NASA करेगा ऐस्टरॉइड पर हमला, धरती को बचाएगा Elon Musk का रॉकेट

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने पहली बार किसी ऐस्टरॉइड के खतरे से धरती को बचाने वाले मिशन में एक कदम और बढ़ा लिया है

Update: 2021-09-14 13:36 GMT

अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने पहली बार किसी ऐस्टरॉइड के खतरे से धरती को बचाने वाले मिशन में एक कदम और बढ़ा लिया है। इस प्लैनेटरी डिफेंस मिशन को इस महीने के आखिर तक शुरू किया जा सकता है। इसके तहत ऐस्टरॉइड के चांद के साथ ऐस्टरॉइड की टक्कर कराई जाएगी। NASA ऐसे सभी खतरों पर नजर रखती है जिनसे धरती पर तबाही की आशंका हो और दुनियाभर के वैज्ञानिकों और एजेंसियों के साथ मिलकर इस खतरे को कम करने का काम भी किया जा रहा है।

'जुड़वां ऐस्टरॉइड'
NASA का सबसे पहला निशाना धरती के पास ऐस्टरॉइड Didymos है जिसे Double Asteroid Redirection Test (DART) मिशन के लिए चुना गया है। इस ऐस्टरॉइड को करीब 20 साल पहले खोजा गया था। इसका एक चांद भी है और इसलिए एक 'जुड़वां' ऐस्टरॉइड भी कहते हैं। इस टेस्ट के जरिए वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि ऐस्टरॉइड के कारण धरती पर मंडराने वाले खतरे को स्पेसक्राफ्ट से टक्कर के साथ कम किया जा सकता है या नहीं?
कुछ अटकलों में कहा गया है कि यह किसी शुरुआती ग्रह का कोर है। नासा के इस मिशन में मदद के लिए कैलिफोर्निया के कालटेक यूनिवर्सिटी के एक दल ने साइकी ऐस्‍टरॉइड का एक नया तापमान नक्‍शा तैयार किया है ताकि उसके सतह के अंदर मौजूद चीजों का पता लगाया जा सके। इसके लिए चिली के रेडियो टेलिस्‍कोप का सहारा लिया गया है। इसके जरिए शोधकर्ताओं को 50 पिक्‍सल के रेजोलूशन की तस्‍वीर मिली है और इससे साइकी के बारे में और ज्‍यादा जानकारी मिली है। शोधकर्ताओं के दल ने यह पता लगाने में सफलता हासिल की कि साइकी की धातु की सतह कम से कम 30 फीसदी धातु से बनी है। यही नहीं साइकी की सतह पर मौजूद चट्टान भी कीमती धातुओं से बनी है। शोधकर्ताओं को आशा है कि इस ताजा जानकारी से नासा को अपने साइकी मिशन में बड़ी मदद मिलेगी। अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA एक स्पेसक्राफ्ट तैयार कर रही है जो ऐस्टरॉइड 16 Psyche पर जाएगा। इस क्राफ्ट की टेस्टिंग अब आखिरी चरण में पहुंच गई है।
यह अंतरिक्ष यान अगले साल अगस्त में फ्लोरिडा के केप कनेवरल से SpaceX के Falcon Heavy रॉकेट की मदद से लॉन्च किया जाना है। यह क्राफ्ट सौर ऊर्जा से चलेगा और मंगल-बृहस्पति के बीच मुख्य बेल्ट में स्थित ऐस्टरॉइड 16 Psyche पर 2026 में पहुंचेगा। फोर्ब्स मैगजीन के मुताबिक साइकी ऐस्टरॉइड में जितना धातु है वह पूरी दुनिया की इकॉनमी से कई गुना ज्यादा 10, 000 क्वॉड्रिलियन डॉलर (10,000,000,000,000,000,000 डॉलर) की कीमत का हो सकता है। यह क्राफ्ट 21 महीने तक ऐस्टरॉइड की मैपिंग करेगा और इसके फीचर्स को स्टडी करेगा। धरती से करीब 37 करोड़ किमी दूर स्थित यह ऐस्टरॉइड करीब 226 किमी चौड़ा है। न सिर्फ इसका आकार विशाल है बल्कि यह धातुओं से इस कदर बना है कि इसे अब तक खोजा गया सबसे मूल्यवान ऐस्टरॉइड माना जाता है। इसे सबसे पहले 1852 में खोजा गया था। हबल टेलिस्कोप को मिले डेटा के आधार पर यह धातु से बना है जबकि ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स में चट्टान या बर्फ ज्यादा होती है। माना जाता है कि इसमें लोहा और निकेल हो सकते हैं। इस आधार पर इसकी कीमत 10,000 क्वॉड्रिलियन डॉलर हो सकती है।
