खास मच्छर! डेंगू-चिकनगुनिया का अब होगा खात्मा, जानें पूरी डिटेल्स

Update: 2022-07-07 06:39 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: देश में डेंगू-चिकनगुनिया को मिटाने और नियंत्रित करने के लिए नए प्रकार के मच्छर विकसित किए गए हैं. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के वेक्टर कंट्रोल रिसर्च सेंटर (VCRC) ने विशेष मादा मच्छरों को विकसित किया है. ये मादा, नर मच्छरों के साथ मिलकर ऐसे लार्वा पैदा करेंगे जो डेंगू-चिकनगुनिया को खत्म कर देंगे. क्योंकि इनके अंदर इन बीमारियों के वायरस नहीं रहेंगे. जब वायरस रहेंगे नहीं तो इनके काटने से इंसान संक्रमित नहीं होंगे. 

पुड्डूचेरी स्थित ICMR-VCRC ने एडीज एजिप्टी (Aedes aegypti) की दो कॉलोनियां विकसित की हैं. इन्हें wMel और wAIbB वोलबशिया स्ट्रेन से संक्रमित किया गया है. अब इन मच्छरों का नाम है एडीज एजिप्टी (PUD). ये मच्छर डेंगू और चिकनगुनिया के वायरल संक्रमण को नहीं फैलाएंगे. VCRC इस काम में पिछले चार सालों से लगा हुआ है. ताकि वो वोलबशिया मच्छरों को विकसित कर सकें. 
VCRC के डायरेक्टर डॉ. अश्विनी कुमार ने बताया कि मच्छरों को लोकल इलाकों में छोड़ने के लिए कई तरह की सरकारी अनुमतियों की जरूरत पड़ेगी. हमने डेंगू और चिकनगुनिया को खत्म और नियंत्रित करने के लिए खास तरह के मच्छर बनाए हैं. हम मादा मच्छरों को बाहर छोड़ेंगे ताकि वो नर मच्छरों के साथ मिलकर ऐसे लार्वा बनाए जो इन बीमारियों के वायरसों से मुक्त हो. इन मच्छरों को छोड़ने की हमारी तैयारी पूरी है. बस इंतजार है सरकार की तरफ से अनुमति मिलने का. जैसे ही सरकार की तरफ से अनुमति मिलेगी हम इन विशेष मादा मच्छरों को खुले में छोड़ देंगे. 
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनियाभर में मच्छरों द्वारा फैलाया जाने वाली बीमारी डेंगू है. दुनिया का सबसे घातक जीव मच्छर है. जिसके काटने और जिसकी वजह से फैली बीमारियों से हर साल दुनिया में करीब 4 लाख लोगों की मौत होती है. इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं बच्चे. पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक भी ऐसा काम कर रहे हैं, जिससे मच्छरों की प्रजाति दुनिया में कम हो जाएगी. साथ ही इनसे फैलने वाली बीमारियों पर भी रोकथाम लगेगी. 
फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में बायोलॉजिकल साइंसेस के प्रोफेसर फर्नांडो जी. नोरीगा और उनकी टीम मच्छरों की प्रजनन संबंधी सेहत यानी रिप्रोडक्टिव फिटनेस (Reproductive Fitness) को घटाने में लगे हैं. अगर मच्छरों की पैदा करने की क्षमता खत्म या कम हो जाएगी. तो कम मच्छर पैदा होंगे. इससे मच्छरों की आबादी में कमी आएगी. यानी दुनिया को मच्छर जनित बीमारियों से निजात मिलेगा. लेकिन सवाल ये भी है कि कहीं मच्छरों की प्रजाति ही खत्म न हो जाए.
