अध्ययन में खुलासा- ज्यादा कसरत बढ़ा सकती है कोविड-19 जैसे संक्रमण का जोखिम

कसरत का सेहत से गहरा नाता है. लेकिन क्या कसरत ही कभी संक्रमण की वजह बन सकती है. जी हां ज्यादा कसरत तो नुकसानदेह होती है यह सबने सुना है.

Update: 2022-07-07 03:51 GMT

कसरत (Exercise) का सेहत से गहरा नाता है. लेकिन क्या कसरत ही कभी संक्रमण की वजह बन सकती है. जी हां ज्यादा कसरत तो नुकसानदेह होती है यह सबने सुना है. अभी तक कसरत की तीव्रता (Intensity of Exercise) और सांस से बाहर निकले एरोसॉल कणों (Exhaled Aerosol particles) की सघनता की मात्रा के बीच में संबंध को ठीक से समझा नहीं गया था. नए अध्ययन में पाया गया है कि ज्यादा कसरत संक्रमण (Infection) को बुलावा देने का कारण बन सकती है यह निष्कर्ष इस शोध में विशेष प्रयोग करने के बाद देखा गया कि उच्च स्तर की शारीरिक गतिविधि के साथ एरोसॉल उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी बहुत ही तेजी से बढ़ती है.

इंडोर हालात में विशेष प्रयोग

म्यूनिख की एक शोध टीम ने प्रयोगात्मक स्थितियों में पाया है कि उच्च स्तर की शारीरिक गतिविधियों के कारण एरोसॉल उत्सर्जन में चरघातांकी तरीके से इजाफा होता है जिससे इंडोर एथलेटिक कार्यक्रमों में भाग ले रहे एथलीटों में कोविड-19 जैसे संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है. ऐसा इमारतों के अंदर वाले जिम आदि क्षेत्रों में भी होता है जहां शारीरिक श्रम बहुत ज्यादा होता है.

श्वसन आयतन की विशेष स्थिति

इस शोध से पहले यह पता था कि अप्रशिक्षित व्यक्तियों में श्वसन आयतन सामान्य स्थिति में जहां 5 से 15 लीटर प्रति मिनट होता है, वही कसरत के दौरान 100 लीटर प्रति मिनट हो जाता है. वास्तव में अच्छे से प्रशिक्षित एथलीटों के मामले में यह आयतन 200 लीटर प्रति मिनट तक पहुंच सकता है. यह भी पाया गया आंतरिक खेल स्थितियों में बहुत से लोगों ने इसी वजह से सार्स कोव-2 का संक्रमण पाया था.

एरोसॉल की संख्या

अभी तक यह स्पष्ट नहीं था कि कसरत की तीव्रता का व्यक्ति के द्वारा सांस के जरिए लिए गए प्रति मिनट एरोसॉल की संख्या और बाहर निकाले गए एरोसॉल कणों की मात्रा के बीच संबंध क्या है. इस वजह से सार्स कोव-2 जैसे संक्रमण फैलने की संभावित खतरे का भी पता नहीं चल पा रहा था. लेकिन इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि हमें स्कूल जिम, इंडोर खेल के केंद्र, फिटनेस स्टूडियो, या डिस्को में संक्रमण फैलने की संभावना रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने के प्रयास करने होंगे.

कैसे किया मापन

शोधकर्ताओं ने उपरोक्त बातों को मापने के लिए ही एक पद्धति विकसित की है. उनके प्रायोगिक उपकरण पहले आसपास की हवा में मौजूद एरोसॉल की कणों को छानते हैं इसके बाद एर्गोमीटर स्ट्रेस टेस्ट के जरिए प्रतिभागी को एक खास मास्क लगाया जाता है जिसमें साफ हवा ही जाती है और उसमें लगी विशेष नली से केवल सांस से बाहर निकली हवा ही बाहर निकलती है जिससे प्रति मिनट निकले गए एरोसॉल के कणों का मापन हो पाता है.

कितने वर्कलोड के बाद संवेदनशीलता

इस तरह से शोधकर्ता पहली बार यह मापने में सफल रहे कि अलग अलग कसरतों के स्तर पर सांस बाहर निकालते हुए प्रतिमिनट कितने एरोसॉल बाहर निकले. अध्ययन में पाया गया है कि कसरत के दौरान शरीर वजन के हिसाब से प्रतिकिलोग्राम दो वाट के वर्कलोड इजाफे के दौरान एरोसॉल उत्सर्जन में केवल सामान्य स्तर की ही बढ़ोत्तरी हुई. लेकिन उसके बाद यह चरघातांकी तरीके बढ़ी. यानि एक 75 किलो के प्रतिभागी इस नाजुक स्तर पर 150 वाट के वर्कलोड में ही पहुंच जाता है. जो सामान्य जॉगिंग जैसी कसरत करने पर आगे नहीं जाता है.


Tags:    

Similar News

-->