ऐस्टरॉइड 16 साइकी कैसे बना, इसे लेकर एक थिअरी है कि यह किसी अविकसित ग्रह की कोर हो सकता है। इसकी मदद से ऐस्ट्रोनॉमर्स धरती और दूसरे ग्रहों के बनने की प्रक्रिया को समझ सकते हैं। JPL में स्पेसक्राफ्ट का सोलर इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन चैसिस तैयार है जो किसी वैन के आकार है। यह क्राफ्ट का 80% हिस्सा होगा। अगले 1 साल में क्राफ्ट असेंबल हो जाएगा और फ्लोरिडा भेजने से पहले इसे टेस्ट किया जाएगा। नासा का यह मिशन उसके Discovery Program का हिस्सा है। इस प्रोग्राम के तहत कम कीमत के रोबॉटिक स्पेस मिशन तैयार किए जा रहे हैं। क्राफ्ट में ऐस्टरॉइड का चुंबकीय क्षेत्र नापने के लिए मैग्नेटोमीटर, उसकी सतह की तस्वीरें लेने के लिए मल्टिस्पेक्ट्रल इमेजर, सतह किस चीज से बनी है यह देखने के लिए उससे निकलने वाली गामा रेज और न्यूट्रॉन्स के अनैलेसिस के लिए स्पेक्ट्रोमीटर और हाई डेटा-रेट ट्रांसफर लेजर संपर्क के लिए एक्सपेरिमेंटल उपकरण लगे हैं।
साइकी ऐस्‍टरॉइड की अथाह कीमत से यह सवाल उठ सकता है कि इसे धरती पर लाना चाहिए लेकिन अगर ऐसा किया गया तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था तबाह हो सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर ऐस्टरॉइड मटीरिअल के बाजार में आने से बेशकीमती धातुओं की कीमत अचानक गिर जाएगी। इस तरह की वस्तुओं का खनन, बिक्री करने वाली सभी कंपनियों की वैल्यू गिरने लगेगी और पूरा बाजार बिगड़ जाएगा। यहां तक कि अगर इस ऐस्टरॉइड का एक टुकड़ा भी धरती पर लाया जाता है तो इसे संभालना मुश्किल होगा।' हालांकि नासा की ऐसी कोई योजना है भी नहीं। माना जा रहा है कि अन्‍य चट्टानों के विपरीत साइकी 16 ज्‍यादातर लोहे और निकेल से बना है। नासा के इस अहम मिशन से ठीक पहले कालटेक यूनिवर्सिटी ने ऐस्‍टरॉइड की जांच की है। इससे साइकी का पहला तापमान नक्‍शा बनकर तैयार हो गया है। इससे साइकी के सतह के बारे में ताजा जानकारी मिली है।
क्या होगा असर?
NASA ऐस्टरॉइड के चांद पर 14 मील प्रतिघंटे की रफ्तार से डिवाइस को क्रैश करेगा। इससे चांद की गति 1% कम होने की उम्मीद है। इससे धरती पर लगे टेलिस्कोप्स के ऑब्जर्व करने के लिए थोड़ा करीब आ जाएगा। स्पेसक्राफ्ट में सोलर पावर जनरेटर्स, शक्तिशाली कैमरे और सेंसर लगे होंगे जो क्रैश के असर को स्टडी करेंगे। मिशन सपल होने पर NASA के लिए प्लैनेटरी डिफेंस सिस्टम पर काम आसान हो जाएगा।
इस स्टडी के मुताबिक ऐसा सिलसिला अब से 2.5-3.5 अरब साल पहले तक चला करता था। इस दौरान धरती की सतह पर जो बदलाव होते थे, उनके बारे में सबूत आज चट्टानों की दरारों में मिलते हैं। बोल्डर, कोलराडो के दक्षिणपश्चिमी रिसर्च इंस्टिट्यूट में प्रिंसिपल साइंटिस्ट सिमोन मार्ची और उनके साथियों ने चट्टानों में Spherules को स्टडी किया। ये वाष्पित चट्टान के बुलबुले होते हैं जो ऐस्टरॉइड की टक्कर पर स्पेस तक उछल जाया करते थे। वहां जमने के बाद धरती पर लौटते थे। आज इन्हें बेडरॉक में एक परत के रूप में देखा जा सकता है। टीम ने ऐस्टरॉइड इंपैक्ट के असर को समझने के लिए मॉडल तैयार किए और इसे Spherules के बनने से जोड़ा। यह भी देखा गया कि ये दुनिया में कहां-कहां पाए गए हैं।
स्टडीज के मुताबिक कोई ऐस्टरॉइड जितना बड़ा होता है, उसकी टक्कर से पैदा हुए Spherules उसी तरह मोटी परत बनाते हैं लेकिन जब रिसर्चर्स ने बेडरॉक की अलग-अलग परतों में इनकी मात्रा को देखा और उसे अभी तक जानी गईं ऐस्टरॉइड्स की घटनाओं से मैच किया तो पाया कि दोनों में काफी अंतर था। मार्ची ने बताया कि Spherules के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धरती पर टकराने वाले ऐस्टरॉइड्स का पता लगाने वाले मॉडल अभी हम बहुत कम संख्या दे रहे हैं। यह असल में 10 गुना ज्यादा हो सकता है।
