता है.
संगीत से हमारे दिमाग की संज्ञानात्मक और तार्किक शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है. सुकून पहुंचाता है. इसके अलावा आप अगर गाने की अच्छी प्रैक्टिस करते हैं तो आपके हकलाने जैसी समस्या खत्म हो सकती है. आपके संचार की तकनीक सुधर सकती है. गाना गाने से इंसान ध्यान केंद्रित करना सीखता है. गाना डिमेंशिया के शिकार लोगों के लिए फायदेमंद होता है.