जानिए क्या हुआ था जब अंटार्कटिका में बिछी बर्फ की दो मील मोटी चादर पिघली

ग्लोबल वॉर्मिंग और उसके असर और उसके कारणों को समझने के लिए अंटार्कटिका की बर्फ के भीतर कई राज़ छुपे हैं

Update: 2020-11-23 15:17 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ग्लोब में आपने अंटार्कटिका देखा होगा. दक्षिणी ध्रुव (South Pole). धरती का सबसे ठंडा और सबसे उजड़ा हुआ, ​वीरान इलाका. यहां बर्फ ही बर्फ है और करीब दो मील मोटी बर्फ की चादर (Ice Caps) बिछी हुई है. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ग्लेशियरों का यह प्रदेश कभी हरा भरा इलाका हुआ करता था. जी हां, ऐसा था लेकिन 10 करोड़ साल पहले. यहां उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों जैसा तापमान (Tropical Atmosphere) होता था और कई तरह के स्तनधारी जीव हुआ करते थे. यह कुछ ही समय पहले की बात है कि यह अलग-थलग हिस्सा होकर इतना ठंडा हो गया.

अब दुनिया के नक्शे पर जो कुछ देश और महाद्वीप आपको दिखाई देते हैं, कभी अंटार्कटिका से जुड़े हुए थे यानी एक ही थे. फ्लैशबैक में देखा जाए, तो बहुत कुछ समझा जा सकता है कि कैसे अंटार्कटिका अपने मौजूदा रूप में आया और यहां जीवन एक तरह से बेहद कठिन हो गया. वैज्ञानिकों ने कई सालों से इस पर शोध किए हैं और उनसे जो कुछ हाथ लगा है, इतिहास का वो सार भविष्य को जानने में काफी मददगार है.

साढ़े 5 करोड़ साल पहले

वर्तमान में वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड के 390 पार्ट प्रति मिलियन (ppm) हैं, जबकि साढ़े 5 करोड़ साल पहले अंटार्कटिका में यह 1000 पीपीएम था. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका मतलब यह है कि इतनी गर्मी से तमाम बर्फ पिघल सकती थी. समुद्र तल से​ जितनी औसत ऊंचाई अब है, उससे करीब 200 फीट ज़्यादा ऊंचाई उस वक्त रही होगी.



साढ़े 3 करोड़ साल पहले

उस वक्त अंटार्कटिका पेड़ पौधों से पटा इलाका था इसलिए अच्छी खासी बारिश हुआ करती थी. लेकिन, 5 से 3.4 करोड़ साल पहले के दौरान यहां बर्फ फैलना शुरू हुई. वैज्ञानिक अब भी इस बात पर अलग अलग राय रखते हैं कि ऐसा क्यों हुआ. 3.4 करोड़ साल पहले तस्मानिया और दक्षिण अमेरिका टूटकर अंटार्कटिका से अलग हो गए क्योंकि बर्फ पिघली थी.



यह अहम घटना थी क्योंकि इसके बाद ही अंटार्कटिका बहुत छोटा और एकदम अलग थलग हिस्सा होता चला गया. ध्रुवीय प्रवाह की शुरूआत भी तभी हुई यानी बेहद ठंडे पानी की धाराएं इस तरफ बहने की शुरूआत. लेकिन, उस वक्त वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड का लेवल बदल रहा था. वैज्ञानिक मानते हैं कि इन ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव से ही अंटार्कटिका में बर्फ की मोटी चादरें शिफ्ट होने का सिलसिला रहा.

70 लाख साल पहले

अंटार्कटिका को समझने के लिहाज़ से सबसे उलझा हुआ समय 70 लाख साल से 1.4 करोड़ साल पहले के बीच का वक्त है. इसे वैज्ञानिक मध्य आधुनिक काल कहते हैं. माना जाता है कि इस समय पृथ्वी का तापमान और वातावरण में CO2 का स्तर तकरीबन वैसा ही था, जैसा हम आज देखते हैं. इसके बावजूद, अंटार्कटिका में लगातार बदलाव हो रहे थे.



उस वक्त अंटार्कटिका की बर्फ में लगातार बदलावों से समुद्र स्तर बढ़ रहा था. वैज्ञानिक इस पहेली को समझने के लिए पिछले कई सालों से शोध कर रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि इन शोधों से भविष्य की पर्यावरणीय घटनाओं को समझने में काफी मदद मिलेगी. कैसे? इसे भी ज़रा देख लीजिए.



अंटार्कटिक का इतिहास बतलाएगा भविष्य?

दुनिया में उद्योगों की शुरूआत से पहले CO2 का स्तर 280ppm था, जो अब 390ppm है. इसी के कारण दुनिया में तापमान करीब 1 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ चुका है और ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या मुंह बाए खड़ी है. अब अगर हर साल 2ppm की रफ्तार से भी ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ती है तो 1000ppm होने में काफी लंबा अरसा लगेगा, जैसा कि अंटार्कटिका में 5 करोड़ साल पहले देखा गया था. लेकिन उस स्थिति में जलप्रलय की कल्पना की जा सकती है.

वर्तमान के 390ppm से बढ़कर यह स्तर जब 500ppm के नज़दीक पहुंचेगा तो बर्फ की चादरें बड़े पैमाने पर पिघलना शुरू हो जाएंगी. वातावरण में CO2 की अस्थिरता के इस चक्र को समझने की कोशिश वैज्ञानिक कर रहे हैं. अब तक यही समझा जा रहा है कि पृथ्वी के भीतर उसकी संरचना की टेक्टोनिक प्लेटों की हलचलों से ऐसा होता रहा है कि धरती गर्म हो जाती है और फिर समय के साथ ठंडी होती है.

बहरहाल, ग्लोबल वॉर्मिंग और उसके असर और उसके कारणों को समझने के लिए अंटार्कटिका की बर्फ के भीतर कई राज़ छुपे हैं. समय रहते अगर वैज्ञानिक इन रहस्यों को समझ सकेंगे, तो प्रलय के खतरे को टाले जाने के संभव कदम उठाने में बड़ी मदद मिलेगी, यह तय है.

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