हो सकता है कि ऐस्टरॉइड्स की टक्कर से धरती पर ऑक्सिजन के स्तर में अंतर आया हो और धरती पर जीवन का आधार पड़ा हो। धरती पर कई ऐस्टरॉइड्स के निशान क्रेटर्स की शक्ल में देखे जा सकते हैं लेकिन कई समय के साथ हल्के पड़ गए हैं। मेक्सिको के Chicxulub इंपैक्ट क्रेटर के बारे में ही 1970 के दशक में पता चल सका था और कई साल बाद यह पता चला कि डायनोसॉर इसी ऐस्टरॉइड की वजह से धरती से गायब हो गए।
धरती को ऐस्टरॉइड से खतरा
स्पेसक्राफ्ट को Elon Musk की SpaceX का Falcon 9 रॉकेट इस महीने की आखिर में लेकर जाएगा और करीब एक साल में ऐस्टरॉइड तक पहुंचेगा। हमारे सौर मंडल में 25 हजार से ज्यादा विशाल ऐस्टरॉइड हैं। इनमें से कई ऐसे हैं आने वाले 100 साल में जिनसे टक्कर का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए वैज्ञानिक इन्हें स्टडी करते रहते हैं।
साल 2015 में पहली बार किसी बौने ग्रह पर एक स्पेसक्राफ्ट भेजा गया। Ceres को करीब से देखने गए Dawn ने इसकी सतह पर 300 के करीब निशान देखे। पहले माना जाता था कि ये बर्फ है लेकिन Dawn की खोज से पता चला कि यहां हाइड्रेटेड मैग्नीशियम सल्फेट और सोडियम कार्बोनेट है जो जमीन की मौसमी झीलों के भाप में बदलने के बाद रह जाता है। इन चमकीले निशानों वाली जगह पर नमक की मौजूदगी से पता चला कि धरती और मंगल के अलावा यह अकेली ऐसी जगह है जहां कार्बोनेट मौजूद हैं। ये जीवन के लिए मुमकिन कंडीशन्स की ओर इशारा करते हैं।
Ceres का नाम फसल से जुड़े रोमन देवता के नाम पर रखा गया है। यह सूरज का एक चक्कर पूरा करने में 4.6 साल लगाता है। अपनी धुरी पर यह हर 9 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है। इस पर कार्बोनेट जरूर मिले हैं लेकिन इस पर किसी तरह का वायुमंडल होने का सबूत नहीं मिला है। कुछ मात्रा में भाप जरूर मिली है जो छोटी टक्करों के कारण बर्फ के वाष्पित होने से पैदा हुआ लगती है। हालांकि, यह बेहद खास इसलिए है क्योंकि यहां पानी है जो कई ग्रहों या दूसरे ऑब्जेक्ट्स पर नहीं पाया गया है लेकिन जीवन के लिए सबसे जरूरी है। इसका खुद का कोई चांद नहीं है और न किसी तरह के छल्ले।
जीवन की खोज में Ceres कितना अहम है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि वैज्ञानिकों ने अब एक मेगासैटलाइट पर काम करने का विचार बनाया है जो Ceres के चक्कर काटेगी। यहां इंसानों को बसाया जाएगा। टीम के मुताबिक यहां नाइट्रोजन की मात्रा पर्याप्त है जिससे धरती जैसा वायुमंडल बनाया जा सकता है। धरती के वायुमंडल में 78% नाइट्रोजन मौजूद है। Ceres धरती से 50 करोड़ किलोमीटर दूर है और यहां बेस होने से इंसान बृहस्पति और शनि तक पर जा सकेगा।
ऐस्टरॉइड से होगा कितना नुकसान?
ऐस्टरॉइड की कक्षा यूं तो यह होती है लेकिन किसी विशाल ग्रह के पास से गुजरने से गुरुत्वाकर्षण या सूरज की गर्मी से इनके जलने पर पैदा ऊर्जा के कारण कक्षा बदल भी सकती है। अगर ऐस्टरॉइड धरती से टकराते हैं तो महाविनाश हो सकता है। इनके कारण परमाणु बम विस्फोट जितना नुकसान हो सकता है, वहीं सागरों में महासुनामी धरती को डुबा सकती है। माना जाता है कि धरती से डायनोसोर भी ऐस्टरॉइड से टक्कर के कारण खत्म हुए थे।


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