खुल सकेंगे कई राज! खगोलविदों ने खोजा क्षुद्रग्रह का सबसे युवा जोड़ा, जानें कैसे हैं दोनों

क्षुद्रग्रह का सबसे युवा जोड़ा

Update: 2022-02-08 13:22 GMT
हमारे सौरमंडल (Solar System) में क्षुद्रग्रह (Asteroids) तो बहुत हैं लेकिन वे जोड़े से कम मिलते हैं. हाल ही में एक अध्ययन में सूर्य का चक्कर लगाने वाले एक क्षुद्रग्रह के जोड़े को खोजा गया है जो केवल 300 साल पुराना है. यह अब तक का खोजा गया सबसे युवा क्षुद्रग्रह जोड़ा (young Asteroid Pair) है. आमतौर पर क्षुद्रग्रहों के बारे में माना जाता है कि वे सौरमंडल में ग्रहों के निर्माण के समय बने हैं, लेकिन इस खोज से जहां क्षुद्रग्रहों के बारे में कई सवालों के जवाब मिल सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ रहस्यमयी सवाल भी पैदा हो रहे हैं.
कल नहीं सुबह की ही घटना
चेकिया स्थित एस्ट्रोनॉमिकल इस्टीट्यूट ऑफ द चेक एकेडमी ऑफ साइंसेस में कार्यरत खगोलविद पेट्रा फात्का ने बताया कि इस तरह के युवा क्षुद्रग्रह के जोड़े को खोजना बहुत रोचक है जो केवल तीन सौ साल पहले ही बना है. यह खगोलीय समायवधियों में कल की नहीं बल्कि आज सुबह की ही घटना है.
कैसे बनते हैं क्षुद्रग्रह
गैस और धूल के विशाल और घने बादल से जब हमारे सौरमंडल का निर्माण हो रहा था, उसमें से जो भी ग्रहों या सूर्य से नहीं जुड़ा था, वह अवशेषों के तौर पर तैरने लगा था तो अंततः धूमकेतू, क्षुद्रग्रह जैसी चीजों में बदल गए. माना जाता है कि ये पिंड तब से सौरमंडल में हैं जब से पृथ्वी बनी है. वास्तव में पृथ्वी सहित मंगल, शुक्र और बुध जैसे पथरीले ग्रहों में ही ये पदार्थ जमा हो गए थे.
क्षुद्रग्रहों में ज्यादा रुचि क्यों
इसी वजह से क्षुद्रग्रहों में हमारे वैज्ञानिकों को बहुत ज्यादा दिलचस्पी है जिसकी वजह से वे इनका अध्ययन सौरमंडल का इतिहास जानने के लिए करते हैं. लेकिन वैज्ञानिक यह भी जानना चाहते हैं कि समय के साथ इन पिंडों में बदलाव कैसे हुआ था. इससे क्षुद्रग्रहों के भावी बर्तावों का अनुमान लगाने में भी सहायता मिलेगी. जो पृथ्वी जैसे संवेदनशील ग्रह से टकराकर उसके पूरे परिस्थितिकी तंत्र बदलने में सक्षम हैं.
असामान्य कक्षा
खोजे गए दो नए क्षुद्रग्रह 2019PR2 और 2019 QR6 नाम के हैं जो साल 2019 में हवाई के पैन STARRS1 सर्वे टेलीस्कोप और एरीजोना के कैटेलीना स्काय सर्वे के द्वारा अलग अलग खोजे गए थे. उनकी सूर्य का चक्कर लगाने वाली कक्षा अंडाकार है जो उन क्षुद्रग्रहों की कक्षा की तुलना में असामान्य है जो पृथ्वी पास रह कर सूर्य का चक्कर लगाते हैं.
अध्ययन के लिए एक पूरी टीम
दरअसल द्विज क्षुद्रग्रह नई चीज नहीं हैं. लिकन उनके निर्माण का प्रणाली तंत्र सही तरह से समझा नहीं गया है. इसी लिए वैज्ञानिकों ने इसके लिए अवलोकन टीम का गठन किया है जिससे इस जोड़े के बारे में अधिक जानकारी हासिल हो सके. इसके लिए उन्होंने अलग अलग टेलीस्कोप से जोड़े की तस्वीर ली.
कैसे हैं दोनों क्षुद्रग्रह
इन अवलोकनों से पता चला कि दोनों में से बड़ा पिंड एक किलोमीटर बड़ा है और दूसरा उसके आकार का आधा है. शोधकर्ताओं को यह भी पता चला कि दोनों की सतहें एक सी ही हैं जिससे जाहिर होता है कि ये एक ही पिंड से निकले हैं नतीजों को मॉडलिंग से मिलाने पर उन्हें पता चला कि ये क्षुद्रग्रह अपने मूल पिंड से केवल 270 साल पहले ही अलग हुआ है.
अधिकांश द्विज क्षुद्रग्रह संभवता घूर्णन विखंडन से पैदा होते हैं. और उससे निकलने अवशेषों से छोटे पिंड बन जाते हैं. लेकिन अगर कोई व्यवधान ना आया होता तो इन पिंडों के निर्माण में 270 साल ज्यादा का समय लगना चाहिए था. लेकिन यह अब भी रहस्य ही है कि कैसे ये पिंड एक मूल सक्रिया पिंड से केवल 300 साल में ही अलग निष्क्रिय पिंडों में बदल गए. अब ये साल 2033 में पृथ्वी के पास गुजरेंगे.
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