अगर धरती से टकराया Asteroid तो मच सकती है तबाही, नासा ने चेताया
नासा ने चेताया
वॉशिंगटन/पेरिस, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने चेतावनी दी है कि आने वाले वर्षों में धरती से कभी भी ऐस्टरॉइड टकरा सकता है और हमारी पृथ्वी इस टक्कर के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि धरती को बचाने के लिए हमें इससे निपटने के लिए बेहतर तैयारी की जरूरत है। नासा और यूरोपीय एजेंसी ने ऐस्टरॉइड के टक्कर का पूर्वाभ्यास करने के बाद निकले निष्कर्षों के आधार पर यह चेतावनी दी है।
इससे पहले 26 अप्रैल को नासा के प्लेनेटरी डिफेंस कोऑर्डिनेशन ऑफिस ने एक पूर्वाभ्यास किया जिसमें उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि अगर एक ऐस्टरॉइड धरती से टकराता है तो इसका क्या असर होगा। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस टक्कर की आशंका अभी दूर-दूर तक नहीं है लेकिन भविष्य में यह टक्कर हो सकती है। अब इस अभ्यास के बाद नासा और यूरोपीय एजेंसी धरती को बचाने की तैयारी शुरू कर दी है।
अभ्यास के दौरान नासा के सेंटर ने यह कल्पना की कि एक विशाल ऐस्टरॉइड धरती की ओर बढ़ रहा है। इस ऐस्टरॉइड को 2021 PDC नाम दिया गया जो करीब 35 मीटर चौड़ा और 700 मीटर चौड़ा था। इस अभ्यास के दौरान पाया गया कि ऐस्टरॉइड के धरती से टकराने के 5 प्रतिशत चांस हैं। उन्होंने कहा कि यह टक्कर यूरोप में कहीं हो सकती है। उन्होंने अंतरिक्ष से आने वाले चट्टान से यह टक्कर इतनी भयानक होगी जैसे किसी शक्तिशाली परमाणु बम के विस्फोट पर होती है।
नासा की ओर से जारी वीडियो में मंगल ग्रह पर यान के उतरने की पूरी प्रक्रिया नजर आ रही है। इस वीडियो की शुरुआत रोवर के मंगल ग्रह के वातावरण में पहुंचने के ठीक 230 सेकंड बाद होती है। मंगल ग्रह के 7 मील ऊपर नासा के रोवर का पैराशूट खुल जाता है। वीडियो का अंत रोवर के मंगल ग्रह की सतह को छूने के साथ होता है। नासा से जुड़े थॉमस जुरबूचेन ने कहा, 'रोवर के लैंडिंग का यह वीडियो बहुत शानदार है और सूट पर ज्यादा दबाव डाले बिना आप इसे कर सकते हैं।' उन्होंने कहा कि यह हर युवा महिला और पुरुष वैज्ञानिक के लिए जरूरी होना चाहिए जो दूसरी दुनिया की खोज करना चाहते हैं और ऐसे यान बनाना चाहते हैं जो उन्हें दूसरी दुनिया में ले जाए। नासा के इस अत्याधुनिक रोवर में कुल 23 कैमरे लगे हुए हैं। इसमें जूम करने और रंगीन वीडियो बनाने की क्षमता है। रोवर में एक हेलीकॉप्टर लगा है जिसे Ingenuity नाम दिया गया है। यह रोवर मंगल ग्रह पर उतरने के बाद नासा के वर्ष 2006 में भेजे गए ऑर्बिटर की मदद से अपना डेटा और तस्वीरें भेज रहा है।
नासा के रोवर ने अपने माइक्रोफोन की मदद से लाल ग्रह की हवाओं की कुछ सेकंड की आवाज को भेजा है। हालांकि माइक्रोफोन ने बहुत इस्तेमाल किए जाने वाला डेटा नहीं भेजा है। Mars Perseverance रोवर ने अपने ट्विटर अकाउंट से मंगल ग्रह की आवाज को शेयर किया है। नासा के रोवर ने मंगल ग्रह पर उतरने की कुल 23000 तस्वीरें भेजी हैं। यही नहीं अभी तक किसी भी अंतरिक्ष यान ने उतरने का वीडियो कैमरे में कैद नहीं किया है। नासा से जुड़े अल चेन ने कहा कि ये वीडियो और तस्वीरें हमारा सपना था। इसका