Meteor Shower : आधी रात को आसमान पर होगी Leonid उल्कापिंड की बारिश,जाने इसके बारे में...

ऐस्ट्रोनॉमर्स और स्काईवॉचर्स के लिए 17 नवंबर की रात से लेकर 19 नवंबर तक आसमान का नजारा दिल थाम देने वाला होगा।

Update: 2020-11-18 15:41 GMT

Meteor Shower : आधी रात को आसमान पर होगी Leonid उल्कापिंड की बारिश,जाने इसके बारे में... 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क :  वॉशिंगटन:   ऐस्ट्रोनॉमर्स और स्काईवॉचर्स के लिए 17 नवंबर की रात से लेकर 19 नवंबर तक आसमान का नजारा दिल थाम देने वाला होगा। दरअसल, इस महीने दो-दो Meteor Shower यानी उल्कापिंडों की बारिश होनी है जिसमें से एक Leonid Meteor Shower इन दिनों होने वाला है। आसमान से टूटकर गिरते तारे जो अद्भुत नजारे बनाने वाले हैं, उन्हें लेकर ऐस्ट्रोनॉमर्स बेहद उत्साहित हैं।

कहां से आते हैं Leonid

Leonid इसी नवंबर के पहले हफ्ते में ऐक्टिव हो चुके हैं और इस महीने के आखिर में ये जारी रहेंगे। यह Comet 55P/Tempel-Tuttle से आते हैं और सदियों से बड़ी संख्या में टूटते तारे इस दौरान आसमान रोशन करते हैं। कई बार एक घंटे में सैकड़ों तारे देखे जा सकते हैं। हालांकि, अमेरिकन मीटियर सोसायटी (AMS) का कहना है कि ऐसा मुश्किल है कि ऐसी भारी बारिश हमें अपने जीवन में देखने को मिलें। हो सकता है कि साल 2030 में ऐसी बारिश मिले।

कैसे देखे जा सकते हैं

भारत में 17 नवंबर को आधी रात के बाद इन्हें आसमान साफ होने पर देखा जा सकेग। हालांकि, बादल या ज्यादा रोशनी में इन्हें देखना मुश्किल होगा। जमीन पर लेटकर देखने से ज्यादा तारों को देखे जाने की संभावना रहेगी। तारामंडल Leo की दिशा से आने से इन्हें देखा जा सकेगा।

क्या होते हैं उल्कापिंड?

उल्कापिंड ऐस्टरॉइड का ही हिस्सा होते हैं। किसी वजह से ऐस्टरॉइड के टूटने पर उनका छोटा सा टुकड़ा उनसे अलग हो जाता है जिसे उल्कापिंड यानी meteroid कहते हैं। जब ये उल्कापिंड धरती के करीब पहुंचते हैं तो वायुमंडल के संपर्क में आने के साथ ये जल उठते हैं और हमें दिखाई देती एक रोशनी जो शूटिंग स्टार यानी टूटते तारे की तरह लगती है लेकिन ये वाकई में तारे नहीं होते। और ये Comet यानी धूमकेतु भी नहीं होते।

क्या होते हैं Comet?

आपको बता दें कि धूमकेतु भी (Asteroids) की तरह सूरज का चक्कर काटते हैं लेकिन वे चट्टानी नहीं होते बल्कि धूल और बर्फ से बने होते हैं। जब ये धूमकेतु सूरज की तरफ बढ़ते हैं तो इनकी बर्फ और धूल वेपर यानी भाप में बदलते हैं जो हमें पूंछ की तरह दिखता है। खास बात ये है कि धरती से दिखाई देने वाला कॉमट दरअसल हमसे बेहद दूर होता है।

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