कैसे एक तारा मरा और सुपरनोवा के विस्फोट बाद फिर जिंदा हो गया
किसी तारे के जीवन चक्र में सुपरनोवा एक बहुत ही मत्वपूर्ण पड़ाव होता है. वैसे तो यह तारे की मृत्यु का संकेत है, लेकिन हमेशा ही इस घटना के बाद तारा पूरी तरह से नष्ट नहीं होता है.
किसी तारे के जीवन चक्र में सुपरनोवा एक बहुत ही मत्वपूर्ण पड़ाव होता है. वैसे तो यह तारे की मृत्यु का संकेत है, लेकिन हमेशा ही इस घटना के बाद तारा पूरी तरह से नष्ट नहीं होता है. ऊष्मानाभकीय सुपरनोवा (thermonuclear supernovae) विशेष तौर से नष्ट हो रहे सफेद बौने तारे (white dwarf star) को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं. अभी तक के अवलोकनों में यही देखते रहने के बाद खगलोविदों ने हबल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) के जरिए देखा कि एक तारा सुपरनोवा विस्फोट के बाद भी जिंदा रहा और साथ ही पहले से ज्यादा चमकीला भी हो गया.
हैरान करने वाला अवलोकन
सांता बारबरा की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और लास कम्बर्स वेधशाला के शोधकर्ता और अध्ययन के प्रथम लेखक कर्टिस मैककली और उनकी टीम ने ऊष्मानाभकीय सुपरनोवा SN 2012Z का अवलोकन किया तो वे यह देख कर हैरान रह गए कि विस्फोट के बाद वह तारा जिंदा रह गया. इस अध्ययन के नतीजे द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल ऑफ द अमेरिकन सोसाइटी में प्रकाशित हुए हैं.
सुपरनोवा की अहमियत
शोधकर्ताओं का मानना है कि इस अवलोकन से ब्रह्माण्ड के बहुत समान्य लेकिन रहस्यमयी विस्फोटों की उत्पत्ति के बारे में नई और उपयोगी जानकारी मिल सकेगी. ऊष्मानाभकीय सुपरनोवा वास्तव में वनए प्रकार के सुपरनोवा होती हैं और ये खगोलविदों के लिए बहुत महत्वपूर्ण उपकरण होते हैं जिससे खगोलीय दूरियां नापने का काम हो होता है. 1998 में इन्हीं विस्फोटों के अध्ययन से पता चला कि ब्रह्माण्ड तेजी से विस्तार हो रहा है और इसकी वजह डार्कमैटर हो सकती है.
सफेद बौना तारा
इतने अहम होने केबाद भी सुपरनोवा को बहुत कम ही समझा जा सका है. खगोलविद इस बात से सहमत हैं कि यो उन सफेद बौने तारों का विनाश करते हैं जिनका आकार पृथ्वी के बराबर होता है. लेकिन यह विस्फोट किस कारण या कैसे होते हैं यह अभी तक वैज्ञानिकों को पता नहीं चल सका है. एकसिद्धांत कहता है कि जब सफेद बौना तारा अपने साथी से इतना पदार्थ चुरा लेता हैकि वह बहुत भारी हो जाए, उसके क्रोड़ में ऊष्मानाभकीय प्रतिक्रियाएं सक्रिय होकर विस्फोटकर तारे को नष्ट कर देती हैं.
अलग तरह के सुपरनोवा
लेकिन SN 2012Z की कहानी थोड़ी अजीब रही है. इसे कभी कभी वनएएक्स प्रकार का भी सुपरनोवा कहते हैं जो परम्परागत वनए प्रकार के सुपरनोवा की तुलना में थोड़े धुंधले, और कमजोर होते हैं जिनमें धीमा विस्फोट होता है. कुछ वैज्ञानिक इन्हें नाकाम वनए प्रकार का सुपरनोवा करार देते हैं. नए अवलोकनों ने इसकी पुष्टि कर दी है.
क्या की गई थी उम्मीद
साल 2012 में सुपरनोवा को जब पहली बार पास की NGC 1309 सर्पिल गैलेक्सी में देखा गया था. हबल टेलीस्कोप ने इसका गहराई से अवलोकन किया और पुरानी तस्वीरों से खगोलविदों ने पता लगाया कि वह किस तारे का सुपरनोवा था. 2014 में वैज्ञानिकों ने इस तारे को पहचान लिया. मैकली ने बताया कि वे तारे को पूरी तरह से नष्ट होता देखने या फिर वहीं कायम रहने की की उम्मीद कर रहे थे यानी सुपरनोवा उस तारे का था ही नहीं.
अच्छे से नहीं हो सका विस्फोट
लेकिन किसी ने यह उम्मीद नहीं की थी कि तारा पहले से भी ज्यादा चमकीला हो जाएगा और यही वास्तविक पहेली थी. शोधकर्ताओं को लगता है कि आधा अधूरा विस्फोटित तारा इसलिए और ज्यादा चमकीला हो गया क्योंकि वह पहले से ज्यादा फूल सा गया. यह सुपरनोवा विस्फोट इतना शक्तिशाली था ही नहीं कि सारा पदार्थ बिखर कर फैल सके इसलिए इसका कुछ पदार्थ वापस इसी में गिर गया जिसे बाउंड रैमनेन्ट कहते हैं.
शोधकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि समय के साथ यह तारा अपनी वास्तविक अवस्था में वापस आ जाएगा. उसका वजन तो कम होगा,लेकिन आकार में बड़ा होगा. दशकों से वैज्ञानिकों का यह मानना रहा हैकि वनए प्रकार के सुपरनोला तब विस्फोटित होते हैं जब सफेद बौने तारे एक निश्चित आकार सीमा तक पहुंच जाते हैं जिसे चंद्रशेखर लिमिट कहते हैं. यह सीमा सूर्य के भार से 1.4 गुना होती है. लेकिन देखा गया है कि बहुत से इस सीमा से कम भार के तारे भी विस्फोटित होते देखे गए हैं. लेकिन नए अध्ययन में शोधकर्ताओं को लगता है कि SN 2012Z इस सीमा पर पहुंचने के बाद ही विस्फोट हुआ था. अब शोधकर्ता यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर सुपरनोवा नाकाम क्यों होते हैं.