वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर में सबसे गहरा ड्रिल कर बनाया रिकॉर्ड, गहराई 8000 मीटर से भी ज्यादा
प्रशांत महासागर में सबसे गहरा ड्रिल
टोक्यो : जापान के तट पर काम कर रहे वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर में सबसे गहरा ड्रिल कर रिकॉर्ड कायम किया है। इसकी गहराई 8000 मीटर से भी ज्यादा की बताई जा रही है। वैज्ञानिकों का दावा है कि आजतक के इतिहास में दुनिया के किसी भी समुद्र में इतनी गहराई तक ड्रिल नहीं किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस ड्रिल को रिसर्च शिप काइमी पर सवार वैज्ञानिकों ने एक विशाल पिस्टन कोरर की मदद से अंजाम दिया है। जिसने 2 घंटे 40 मिनट के समय में 8000 मीटर गहरी ड्रिल कर रिकॉर्ड बना दिया।
तलछट निकालकर अध्ययन करने की तैयारी
इस ड्रिल के जरिए वैज्ञानिकों ने समुद्र के तल के नीचे से 37 मीटर लंबा तलछट कोर निकाला है। जिसे वैज्ञानिक जांच के लिए सुरक्षित रख लिया गया है। यह तलछट जापान ट्रेंच के आसपास की बताई जा रही है। यह ड्रिल साइट 2011 में जापान में आए विनाशकारी भूकंप के केंद्र के बिलकुल करीब है। इस भूकंप से समुद्र में बड़ी सुनामी पैदा हुई थी, जिससे जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु ऊर्जा संयंत्र को भारी नुकसान पहुंचा था।
भूकंप के इतिहास के बारे में खोज करना है मकसद
इस तलछट के अध्ययन से वैज्ञानिकों को इलाके में आने वाले भूकंप के इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिलने की उम्मीद है। इससे जापान को भविष्य में आने वाले भूकंपों से बचाने में भी मदद मिलने की उम्मीद है। बता दें कि जापान प्रशांत महासागर के रिंग ऑफ फॉयर क्षेत्र में स्थित है। जिस कारण इस देश में हर साल सैकड़ों की संख्या में छोटे-बड़े भूकंप आते रहते हैं।
पहले इस पोत के नाम था सबसे गहरे ड्रिल का रिकॉर्ड
इससे पहले समुद्र में सबसे अधिक गहराई तक खुदाई करने का रिकॉर्ड लगभग 50 साल पहले 1978 में बनाया गया था। तब अनुसंधान पोत ग्लोमर चैलेंजर ने प्रशांत महासागर में स्थित दुनिया की सबसे गहरी जगह मारियाना ट्रेंच में खुदाई की थी। तब समुद्र की सतह से 7000 मीटर नीचे से तलछट को निकाला गया था। उस समय भी वैज्ञानिकों ने इस तलछट को जांच के लिए ही निकाला था।
जमीन पर यह है दुनिया का सबसे गहरा ड्रिल
जमीन पर अबतक का सबसे गहरा ड्रिल 1989 में रूसी वैज्ञानिकों ने सुदूर उत्तरी कोला प्रायद्वीप में किया था। इसे कोला सुपरदीप बोरहोल के नाम से जाना जाता है। इस परियोजना के लिए ड्रिलिंग 1970 में शुरू हुई थी जो लगभग दो दशक बाद जमीनी सतह से 12,200 मीटर की अधिकतम गहराई तक पहुंच गया था।