वैज्ञानिकों का मानना- भीषण जलावायु परिवर्तन ने सुखा दिया था शुक्र ग्रह का पूरा पानी
एक समय पृथ्वी (Earth) और शुक्र ग्रह (Venus) बिलकुल एक से ग्रह थे.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक समय पृथ्वी (Earth) और शुक्र ग्रह (Venus) बिलकुल एक से ग्रह थे. अरबों साल बाद दोनों ही बिलकुल अलग हो चुके हैं. लेकिन ताजा शोध के मुताबिक जैसा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आज पृथ्वी झेल रही है कुछ वैसा ही एक समय में शुक्र ग्रह पर हो रहा था जिसकी वजह से वह ग्रह नष्ट हो गया. यह अपने तरह का पहला अध्ययन नहीं है जिसने पृथ्वी के जलवायु परिवर्तन और शुक्र ग्रह में बहुत अधिक समानता की बात की है.
शुक्र पर ग्रीनहाउस गैसों का प्रकोप
वैज्ञानिकों के किए गए विभिन्न शोधों और अध्ययन के नतीजों के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया है कि शुक्र में कभी वैसी ही जलवायु है जैसी आज पृथ्वी पर थी, लेकिन वह रहने योग्य जलवायु कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों के पानी के स्रोतों को वाष्पीकृत होने के कारण नष्ट हो गई.
बहुत सारे आंकड़ों का अध्ययन
नेचर जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन कार्लेटन यूनिवर्सिटी के अर्थ साइंस वैज्ञानिक रिचर्ड अर्न्स और उनके साथियों ने किया है जिसमें मास्टर्स छात्रा सारा ख्वाजा भी शामिल हैं जिन्होंने क्लाइमेट मॉडलर्स से इस सिद्धांत को रखा है. शोधकर्ताओं ने बहुत सारे शोधों और आंकड़ों का अध्ययन कर अपने ये नतीजे निकाले हैं.
तीस साल पुराने अभियान के भी आंकड़े
शोधकर्ताओं की टीम ने शुक्र ग्रह पर हो रहे जलवायु परिवर्तन के प्रमाण वहां की चट्टानों में खोजने का प्रयास किया. इसके अलावा टीम ने अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के 1989 में शुक्र की ओर भेजे गए मैगेलन अंतरिक्ष अभियान के आंकड़ों का अध्ययन किया. यह शुक्र ग्रह पर 1990 में पहुंचा था. यह पहला मिशन था जिसने वैज्ञानिकों को शुक्र ग्रह के बादलोंके पार की भी तस्वीरों को भेजा था.
एक पुरानी चट्टान का भी अध्ययन
रिचर्ड ने बताया कि उनकी टीम ने शुक्र ग्रह की पुरानी चट्टानों का भी अध्ययन किया जिन्हें टेसेराय कहा जाता है. इससे उन्हें शुक्र के प्राकृतिक इतिहास को जानने में मदद मिली. शोधकर्ताओं ने अप्रत्यक्ष पद्धतियों को उपयोग कर उसी के जैसे शुक्र की मॉडलिंग पद्धतियां बनाई जिससे उन्हें पुरानी नदी घाटियों के अस्तित्व का पता चला. उन्होंने दर्शाया कि कैसे लावा ज्वालामुखी मैदानों में बहा करता था और टेसेराय की भरी घाटियों को प्रभावित करता था.
पृथ्वी से समानता
टीम ने यह भी पाया कि पृथ्वी पर ही उसी तरह के नदियों के बहाव के पैटर्न दिखाई देते हैं जैसे की शक्र ग्रह की टेसेराय घाटियों से पहचाने गए थे. इसका मतलब यह हुआ कि कभी शुक्र ग्रह पर भी आज की पृथ्वी की ही तरह नदियां बहा करती होंगी. इससे पहले ही शुक्र और पृथ्वी की जलावयु की समानता की बात की जा चुकी है.
नासा भी कह चुका है पहले ये
साल 2016 में भी नासा की रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे शुक्र में पानी की मौजूदगी रहा करती होगी और करीब 2 अरब साल पहले वहां जीवन के अनुकूल हालात रहे होंगे. यह रिपोर्ट न्यूयार्क में नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (GISS) के वैज्ञानिकों की शुक्र के पुरानी जलवायु की कम्प्यूटर मॉडलिंग पर आधारित थी.
इसी साल शोधकर्ताओं ने शुक्र ग्रह के घने बादलों के बीच फॉसफीन गैस की मौजूदगी का पता लगाया था. इससे कई विशेषज्ञों ने शुक्र ग्रह पर जीवन के संकेतों की मौजूदगी का प्रमाण माना था. हालांकि बाद में इस फॉस्फीन की मौजदूगी को जीवन से सीधे जोड़ने की बात को समर्थन नहीं मिला था. लेकिन वहां सल्फर डाइऑक्साइड का होना ज्वालामुखी विस्फोटों का प्रमाण अवश्य है जिससे की वजह से विनाशकारी जलवायु परिवर्तन होने की संभावना बहुत प्रबल हो जाती है.