आईआईटी रिसर्च: माइक्रोवेव की मदद से विंड टरबाइन ब्लेड के पॉलिमर कंपोजिट का रीसाइकल
नई दिल्ली (आईएएनएस)| भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने माइक्रोवेव की मदद से विंड टरबाइन ब्लेड के पॉलिमर कंपोजिट को रीसाइकल करने में सफलता पाई है। यह प्रक्रिया वर्तमान में प्रचलित लैंडफिल, थर्मल आधारित रीसाइक्लिंग आदि की तुलना में अधिक तेज, सस्टेनेबल और पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायक है।
पूरी दुनिया में पवन बिजली जैसी अक्षय ऊर्जा अपनाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा से होने वाले नुकसान कम हों। भारत पवन बिजली संयंत्र लगाने में सर्वोपरि चौथे स्थान पर है। पवन बिजली के ²ष्टिकोण से देश के अहम् क्षेत्रों में विंड टर्बाइन (विंडमिल्स) लगाए जाते हैं। विंड टर्बाइन के ब्लेड पॉलिमर कंपोजिट से बने होते हैं। इस पॉलिमर सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए कार्बन फाइबर और ग्लास फाइबर इस्तेमाल किए जाते हैं।
शोध के निष्कर्ष 'रिसोर्सेज, कंजर्वेशन एण्ड रीसाइक्लिंग' नामक जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। यह शोध आईआईटी मंडी में स्कूल ऑफ मैकेनिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सनी जफर और स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वेंकट कृष्णन के मार्गदर्शन में किया गया है। शोध पत्र तैयार करने में उनकी छात्राओं मंजीत रानी और प्रियंका का योगदान रहा है।
डॉ सनी जफर ने शोध के बारे में बताया, हम ने उपयोगिता समाप्त कर चुके ग्लास फाइबर रीन्फोर्ड पॉलिमर (जीएफआरपी) कम्पोजिट को रीसाइकल करने के लिए माइक्रोवेव की मदद से सस्टेनेबल रासायनिक रीसाइक्लिंग (एमएसीआर) प्रक्रिया विकसित की है। साथ ही, हाइड्रोजन पेरोक्साइड और एसिटिक एसिड के साथ जीएफआरपी कंपोजिट के रासायनिक अपघटन में माइक्रोवेव का उपयोग किया है। हाइड्रोजन पेरोक्साइड और एसिटिक एसिड दोनों पर्यावरण के लिए स्वच्छ रसायन हैं। पहले का उपयोग व्यापक स्तर पर कीटाणुनाशक एंटीबायोटिक के रूप में होता है और दूसरा विनेगर है।
विंड टरबाइन ब्लेड का उपयोग पूरी तरह समाप्त होने के बाद पूरे स्ट्रक्च र को निष्क्रिय कर दिया जाता है। इसके एपॉक्सी पॉलिमर में ग्लास फाइबर होते हैं जिन्हें ध्वस्त कर या तो लैंडफिल में डाल दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है। लेकिन कचरा निपटाने के ये दोनों तरीके पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ाते हैं और खर्चीले भी हैं। 2024 और 2034 के बीच पूरी दुनिया में विंड टरबाइन ब्लेड से लगभग 200,000 टन कम्पोजिट कचरा उत्पन्न होने का अनुमान है। इस तरह पवन बिजली से होने वाला पर्यावरण लाभ बेअसर होता दिखता है और फिर लैंडफिल में कचरा फेकने संबंधी प्रतिबंध और कच्चे माल की लागत में उतार-चढ़ाव के चलते विंड टरबाइन ब्लेड में उपयोग किए जाने वाले कंपोजिट की लागत भी बढ़ सकती है।
शोध के दूरगामी लाभ बताते हुए डॉ वेंकट कृष्णन ने कहा, हमारी रीसाइक्लिंग पद्धति से रीसाइक्लिंग की प्रौद्योगिकियों में बड़े बदलाव आएंगे जो देश को विंड टरबाइन ब्लेड की सकरुलर इकोनोमी की ओर तेजी से बढ़ने में मदद कर करेंगे।
आईआईटी मंडी टीम ने विंड टरबाइन ब्लेड में इस्तेमाल होने वाले कंपोजिट के फाइबर को रीसाइकल करने के लिए एक तेज प्रक्रिया विकसित की है और यह पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि फाइबर रीसाइकिल करने में हानिकार रसायन उपयोग नहीं किए गए और सभी रसायन पर्यावरण को स्वच्छ रखने वाले थे।
शोधकर्ताओं ने यह देखा कि ग्लास फाइबर की रिकवरी के साथ हमारी प्रक्रिया में एपॉक्सी की अपघटन दर 97.2 प्रतिशत थी। इस तरह हासिल ग्लास फाइबर का परीक्षण किया गया और उनके गुणों की तुलना वर्जिन फाइबर से की गई। हासिल किए गए फाइबर में वर्जिन फाइबर की तरह लगभग 11 प्रतिशत से अधिक शक्ति और अन्य यांत्रिक गुण बरकरार थे।