भूकंप के दौरान परमाणु संयंत्रों में कूलिंग पावर पर नया अध्ययन, चेन्नई परमाणु ऊर्जा संयंत्र में केस स्टडी
नई दिल्ली (आईएएनएस)| परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा में कूलिंग ऊर्जा स्रोतों का बड़ा महत्व है। इसी को ध्यान में रखते हुए आईआईटी जोधपुर ने एक अहम रिसर्च की है। इस अध्ययन ने भूकंपीय घटनाओं के दौरान परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में कूलिंग पावर की मजबूती में सुधार करने के लिए एक नवीन ²ष्टिकोण प्रदान किया है। गौरतलब है कि भारत के सात परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में से पांच भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में स्थित हैं। फिलहाल चेन्नई में स्थित परमाणु ऊर्जा संयंत्र, 'मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन' को इस प्रस्ताव की व्यावहारिकता जांचने के लिए केस स्टडी के रूप में चुना है।
आईआईटी का यह अध्ययन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की कूलिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तटीय वायु क्षेत्रों को भूकंपीय प्रतिरोधी वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के रूप में चुनने का प्रस्ताव देता है।
इस प्रस्तावित कार्यप्रणाली में कई चरणों की एक श्रृंखला शामिल है। आरम्भ में परमाणु रिएक्टरों में कूलिंग पॉवर की जरूरतों के अनुमान लगाया गया। इसके बाद तटीय पवन टरबाइन और इसके संबंधित बुनियादी ढांचे को डिजाइन किया गया है और अंत में विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए चयनित तटीय पवन टरबाइन साइट पर एक भूकंपीय सुरक्षा का मूल्यांकन किया गया है।
आईआईटी जोधपुर के सिविल एंड इंफ्रास्ट्रक्च र इंजीनियरिंग विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रदीप कुमार दम्माला और इसी विभाग की एमटेक-पीएचडी शोधार्थी सुमाजा कोल्ली, यूनाइटेड किंगडम के सुरे विश्वविद्यालय, एवं चीन के सिंहुआ विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग मैकेनिक्स के शोधकर्ताओं के सहयोग से इस रिसर्च को चीन के न्यूक्लियर इंजीनियरिंग एंड डिजाइन जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन में वायु ऊर्जा का उपयोग करके परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में कूलिंग पावर की उपयोगिता की संभावनाओं का प्रदर्शन किया है। भारत के चेन्नई के मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन में किए गए अध्ययन के माध्यम से प्रस्तावित तटीय पवन फार्म को साइट पर भूकंपीय घटनाओं के प्रति प्रतिरोधी और मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन की कूलिंग पावर की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम पाया गया है। यह शोध परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए भूकंप-प्रभावी क्षेत्रों में टिकाऊ और लचीले ऊर्जा स्रोतों की निर्भरता और एकीकरण को आगे बढ़ाने में योगदान देता है।
आईआईटी जोधपुर के मुताबिक तटीय पवन टर्बाइन मोनोपाइल नींव का विश्लेषण प्रत्याशित गतिशील लोडिंग स्थितियों के तहत किया गया था, जिसमें अत्याधुनिक संख्यात्मक मॉडल को नियोजित करने वाली मिट्टी की अशुद्धता और भूकंपीय द्रवीकरण पर विचार किया गया।
प्रस्तावित तटीय पवन टर्बाइन मोनोपाइल पर किए गए गैर-रैखिक एकीकृत भूकंपीय विश्लेषण में मोनोपाइल मडलाइन विस्थापन की तुलना करने पर स्वीकार्य भूकंपीय प्रदर्शन दर्शाया गया है।
इस अवधारणा की शुरूआत 2011 में हुई थी जब प्रोफेसर भट्टाचार्य ने जापान में तोहोकू भूकंप के प्रभाव को देखा था। यह विचार सॉइल डायनामिक्स और अर्थक्वेक इंजीनियरिंग पत्रिका में प्रकाशित हुआ था और इसे ब्रिटेन की सरे यूनिवर्सिटी में अपने शोध के दौरान डॉ. दम्माला ने आगे बढ़ाया। डॉ. दम्माला ने भूकंपीय प्रतिरोध के और भी मामले अध्ययन किए जिसमें गुवाहाटी में एक सड़क-रेलवे पुल और एक सार्वजनिक इमारत शामिल थी, जिसका प्रमुख पत्रिकाओं और सम्मेलनों में प्रकाशन हुआ।
उल्लेखनीय है कि डॉ. दम्माला ने इस साल की शुरूआत में 4 फरवरी 2023 को ऑफशोर विंड टर्बाइन के लिए फाउंडेशन सिस्टम के डिजाइन पर इंडो-यूके इंटरनेशनल वर्कशॉप का भी आयोजन किया था। इसमें 14 विभिन्न देशों के 200 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया था।
इस शोध को यूके इंडिया एजुकेशन रिसर्च इनिशिएटिव और कॉमनवेल्थ स्कॉलरशिप कमीशन, यूनाइटेड किंगडम द्वारा डॉ. प्रदीप कुमार दममाला को वित्त पोषित किया गया था। भारत का तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम थोरियम-आधारित रिएक्टरों की उन्नति पर केंद्रित है। दूसरे चरण में प्लूटोनियम-ईंधन वाले फास्ट ब्रीडर रिएक्टर का विकास शामिल है।