असंभव मिशन! अंतरिक्ष में होने जा रहा ये...

NASA एक ऐसा प्लान लेकर आया है, जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे.

Update: 2022-07-30 09:54 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) एक ऐसा प्लान लेकर आया है, जिसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. कोई सूरज (Sun) के साथ ऐसा मिशन कैसे प्लान कर सकता है. नासा ने सूर्य को विशालकाय टेलिस्कोप में बदलने की तैयारी कर रखी है. वह इस मिशन के जरिए दूसरी दुनिया, ब्रह्मांड या आकाशगंगा के एलियन प्लैनेट्स (Alien Planets) को देखेगा. उनकी सतह की जांच करेगा.

नासा के इस मिशन का नाम है सोलर ग्रैविटेशन लेंस प्रोजेक्ट (Solar Gravitation Lens Project). इस प्रोजेक्ट की सफलता को लेकर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई है. नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि एलियन ग्रहों या एक्सोप्लैनेट्स (Exoplanets) को सीधे देखना एक बेहद कठिन काम है. अगर आपको धरती से 100 प्रकाश वर्ष दूर मौजूद किसी एलियन प्रजाति को देखना है. अगर वह एक पिक्सल के बराबर दिख रहा है, तो उसे ढंग से देखने के लइे 90 किलोमीटर व्यास के प्राइमरी लेंस वाले टेलिस्कोप की जरूरत होगी. इतना बड़ा लेंस तो बनाया नहीं जा सकता.
नासा ने नया तरीका निकाला. नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि हम ऐसा प्रोजेक्ट लाए हैं जिससे एलियन दुनिया की सतहों का नक्शा बना सकते हैं. इसके लिए हम सूरज से निकलने वाली रोशनी को ही विशालकाय लेंस में बदल देंगे. अंतरिक्ष में मौजूद हर वस्तु अपने स्पेसटाइम में होता है. वह प्रकाश को मोड़ता है. यानी वह गुरुत्वाकर्षण की वजह से एक लेंस बनाता है. इस गुरुत्वाकर्षण वाले लेंस यानी ग्रैविटेशनल लेंस के जरिए हम उस ग्रह के पीछे सुदूर अंतरिक्ष तक झांक सकते हैं. हमारे सौर मंडल में सूरज से बड़ी कोई वस्तु नहीं है. उसके चारों तरफ रोशनी का बड़ा घेरा है.
गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से वह रोशनी मुड़ती भी है. यानी लेंस जैसा काम भी करती है. बस हमें सही तकनीक की मदद लेकर इस लेंस को टेलिस्कोप में बदल देना है. इसके बाद में हम सूरज की रोशनी वाले लेंस की मदद से ब्रह्मांड में मौजूद एलियन ग्रहों या एक्सोप्लैनेट्स (Exoplanets) को आराम से देख सकेंगे. इस तकनीक की बदौलत न सिर्फ एलियन ग्रहों को देखा जा सकेगा. बल्कि उनकी सतह पर अगर कोई शहर मौजूद है तो हम वह भी देख सकेंगे.
NASA सूरज और धरती के बीच मौजूद दूरी से करीब 650 गुना ज्यादा दूर एक तकनीक सेट करेगा. ताकि सूरज की रोशनी की मदद से दूसरी दुनिया में ताक-झांक की जा सके. लेकिन मुद्दा ये है कि इतनी दूर तक कोई वस्तु पहुंचेगी कैसे. क्योंकि इंसानों द्वारा अगर कोई चीज सबसे दूर गई है तो वह है वॉयजर-1 स्पेसक्राफ्ट (Voyager 1). यह पिछले 45 साल से लगातार यात्रा कर रहा है. अब तक उसने सूरज से 157 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट की दूरी तय की है. जबकि सूरज को टेलिस्कोप बनाने के लिए जिस तकनीक को अंतरिक्ष में सेट करने की बात हो रही है, उसे 650 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट पर रखना है.
फिलहाल नासा के वैज्ञानिकों की टीम ये सोच रही है कि एक छोटा टेलिस्कोप बनाकर इस दूरी को तय करने के लिए भेजा जाए. तब भी इसे वहां तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे. अगर वह बेहद तेज गति से गया तो भी. इस काम में मदद के लिए वो सोलर सेल यानी सौर हवा की मदद लेंगे. इससे यह यान सूरज के बेहद नजदीक पहुंच जाएगा. उसके बगल से तेजी से निकल जाएगा. सुरक्षित रहते हुए. यह टेलिस्कोप वाला स्पेसक्राफ्ट जब एक्सपेरिमेंट करेगा तो उससे पता चलेगा कि बड़े लेवल पर कैसे काम करना है.
नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी की साइंटिस्ट डॉ. स्लावा तुरिशेव ने कहा कि यह प्रोजेक्ट बेहद महत्वकांक्षी है. बड़ा है. असंभव लगता है लेकिन है नहीं. इसे किया जा सकता है. हमारा टारगेट है कि हम इसे 2034 तक पूरा कर लेंगे. इसके बाद दूसरी दुनिया के ग्रहों, वहां रह रहे जीवों, प्रजातियों आदि के बारे में जानकारी जमा करेंगे. यह जानना जरूरी है कि ब्रह्मांड में ऐसे और कौन से ग्रह हैं, जहां पर इंसानों जैसे या उससे बेहतर सभ्यता रह रही है. क्या वो भविष्य में हमारी मदद करेंगे. या हम पर हमला करेंगे. धरती को बचाने और संवारने के लिए उनकी जानकारी जरूरी है.


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