आज़ादी का अमृत महोत्सव, जानिए भारतीय साइंस के 75 साल की सफल यात्रा

Update: 2022-08-15 06:07 GMT

नई दिल्ली: आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. देश को स्वतंत्रता मिले 75 साल हो गए. इसके बाद ही देश में वैज्ञानिक शोधों को बढ़ावा मिला है. वैज्ञानिक संस्थाओं को खोलने से लेकर सफलता के झंडे गाड़ने तक. हरित क्रांति, सफेद क्रांति से लेकर विज्ञान की हर दिशा में क्रांति फैली. आज पूरी दुनिया के लगभग सभी बड़े संस्थानों में भारतीय वैज्ञानिकों का डंका बजता है. चाहे वह नासा हो या फिर हिग्स बोसोन की खोज करने वाली CERN लेबोरेटरी. वर्जिन गैलेक्टिक, स्पेसएक्स जैसी कंपनियों की प्राइवेट अंतरिक्ष यात्राओं को सफल बनाने वाली टीम में भारतीय हैं. आइए जानते हैं कि भारत में आज़ादी के बाद किस दशक में कब क्या प्रमुख कार्य हुए.

1947-57: आज़ादी के ठीक बाद शुरुआती दस साल. नई आज़ादी. नई सरकार. नई चुनौतियां. अंग्रेजों द्वारा लूटे गए देश को फिर से पटरी पर लाने की दिक्कत. इसे खत्म करने के लिए विज्ञान को आगे बढ़ाया गया. क्योंकि उस समय के सरकारों को पता था कि बिना विज्ञान, तकनीक और इनोवेशन के देश को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. इसलिए पंचवर्षीय योजना में साइंस और इंडस्ट्रियल रिसर्च को शामिल किया गया. नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी बनाई गई. नेशनल केमिकल लेबोरेटरी, सेंट्रल इलेक्ट्रोकेमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट बनाया गया. इन प्रयोगशालाओं के रिसर्च और परामर्श ने देश में नई वैज्ञानिक लहर शुरू की.
1957-67: हरित क्रांति यानी Green Revolution की शुरुआत की गई. ताकि देश फसल उगाकर पहले अपने लोगों का पेट भर सके. सिंचाई के नए सिस्टम विकसित किए गए. फर्टिलाइजर्स, पेस्टीसाइड्स, ऊर्जा और कृषि यंत्रों पर फोकस किया गया. भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की स्थापना 1958 में की गई. ताकि देश के रक्षा संबंधी रिसर्च को पूरा किया जा सके. ध्येय वाक्य ही यही है कि विज्ञान से ही ताकत आती है. पहला बड़ा प्रोजेक्ट था सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल. प्रोजेक्ट इंडिगो शुरू किया गया. सफलता मिली. फिर कई प्रोजेक्ट शुरू किए गए.
भारत का अपना मिसाइल सिस्टम खड़ा हो गया. इस काम में पूर्व राष्ट्रपति, वैज्ञानिक और भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को कौन भूल सकता है. 21 नवंबर 1963 तिरुवनंतपुरम के थुंबा से देश का पहला रॉकेट छोड़ा गया. साइकिल, बैलगाड़ियों पर रॉकेट को लॉन्च पैड तक लाया गया था. इस काम में महत्वपूर्ण योगदान दिया था डॉ. विक्रम साराभाई ने. उनकी मदद की थी डॉ. होमी जहांगीर भाभा, सीवी रमन और एपीजे अब्दुल कलाम ने. देश का पहला रॉकेट छूटते ही भारत की धमक पूरी दुनिया में फैल गई.
1967-77: जब साराभाई ने देश का पहला रॉकेट छोड़ा था तब इसरो का नाम था इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR). जो 1972 में ISRO बन गया. रॉकेट छोड़ने की सफलता के बाद साराभाई और बाकी साथी वैज्ञानिकों का लक्ष्य था देश का पहला सैटेलाइट छोड़ना. 1975 में भारत का पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट छोड़ा गया. मकसद था एक्स-रे एस्ट्रोनॉमी, एयरोनॉमी और सोलर फिजिक्स को समझना.
देश में फिर शुरू हुआ White Revolution. इसे ऑपरेशन फ्लड भी कहते हैं. देश में डेयरी उत्पादों को लेकर काम तेज हुआ. 13 जनवरी 1970 को शुरू हुई यह क्रांति दुनिया की सबसे बड़ा डेयरी डेवलपमेंट प्रोग्राम था. अमूल के संस्थापक और सफेद क्रांत के पिता कहे जाने वाले पद्म विभूषण डॉ. वर्गीज कुरियन ने इसे शुरू किया था. इसकी वजह से पूरे देश में डेयरी उत्पादन और निर्यात की लहर दौड़ गई.
1977-87: यही वो दशक था जब भारत में खुद के मिसाइल सिस्टम की शुरुआत हुई. 'मिसाइल मैन' डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने पहले स्ट्रैटेजिक मिसाइल सिस्टम की शुरुआत की. कलाम साहब के गाइडेंस में वैज्ञानिकों मिसाइल की री-एंट्री, मैन्यूवरिंग, रेंज, कंट्रोल, गाइडेंस, दो स्टेज के प्रोपल्शन और स्टेज सेपरेशन पर काम किया. 1989 में देश के पहले मिसाइल अग्नि (Agni Missile) का पहला सफल परीक्षण हुआ. यहीं से विकसित हुआ था देश का मिसाइल सिस्टम, जिससे दुश्मन की हालत खराब होती है. आज भारत के AGNI-V ICBM है, जिसकी रेंज में आधी दुनिया है.
भारत के पहले सुपर कंप्यूटर PARAM को बनाया गया. पुणे स्थित C-DAC ने नवंबर 1987 में इसे बनाया था. यह इसलिए बनाया गया था ताकि भारत बाहरी देशों से सुपर कंप्यूटर न खरीदे. इसके बनते ही भारत सरकार ने इसके परीक्षण की ओर ध्यान दिया. सफलता मिली. देश में अपना स्वदेशी कंप्यूटिंग टेक्नोलॉजी विकसित हो गई.
1987-97: 1988 में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग भारत में आया. इसे CSIR-CCMB यानी काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ने विकसित किया. भारत दुनिया का तीसरा देश बना जिसके पास खुद का डीएनए फिंगर प्रिंटिंग प्रोब था.
1997-2007: 11 मई 1998 को भारत ने पांच परमाणु बमों का पोकरण में सफल परीक्षण किया. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने इसे नेशनल टेक्नोलॉजी डे नाम दिया गया. अब भारत दुनिया के ताकतवर परमाणु देशों की सूची में शामिल है. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और बाकी वैज्ञानिकों ने अमेरिकी सैटेलाइट्स से छिपते हुए इस परीक्षण को पूरा किया. अमेरिकी जासूसी के लिए यह एक काला दिन था. उन्होंने ऐसी विफलता कभी नहीं देखी थी.
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