वायु प्रदूषण कम करने से कैसे बढ़ जाएगा कृषि उत्पादन!

खाद्य समस्या दुनिया की जनसंख्या के साथ और ज्यादा चुनौती पूर्ण होती जा रही है. जलवायु परिवर्तन, भूमि प्रदूषण, मृदा अपरदन आदि समस्यों का नाता कृषि और खेतों की उत्पादकता से तो है.

Update: 2022-06-08 03:48 GMT

खाद्य समस्या (Food Crisis) दुनिया की जनसंख्या के साथ और ज्यादा चुनौती पूर्ण होती जा रही है. जलवायु परिवर्तन, भूमि प्रदूषण, मृदा अपरदन आदि समस्यों का नाता कृषि और खेतों की उत्पादकता से तो है. इसने कृषि आधारित सभी तरह की गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं. फसल की बुआई या उसका क्षेत्र बढ़ाना भी समाधान नहीं है. लेकिन क्या वायुप्रदूषण (Air Pollution) में कमी का फायदा कृषि उत्पादन में हो सकता है. नए अध्यनय में बताया गया है कि कैसे वायु प्रदूषण में कटौती का लंबे समय में कृषि उत्पादन (Crop Yield) बढ़ाने में फायदा हो सकता है और साथ ही इसमें जमीन और पैसा की भी बचत हो सकी है. 

यदि दुनिया वायु प्रदूषण (Air Pollution) के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन में केवल एक ही प्रकार का प्रदूषण की मात्रा को आधी भी कर दे, तो आंकलन सुझाते हैं कि सर्दी की फसल का उत्पादन चीन (China) में 28 प्रतिशत बढ़ जाएगा और दुनिया के दूसरे हिस्सों में 10 प्रतिशत बढ़ जाएगा. इस मामले में नाइट्रोजन के ऑक्साइड (Nitrogen oxides) महत्वपूर्ण हैं जो जीवाश्म ईंधनों के जलने से वाहनों और उद्योगों से निकलने वाली जहरीली और अदृश्य गैसें होती हैं. 

वायु प्रदूषण (Air Pollution) के मामले में नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxides) उत्सर्जन दुनिया के सबसे ज्यादा वितरित वायु प्रदूषकों में से एक हैं. बताया जाता है कि इनके प्रदूषण से पेड़ पौधों की पत्तियों का बहुत नुकसान होता है और उनकी वृद्धि रुक जाती है. नाइट्रोजन की ऑक्साइड क्षोभमंडल में ओजोन और एरोसोल का भी निर्माण करती हैं. जिनसे सूर्य का प्रकाश सही मात्रा में फसलों को नहीं मिल पाता है. 

इसी शोध के कई शोधकर्ता ने पिछले साल के अध्ययन में पाया था कि अमेरिका में 1999 से 2019 के बीच ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxides) और सल्फर डाइऑक्साड कम होने से मक्के (Corn Yield) और सोयाबीन की खेती में 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ था. इससे 5 अरब डॉलर की फसल की बचत हर साल हुई थी. नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को आसानी से स्थानीय स्तर पर भी मापा जा सकता है. और उसकी तुलना फसल वृद्धि (Crop Growth) से सीधे तुलना की जा सकती है. जब वायुमंडल में यह उत्सर्जित होती है वह पराबैंगनी किरणों से अंतरक्रिया करती है जिसे सैटेलाइट आसानी से पकड़ सकते हैं. 

शोधकर्ताओं का कहना है कि चूंकि हमें अंतरिक्ष (Space) से भी कृषि उत्पादन (Crop production) को माप सकते हैं, इससे हमें यह जानकारी बेहतर करने का मौका मिलता है कि ये गैसें कृषि के अलग-अलग क्षेत्रों को कैसे प्रभावित करती हैं. दुनिया के अलग अलग क्षेत्रों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (Nitrogen oxides) की कृषि भूमि की हरियाली से तुलना करने पर टीम ने लगातार नकारात्मक असर पाया. सबसे ज्यादा नुकसान चीन में देखने को मिला इसके साथ ही गेहूं जैसी सर्दियों की फसलों के साथ भी ऐसा ही दिखा. 

इस सह संबंध का उपयोग कर शोधकर्ताओं ने आंकलन किया है कि यदि दुनिया में नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxides)की ही कमी होने से चीन (China) की सर्दियों की फसल की पैदावार करीब 28 प्रतिशत बढ़ जाएगी और गर्मियों की पैदावार 16 प्रतिशत बेहतर हो जाएगी. भारत (India) को लेकर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि सर्दियों की फसल की पैदावार 8 प्रतिशत और गर्मियों की पैदावार छह प्रतिशत बढ़ जाएगी. इसी तरह पश्चिमी यूरोप में गर्मियों और सर्दियों दोनों की फसलों की पैदावार दस प्रतिशत बढ़ जाएगी

शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन में सबसे अच्छी बात यह बताई गई है कि इन कदमों से कृषि (Agriculture) को ऐसे प्रभावी लाभ मिलेंगे जिससे बढ़ती जनसंख्या की खाद्य आपूर्ती की चुनौती आसान हो जाएगी. शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी भले ही हमें नाइट्रोजन की ऑक्साइड (Nitrogen oxides)के पौधों की वृद्धि पर पड़ रहे असर की सटीक जानाकरी ना हो, लेकिन यह इस शोध में वायु प्रदूषण (Air Pollution) और कृषि के गहरे संबंध से पता चला है कि इसका कृषि हानि में खासा योगदान है.


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