ग्रीष्म लहर के कहर के लिए जलवायु परिवर्तन कैसे है जिम्मेदार, रिसर्च में हुआ खुलासा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इन दिनों भारत (India) और उसके आसपास के देशों में अभूतपूर्व गरमी और ग्रीष्म लहर (Heat Waves) का प्रकोप छाया है. चरम मौसम पर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के बढ़ते प्रभाव पर शीर्ष विशेषज्ञों की यही राय है कि ग्रीष्म लहर ग्लोबल वार्मिंग का सीधा और स्पष्ट पैमाना बन गया है. आज दुनिया में जगह जगह बाढ़, सूखा, जंगल की आग, कटिबंधीय क्षेत्रों में तूफान आदि की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ने का कारण खत्म होते जंगलों और जीवाश्व ईंधन के जलने से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों की वायुमंडल में की बढ़ती मात्रा है. इसमें कोई शक नहीं कि ग्रीष्म लहर भी ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रत्यक्ष प्रभाव है.
इंपीरियलकॉलेज लंदन के ग्रानथैंम इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक फ्रेड्रिक ओटो ने एएफपी को बताया कि इसमें कोई शक नहीं कि चरम ऊष्मा (Extreme Heat) के मामले में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) एक बड़ा गेम चेंजर है. मार्च और अप्रैल में ही इस ग्रीष्म लहरों (Heat Waves) ने दक्षिण एशिया को अपनी चपेट में लिया था जिनमें से अधिकांश पहले से ही बहुत ही मारक चरम घटनाएं मानी जा रही हैं. ओटो और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के उनके सहयोगी बेन क्लार्क ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में हर ग्रीष्म लहर और ज्यादा ताकतवर हो रही है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
ग्लोबल वार्मिंग के दुनिया के चरम मौसम (Extreme Weather Changes) पर बढ़ते प्रभाव के प्रमाण को दशकों से बढ़ते हुए मिल रहे हैं. लेकिन यह हाल ही में संभव हुआ है कि वैज्ञानिक इस तरह के सवालों का जवाब दे सकें कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change)किस हद तक किसी घटना विशेष का कारक हो सकता है. पहले अधिकांश वैज्ञानिक कहते थे कि असामान्य चरम तूफान, बाढ़ या ग्रीष्मलहर (Heat Waves) ग्लोबल वार्मिंग के सामान्य पूर्वानुमानों से मेल खाया करते थे. वहीं समाचारों में चरम मौसम की घटनाओं और आपदाओं के मामले में केवल बढ़ते तापमान का ही जिक्र कर छोड़ दिया जाता रहा है और उसके पीछे जलवायु परिवर्तन के कारकों को सही तरह से शामिल नहीं किया जाता रहा.
लेकिन अब हमारे पास बेहतर आंकड़े और उपकरण हैं. ओटो और घटना गुणारोपण विज्ञान (event attribution science) विषय के अन्य विशेषज्ञ, कई बार वास्तविक समय में भी यह गणना करने में सफल रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के कारण कोई विशेष तूफान कितना ज्यादा तीव्र हो सकता है या उसके कितनी बार और आने की संभावना है. विश्व वैदर एट्रब्यशन (WWA) कंसोर्टियम में ओटो और उनके सहयोगी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पिछले साल जून में उत्तरी अमेरिका के अपने चपेट में लेने वाली ग्रीष्म लहर के कारण कनाडा में दर्ज हुआ रिकॉर्ड 49 डिग्री सेल्सियस का तापमान मानव जनित जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण असंभव था.
हाल ही में भारत और पाकिस्तान में आई ग्रीष्म लहर (Heat Waves) की समीक्षा चल रही है. लेकिन मौटे तौर पर स्थिति स्पष्ट है. ओटो ने बताया कि आज हम जो भी चरम ऊष्मा (Extreme Weather Changes) देख रहे हैं वह आने वाले समय में बहुत सामान्य होने वाला है. यह पूर्व औद्योगिक स्तर की तुलना में औसत वैश्विक तापमान से 2 से 3 डिग्री सेल्सियस भी सामान्य ही माना जाएगा. अभी तक दुनिया तब से 1.2 डिग्री सेल्सियस गर्म हो चुकी है. इस इजाफे के कारम पिछले साल जुलाई में ही जर्मनी और बेल्जियम में बारिश और बाढ़ के रिकॉर्ड टूटे थे जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
दक्षिणी मैडागास्कर में दो साल तक सूखे की स्थिति रही थी. संयुक्त राष्ट्र ने इस पर कहा था कि इस इलाके में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) एक प्राकृतिक विविधता लाने वाला कारक साबित हुआ था. यह एक ऐसा मामला था जो दर्शाता है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) ही को हमेशा दोष नहीं दिया जा सकता है. जलवायु परिवर्तन या चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Changes) के प्रभाव का असर दुनिया के कई देशों की नीतियों पर पड़ा है.
एट्रीब्यूशन यानि आरोपण के अध्ययनों के कारण अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में जलवायु संबंधी कई कानून बन पाए हैं. वहीं कई कंपनियों को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण कानून के सामने आकर सफाई देने को मजबूर होना पड़ा था. अब इस बात के प्रमाण स्पष्ट रूप से मिलने लगे हैं कि मानव जनित ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) कई तरह के खतरों को नाजुक स्तर पर ले जाने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार मानी जा रही है