वैज्ञानिकों को मंगल पर मिले 'मशरूम'? जानें इस खबर की सच्चाई

मंगल पर मिले ‘मशरूम’

Update: 2021-05-30 06:34 GMT

मशरूम (Mushroom) एक ऐसा फंगस है जो कहीं भी उग सकता है. किसी खुले स्थान पर पड़ी लकड़ी से लेकर गमले की मिट्टी तक, जंगल से लेकर खेतों तक कहीं भी, लेकिन क्या मशरूम मंगल ग्रह पर भी उग सकता है? हाल ही में वैज्ञानिकों (Scientist) ने मंगल ग्रह को लेकर एक चौंकाने वाला दावा किया था. वैज्ञानिकों की ओर से मंगल (Mars) ग्रह पर मशरूम मिलने का दावा किया गया था.

चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस के माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉक्टर ज़िनली वी, हार्वर्ड स्मिथसोनियन के एस्ट्रोफिजिसिस्ट डॉ रुडोल्फ श्क्लिड और डॉक्टर ग्रैबियाल जोसेफ ने दावा किया था कि उन्हें मंगल पर मशरूम मिले हैं. उन्होंने ऐसा नासा के क्यूरोसिटी रोवर द्वारा जारी की गई तस्वीरों पर रिसर्च करने के बाद कहा था. क्यूरोसिटी रोवर 6 अगस्त 2012 को मंगल ग्रह की सतह पर पहुंच गया था और वहां से लगातार नासा को तस्वीरें और रिसर्च मटेरियल भेज रहा है.
फंगस की कॉलोनी का दावा
क्यूरोसिटी रोवर की भेजी गई तस्वीरों में मंगल ग्रह के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध पर काले गोल चैनल्स को देखा जा सकता है. कुछ वैज्ञानिकों की टीम का कहना था कि ये फंगस, काई और शैवाल की कॉलोनी हैं, जिससे ये साफ होता है कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना है. इन वैज्ञानिकों का दावा था कि ये मशरुम कुछ समय के बाद गायब होते हैं और वापस उग जाते हैं. अप्रैल 2020 में भी आर्मस्ट्रॉन्ग और जोसेफ ने अपने रिसर्च में दावा किया गया था कि मंगल ग्रह पर मशरूम उगते हैं.
वैज्ञानिकों ने खारिज किया दावा
हालांकि अब वैज्ञानिकों ने मंगल पर मशरूम और जीवन पाए जाने के दावों को खारिज कर दिया है. रिपोर्ट्स के अनुसार मंगल पर देखा गया यह पदार्थ जीवित अवस्था में नहीं हैं बल्कि 'हेमेटाइट कंक्रिशन' हैं. वास्तव में वैज्ञानिक पहले से ही इसके अस्तित्व के बारे में एक दशक से अधिक समय से जानते हैं. बता दें कि हेमेटाइट कंक्रिशन हेमेटाइट खनिज के छोटे और गोल टुकड़े होते हैं. हेमेटाइट एक कॉमन आयरन ऑक्साइड कम्पाउंड है और बड़े पैमाने में चट्टानों और मिट्टी में पाया जाता है.
उत्पत्ति को लेकर बहस जारी
हेमेटाइट कंक्रिशन पहली बार वैज्ञानिकों की नजरों में नहीं आया है. इससे पहले 2004 में मंगल पर उतरने के ठीक बाद नासा के मार्स एक्सप्लोरेशन रोवर ऑपर्च्युनिटी पर लगे कैमरों ने इसकी खोज की थी. हालांकि हम कई सालों से इसके अस्तित्व के बारे में जानते हैं लेकिन वैज्ञानिक आज भी इसकी सटीक उत्पत्ति पर बहस कर रहे हैं.
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