प्रो. फर्नांडो ने बताया कि हमने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. हम एक ऐसे हार्मोन का अध्ययन कर रहे हैं, जो मच्छरों की प्रजनन क्षमता को सक्रिय रखता है. इसके साथ ही उनके सेक्स संबंधी व्यवहार को बढ़ाता है. अगर हम इस हॉर्मोन की मात्रा मच्छरों में घटा दें, तो मच्छर प्रजनन करने लायक बचेंगे ही नहीं. उनकी सेक्स करने की इच्छा खत्म हो जाएगी. अगर होगी भी तो ज्यादा मच्छर पैदा नहीं होंगे.
प्रो. फर्नांडो जेनेटिकली मॉडिफाइड एडीस एजिप्टी (Aedes aegypti) मच्छरों को पैदा कर रहे हैं, जो इस हॉर्मोन को बना नहीं सकते. आपको बता दें ये मच्छर ही पीला बुखार (Yellow Fever), डेंगू (Dengue) और जीका (Zika) का संक्रमण फैलाता है. ऐसा नहीं है कि ये मच्छर सेक्स नहीं करेंगे...बच्चे पैदा नहीं कर पाएंगे. ये करेंगे लेकिन इनसे पैदा होने वाले मच्छरों से किसी तरह की बीमारी नहीं फैलेगी. क्योंकि उस हॉर्मोन के जरिए ही ये किसी को नुकसान पहुंचाने का व्यवहार करते हैं. 
प्रोफेसर ने बताया कि हम फिलहाल उस हॉर्मोन को समझने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि हम उसके जरिए मच्छरों को नियंत्रित कर सकें. सिर्फ मच्छर ही नहीं, वह हॉर्मोन कई अन्य कीड़ों और मकोड़ों में मिलता है. हम उसके जरिए उनका भी नियंत्रण कर सकते हैं. उनकी आबादी पर विराम लगा सकते हैं. या फिर उन्हें किसी भी तरह की बीमारी फैलाने से रोक सकते हैं. 
मच्छरों के जिस हॉर्मोन की बात हो रही है, उसे मिथाइल फार्नीसोएट ( methyl farnesoate - MF) कहते हैं. इसी हॉर्मोन की वजह से कीड़े, खोलदार समुद्री जीव, मच्छर प्रजनन की क्रिया करते हैं. इसी हॉर्मोन की वजह से इन जीवों को कई गुना ज्यादा बच्चे पैदा करने की क्षमता मिलती है. वैज्ञानिक एडीज एजिप्टी मच्छरों के जीन में ऐसे बदलाव कर रहे हैं कि वो MF हॉर्मोन को कैटेलाइज करने के लिए शरीर में एंजाइम ही न बना पाएं. 
अगर MF हॉर्मोन को सक्रिय करने का एंजाइम बनेगा ही नहीं तो प्रजनन का मन ही नहीं होगा. अगर किसी वजह से हो भी जाता है तो उससे पैदा होने वाले बच्चे मच्छर भी जेनेटिकली मॉडिफाइड होंगे. वो किसी को अगर काटेंगे तो उससे बीमारियां नहीं फैलेंगी. क्योंकि हमने एडीज एजिप्टी के नर मच्छरों को प्रजनन करने लायक छोड़ा ही नहीं है. साथ ही कुछ मादा म्यूटेंट मच्छर भी हैं, जो बाहर जाकर अगर किसी गैर-म्यूटेंट मच्छर के साथ प्रजनन की क्रिया करती हैं, तो उससे कोई फायदा नहीं होगा. 
गैर-म्यूटेंट मादा मच्छर आमतौर पर 100 अंडे देती हैं. लेकिन अब ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि वो सिर्फ 50 अंडे ही दे पाएगी. यानी मच्छरों की आबादी में आधे की कटौती. हमने जिन मच्छरों को म्यूटेंट बनाया है वो MF पैदा कर ही नहीं सकते. वो लार्वा से वयस्क बनने की प्रक्रिया में ही मर जाएंगे. अगर कुछ बच भी जाते हैं तो वो प्रजनन करने लायक बचेंगे ही नहीं.
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