नई दिल्ली: धरती सूख रही है. कभी अचानक बाढ़ आ जाती है. कभी तूफान. ज्वालामुखी फट पड़ते हैं. ग्लेशियर पिघल रहे हैं. पहाड़ों पर अचानक आफत आ जाती है. ये सब एक ही वजह से हो रहा है. वो वजह है इंसान. उसकी हरकतें. जिसकी वजह से जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है. वैश्विक गर्मी (Global Warming) बढ़ रही है. ऐसे में अगर वायुमंडल की परत में छेद हो जाए. ओज़ोन खत्म हो जाए तो सूरज के प्रकोप से कौन बचाएगा. सूरज की गर्मी से धरती पर प्रलय आ जाएगी.
इसलिए वैज्ञानिकों ने धरती को बचाने के लिए सूरज और धरती के बीच बुलबुले (Space Bubbles) सेट करने की योजना बनाई है. यानी अंतरिक्ष में बुलबुले. अब मुद्दा ये है कि ये किस तरह के बुलबुले होंगे जो धरती को प्राकृतिक प्रलय से बचाएंगे. या फिर सूरज की गर्मी के कहर से. क्योंकि लगातार बढ़ रही गर्मी की वजह से सूखा, हीट वेव, ग्लेशियर पिघलना जारी है. इसलिए मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) के वैज्ञानिकों ने स्पेस बबल्स बनाने की की सलाह दी है.
सूरज और पृथ्वी के बीच एक विशालकाय बुलबुले को बनाने से सूरज के भयानक रेडिएशन से बचा जा सकेगा. अंतरिक्ष का बुलबुला (Space Bubble) का आकार ब्राजील के बराबर होगा. यह सूरज और धरती के बीच अंतरिक्ष में तैनात किया जाएगा ताकि सूरज के रेडिएशन से सीधे बचा जा सके. इस बुलबुले को लिक्विड सिलिकॉन से बनाया जाएगा. इससे रेडिशएन की किरणें दूसरी दिशाओं में परावर्तित हो जाएंगी. हालांकि रेडिएशन पूरी तरह से नहीं रुकेगा लेकिन उसके प्रभाव को काफी कम किया जा सकता है.
MIT के वैज्ञानिकों ने कहा कि सिर्फ अंतरिक्ष के बुलबुले से काम नहीं चलेगा. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अन्य उपायों पर भी काम करते रहना होगा. हालांकि, शोधकर्ताओं का मानना है कि, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जो भी मौजूदा उपाए किए जा रहे हैं, उनमें से ये सबसे ज्यादा बेहतर है. ये एक छाते की तरह होगा जो रेडिएशन को बहुत हद तक रोक देगा. MIT ने अपने सेंसेबल सिटी लैब में ऐसे वातावरण में स्पेस बबल का सफल परीक्षण कर लिया है.
आने वाले दिनों में ऐसे स्पेस बुलबुलों का उपयोग किया जा सकता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि हम धरती पर टकराने से पहले 1.5 प्रतिशत सौर रेडिएशन की दिशा बदल दें तो ग्लोबल वार्मिंग बहुत कम किया जा सकता है. इस रोशनी से अंतरिक्ष में की कचरे जलकर खाक हो जाएंगे. इससे अंतरिक्ष में कचरा भी कम होगा. इस बुलबुले को कहां तैनात करना है, वह भी तय हो चुका है. वैज्ञानिक इसे जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope - JWST) के आसपास तैनात करने की योजना बनाई है. वो स्थान रेडिएशन की दिशा बदलने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जा रही है.