सपना हम कई वर्षों से देख रहे थे। नासा के 5 कैमरों ने एक साथ रोवर के मंगल ग्रह पर उतरने को रेकॉर्ड किया। इस दौरान यह क्राफ्ट 7 मिनट में 12 हजार मील प्रतिघंटे की रफ्तार से 0 मील प्रति घंटे की रफ्तार पर आ गया और सतह पर लैंड कर गया। नासा का रोवर जेजेरो क्रेटर में उतरा है जिसे मंगल की प्राचीन झील का तल माना जाता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगर मंगल पर कभी जीवन था, तो उसके संकेत यहां जीवाश्मों में मिल सकेंगे।
NASA का Perseverance रोवर मंगल पर ऐस्ट्रोबायॉलजी से जुड़े कई अहम सवालों के जवाब खोजेगा। इनमें से सबसे बड़ा सवाल है- क्या मंगल पर जीवन संभव है? यह मिशन न सिर्फ मंगल पर ऐसी जगहों की तलाश करेगा जहां पहले कभी जीवन रहा हो बल्कि अभी वहां मौजूद माइक्रोबियल लाइव के संकेत भी खोजेगा। Perseverance रोवर कोर वहां चट्टानों और मिट्टी से सैंपल लेगा और भविष्य में वहां जाने वाले मिशन इन सैंपल्स को धरती पर वापस लेकर आएंगे। दरअसल, इन सैंपल्स को स्टडी करने के लिए वैज्ञानिकों को बड़े लैब की जरूरत होगी जिसे मंगल पर ले जाना संभव नहीं है। इसके अलावा मिशन ऐसी जानकारियां इकट्ठा करेगा और टेक्नॉलजी को टेस्ट करेगा जिनसे आने वाले समय में मंगल पर इंसानों को भेजने का तरीका खोजा जा सके। इसमें सबसे अहम होगा मंगल के वायुमंडल में ऑक्सिजन बनाने का तरीका खोजना। Perseverance में Mars Oxygen In-Situ Resource Utilization Experiment यानी MOXIE नाम की डिवाइस लगाई गई है जो वहां ऑक्सिजन पैदा करने की कोशिश करेगी।
Perseverance में 23 कैमरे और 2 माइक्रोफोन लगे हैं। इसके मास्ट में लगा मास्टकैम-Z ऐसे टार्गेट्स पर जूम करेगा जहां वैज्ञानिक दृष्टि से रोचक खोज की संभावना हो। मिशन की साइंस टीम Perseverance के SuperCam को इस टार्गेट पर लेजर फायर करने की कमांड देगी जिससे एक प्लाज्मा क्लाउड जनरेट होगा। इसके अनैलेसिस से टार्गेट की केमिकल बनावट को समझा जा सकेगा। अगर इसमें कुछ जरूरी मिला तो रोवर की रोबॉटिक आर्म आगे का काम करेगी। Perseverance का सबसे खास फीचर है इसका सैंपल कैशिंग सिस्टम। मोटर, प्लैनेटरी गियरबॉक्स और सेंसर से बना यह क्लीन और कॉम्प्लेक्स मकैनिज्म पूरे मिशन की सफलता की अहम कड़ी है। मंगल पर मिले सैंपल्स को इसकी मदद से इकट्ठा करने के बाद सैंपल ट्यूब में डिपॉजिट कर दिया जाएगा। भविष्य में जब धरती से मिशन मंगल पर जाएंगे तो इससे ये सैंपल निकालकर वापस धरती पर लाएंगे। यहां इन्हें स्टडी किया जाएगा।
परमाणु बम से हमला करने तैयारी में अमेरिकी वैज्ञानिक
धरती पर ऐस्टरॉइड के टकराने के मंडराते खतरे के बीच अमेरिकी वैज्ञानिक अब इससे निपटने की तैयारी में जुट गए हैं। अमेरिकी वैज्ञानिक अब इन ऐस्टरॉइड को धरती की कक्षा से दूर भेजने के लिए एक वैकल्पिक तरीके पर जुट गए हैं। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि कुछ मामलों में परमाणु हथियार के इस्तेमाल का विकल्प गैर परमाणु हथियार के विकल्प से ज्यादा बेहतर रहेगा।
दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। दूसरी चिंता की बात यह है कि मंगल का वातावरण इंसानों के रहने के अनुकूल नहीं है। वहां का तापमान अंटार्कटिका से भी ज्यादा ठंडा है। ऐसे बेरहम मौसम में कम ऑक्सीजन के साथ पहुंचना खतरनाक हो सकता है।
नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्ट्रेट की चीफ इंजिनियर जेफ शेही ने कहा कि वर्तमान में संचालित अधिकांश रॉकेट में केमिकल इंजन लगे हुए हैं। ये आपको मंगल ग्रह तक ले जा सकते हैं, लेकिन इस लंबी यात्रा की धरती से टेकऑफ करने और वापस लौटने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में चालक दल को कम से कम समय बिताने के लिए नासा जल्द से जल्द मंगल तक पहुंचना चाहता है। इससे अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में कमी आएगी। जिस कारण रेडिएशन, कैंसर और नर्वस सिस्टम पर भी असर पड़ता है।
इस कारण ही नासा के वैज्ञानिक यात्रा के समय को कम करने के तरीके खोज रहे हैं। सिएटल स्थित कंपनी अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजीज (USNC-Tech) ने नासा को एक परमाणु थर्मल प्रोपल्शन (NTP) इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह रॉकेट धरती से इंसानों को मंगल ग्रह तक केवल तीन महीने में पहुंचा सकता है। वर्तमान में मंगल पर भेजे जाने वाले मानवरहित अंतरिक्ष यान कम से कम सात महीने का समय लेते हैं। वहीं, इंसानों वाले मिशन को वर्तमान के रॉकेट से मंगल तक पहुंचने में कम से कम नौ महीने लगने की उम्मीद है।
परमाणु रॉकेट इंजन को बनाने का विचार नया नहीं है। इसकी परिकल्पना सबसे पहले 1940 में की गई थी। लेकिन, तब तकनीकी के अभाव के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फिर अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करने के लिए परमाणु शक्ति से चलने वारे रॉकेट को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। USNC-Tech में इंजीनियरिंग के निदेशक माइकल ईड्स ने सीएनएन से कहा कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट आज के समय में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक इंजनों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और दोगुने कुशल होंगे।
परमाणु रॉकेट इंजन की निर्माण की तकनीकी काफी जटिल है। इंजन के निर्माण के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक यूरेनियम ईंधन है। यह यूरेनियम परमाणु थर्मल इंजन के अंदर चरम तापमान को पैदा करेगा। वहीं, USNC-Tech दावा किा है कि इस समस्या को हल करके एक ईंधन विकसित किया जा सकता है जो 2,700 डिग्री केल्विन (4,400 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक के तापमान में काम कर सकता है। इस ईंधन में सिलिकॉन कार्बाइड होता जो टैंक के कवच में भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे इंजन से रेडिएशन बाहर नहीं निकलेगा, जिससे सभी अंतरिक्षयात्री सुरक्षित रहेंगे।
अमेरिका के लारेंस लिवरमूर राष्ट्रीय प्रयोगशाला के वैज्ञानिक अब अमेरिकी वायुसेना के तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम के साथ काम कर रहे हैं। इस दल के एक सदस्य लांसिंग होरान ने चतुर्थ ने बताया कि परमाणु विस्फोट के बाद होने वाले न्यूट्रान रेडिएशन की मदद से लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक्सरे की तुलना में न्यूट्रान ज्यादा अंदर तक घुस सकते हैं।