वैज्ञानिकों की टीम ने सुलझाया ब्लैक टाइगर्स के शरीर पर काली धारियों का रहस्य

आनुवंशिक रहस्य को सुलझा लिया है

Update: 2021-09-20 09:00 GMT

वैज्ञानिकों की एक टीम ने सिमलीपाल के तथाकथित काले बाघों के आनुवंशिक रहस्य को सुलझा लिया है. नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (एनसीबीएस), बैंगलोर से उमा रामकृष्णन और उनके छात्र विनय सागर के नेतृत्व में अध्ययन में पाया गया कि इन बाघों में एक आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण काली धारियां चौड़ी हो गईं या फिर फैल गईं. सफेद या सुनहरे रंग की बाघों का एक विशिष्ट गहरा धारी पैटर्न होता है. यह दुर्लभ धारी पैटर्न जंगली और कैद किए गए बाघों दोनों में भी पाया जाता है. इसे छद्म मेलेनिज़्म के रूप में जाना जाता है, जो वास्तविक मेलेनिज़्म से अलग है. सही मायने में मेलेनिस्टिक बाघों को रिकॉर्ड किया जाना बाकी है, छद्म-मेलेनिस्टिक बाघों को कैमरों में कैद किया गया है. वर्ष 2007 से ओडिशा के सिमलीपाल में ही अकेले 2,750 किलोमीटर का बाघ अभयारण्य है. वर्ष 2017 में पहला अध्ययन किया गया था जहां पाया गया कि छद्म-मेलेनिज्म ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टिडेज़ क्यू में एक उत्परिवर्तन से जुड़ा हुआ है, जो अन्य बिल्ली प्रजातियों में समान लक्षणों के लिए जिम्मेदार जीन है.

लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रहे हैं ब्लैक टाइगर
सदियों से पौराणिक माने जाने वाले 'काले बाघ' लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रहे हैं. राष्ट्रीय जीव विज्ञान केंद्र (एनसीबीएस) में परिस्थिति वैज्ञानिक उमा रामकृष्णन और उनके छात्र विनय सागर, बेंगलूरू ने बाघ की खाल के रंगों और प्रवृत्तियों का पता लगाया है जिससे ट्रांसमेम्ब्रेन एमिनोपेप्टाइड्स क्यू (टैक्पेप) नामक जीन में एक परिवर्तन से बाघ काला नजर आता है. एनसीबीएस में प्रोफेसर रामकृष्णन ने बताया, इस फेनोटाइप के लिए जीन के आधार का पता लगाने का यह हमारा पहला और इकलौता अध्ययन है. चूंकि फेनोटाइप के बारे में पहले भी बात की गयी और लिखा गया है तो यह पहली बार है जब उसके जीन के आधार की वैज्ञानिक रूप से जांच की गई है.
बाघ के इस दुर्लभ परिवर्तन को पौराणिक माना जाता रहा है
अनुसंधानकर्ताओं ने यह दिखाने के लिए भारत की अन्य बाघ आबादी की जीन का विश्लेषण और कम्प्यूटर अनुरूपण के आंकड़े एकत्रित किए कि सिमलीपाल के काले बाघ बाघों की बहुत कम आबादी से बढ़ सकते हैं और ये जन्मजात होते हैं. पत्रिका ''प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज'' में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि सिमलीपाल बाघ अभयारण्य में बाघ पूर्वी भारत में एक अलग आबादी है और उनके तथा अन्य बाघों के बीच जीन का प्रवाह बहुत सीमित है. ऐसे बाघों में असामान्य रूप से काले रंग को स्यूडोमेलेनिस्टिक या मिथ्या रंग कहा जाता है.सिमलीपाल में बाघ के इस दुर्लभ परिवर्तन को लंबे समय से पौराणिक माना जाता है.
वर्ष 2018 में देखे गए थे विशिष्ट बाघ
हाल फिलहाल में ये 2017 और 2018 में देखे गए थे. बाघों की 2018 की गणना के अनुसार, भारत में अनुमानित रूप से 2,967 बाघ हैं. सिमलीपाल में 2018 में ली गई तस्वीरों में आठ विशिष्ट बाघ देखे गए जिनमें से तीन 'स्यूडोमेलेनिस्टिक' बाघ थे. अनुसंधानकर्ताओं ने यह समझने के लिए भी जांच की कि अकेले सिमलीपाल में ही बाघों की त्वचा के रंग में यह परिवर्तन क्यों होता है। एक अवधारणा है कि उत्परिवर्ती जीव की गहरे रंग की त्वचा उन्हें घने क्षेत्र में शिकार के वक्त फायदा पहुंचाती है और बाघों के निवास के अन्य स्थानों की तुलना में सिमलीपाल में गहरे वनाच्छादित क्षेत्र में हैं. सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व दुनिया का एकमात्र बाघ निवास स्थान है जहाँ मेलेनिस्टिक बाघ पाए जाते हैं, जिनके शरीर पर चौड़ी काली धारियां होती हैं, जो सामान्य बाघों की तुलना में मोटी होती हैं.
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