नासा ने बनाया प्लान, दुनिया में पहली बार यहां भरेगा उड़ान

Update: 2022-03-22 12:16 GMT

नई दिल्ली: नॉर्दन लाइट्स (Northern Lights) यानी अरोरो बोरिएलिस (Aurora Borealis) जब सक्रिय होते हैं, उस समय उनके आसपास किसी भी तरह के रॉकेट्स या सैटेलाइट्स नहीं चलाए जाते. क्योंकि तीव्र इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से सैटेलाइट्स या रॉकेट खत्म हो सकते हैं. या फिर निष्क्रिय हो सकते हैं. इससे करोड़ों-अरबों रुपयों का नुकसान हो सकता है. लेकिन अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) सक्रिय नॉर्दन लाइट्स के बीच एक रॉकेट भेजने वाली है. 

नासा 23 मार्च को अलास्का स्थित पोकर फ्लैट रिसर्च रेंज से आयन-न्यूट्रल कपलिंग ड्यूरिंग एक्टिव अरोरा यानी INCAA Mission लॉन्च करने वाला है. यह मिशन नॉर्दन लाइट्स (Northern Lights) के बीच उड़ते हुए उसकी तीव्रता, ऊर्जा, गर्मी आदि की जांच करेगा. क्योंकि नॉर्दन लाइट्स की ऊर्जा भविष्य में इंसानों के काम आ सकती है. वहां से भारी मात्रा में गर्मी को स्टोर किया जा सकता है. 
हम सभी लोग क्षोभमंडल यानी ट्रोपोस्फेयर (Troposphere) के नीचे रहते हैं. यह धरती की सबसे निचली वायुमंडली परत है. हम जो हवा सांस लेते हैं, वो न्यूट्रल पार्टिकल्स से बनी होती है. ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जो हम अपनी सांस में खींचते हैं वह चुंबकीय स्तर पर संतुलित अणुओं और कणों से बनी होती है. लेकिन सैकड़ों किलोमीटर ऊपर ऐसा नहीं है. वहां पर सूरज से आने वाले आवेषित कण गैसों की स्थिति को बिगाड़ देते हैं. 
अणुओं से इलेक्ट्रॉन टूटकर निकल जाते हैं. खुले में घूमते रहते हैं. प्लाज्मा का निर्माण करते हैं. प्लाज्मा गर्म होती है. हालांकि यह एक सीमा में ही होता है लेकिन इसकी बाउंड्री पर दो तरह के कण मिलते हैं. जैसे रोज बहने वाली हवा और चुंबकीय प्रभाव के चलते दो तरह के कणों के आपस में मिलने से ऊर्जा निकलती हैं. यही ऊर्जा इंसानों के काम आ सकती है. साउथ कैरोलिना स्थित क्लेमसन यूनिवर्सिटी में फिजिक्स और एस्ट्रोनॉमी के असिसटेंट प्रोफेसर स्टीफेन कैपलर ने कहा कि घर्षण एक बहुत बड़ी प्रक्रिया है. जब आप अपनी हथेलियों को रगड़ते हैं, तो उससे गर्मी पैदा होती है. 
इसी बेसिक आइडिया पर नासा के साइंटिस्ट नॉर्दन लाइट्स के बीच रॉकेट उड़ाकर यह जानने का प्रयास करेंगे कि वहां पर सक्रिय अरोरा के समय कितनी ऊर्जा पैदा होती है. सक्रिय अरोरा के आवेषित कण (Charged Particles) जब वायुमंडल के न्यूट्रल गैसीय कणों से टकराते हैं, तब वो घर्षण से रंग-बिरंगी रोशनी पैदा करते हैं. अलग-अलग गैस से अलग-अलग रंग की रोशनी निकलती है. ये ठीक वैसा ही है जैसे स्टेडियम में मैच जीतने के बाद दर्शक तेजी से स्टेडियम की ओर भागते हैं. वो जैसे-जैसे नीचे उतरते हैं, घनत्व बढ़ता चला जाता है. बस इसी घनत्व के बीच घर्षण से ऊर्जा पैदा होती है. जिसे स्टोर किया जा सकता है.
प्रो. स्टीफेन ने बताया कि यह इतने बड़े पैमाने पर होता है कि इससे वायुमंडल की एक बड़ी परत हिल जाती है. वहां पर भारी मात्रा में ऊर्जा का फ्लो होता है. खासतौर से ऊपरी वायुमंडल में. खैर अब बात करते हैं कि आयन-न्यूट्रल कपलिंग ड्यूरिंग एक्टिव अरोरा यानी INCAA Mission काम कैसे करेगा. यह मिशन अरोरा के बीच से गुजरेगा. उसकी ऊर्जा मापेगा. सीमाओं को तोड़ने और परतों में फैलने की प्रक्रिया को समझेगा. 
INCAA Mission में दो पेलोड्स हैं. हर एक पेलोड अलग-अलग साउंडिंग रॉकेट के ऊपर लगाए गए हैं. साउडिंग रॉकेट छोटे रॉकेट होते हैं, जो कुछ मिनट तक ही उड़ते हैं. ताकि जमीन पर गिरने से पहले ये वायुमंडल के ऊपर जाकर रासायनिक गणनाएं कर सकें और फिर वापस धरती पर लौट आएं. इन रॉकेट्स की मदद से अक्सर वायुमंडल की स्टडी की जाती है.
इसे लॉन्च करने से पहले वैज्ञानिक लॉन्च पैड पर नॉर्दन लाइट्स के आने का इंतजार करेंगे. जैसे ही अरोरा का निर्माण होगा. ये दोनों रॉकेट लॉन्च किए जाएंगे. पहला रॉकेट वेपर ट्रेसर छोड़ते हुए ऊपर जाएगा. जिसमें से रंगीन रसायन निकलेंगे. यह अधिकतम 299 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाएगा. वेपर ट्रेसर्स की वजह से आसमान में दिखने वाले बादल बन जाएंगे. जो धरती से दिखाई देंगे. 
इसके कुछ मिनट के अंतर पर दूसरा रॉकेट लॉन्च किया जाएगा. यह रॉकेट 201 किलोमीटर की ऊंचाई तक जाएगा. यह उस ऊंचाई पर अरोरा का तापमान और उसके अंदर बाहर मौजूद प्लाज्मा का घनत्व मापेगा. फिलहाल वैज्ञानिकों को यह आइडिया नहीं है कि किस तरह के आंकड़ें मिलेंगे. लेकिन यह बात तो तय है कि पहली बार किए जा रहे इस प्रयोग में कुछ बेहद रोचक और शानदार जानकारियां मिलने वाली हैं. 

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