हर 6 साल में कम ज्यादा होती है पृथ्वी के दिन की लंबाई, शोध में पता चला क्यों
पृथ्वी के केंद्र के बारें पिछले कुछ दशक से वैज्ञानिकों को बहुत से नई जानकारी मिली है. लेकिन अब भी इस विषय पर काफी कुछ अज्ञात ही है. हाल ही में हुए एक अध्ययन ने सुझाया है
पृथ्वी के केंद्र (Centre of Earth) के बारें पिछले कुछ दशक से वैज्ञानिकों को बहुत से नई जानकारी मिली है. लेकिन अब भी इस विषय पर काफी कुछ अज्ञात ही है. हाल ही में हुए एक अध्ययन ने सुझाया है कि पृथ्वी की क्रोड़ (Core of The Earth) हमेशा ही एक ही दिशा में घूर्णन नहीं करती है. बल्कि इस घूर्णन में दोलन (Oscillation in Rotation) होता है. यानि क्रोड़ सतह की तुलना में पहले एक दिशा में घूमती है और फिर दूसरी दिशा में धूमती है. इससे हर छह साल में घूर्णन की दिशा बदल जाती है और दिन की लंबाई भी कम ज्यादा होती रहती है.
सतह और क्रोड़ की स्थिति में फर्क
इससे पृथ्वी की आंतरिक कार्यप्रणाली की ना केवल हमारी समझ बेहतर होगी बल्कि उस गुत्थी को सुलझाने में भी मदद मिल सकेगी जो कुछ कई सालों से वैज्ञानिकों को उलझाए हुए है. यानि पृथ्वी के दिन की लंबाई में हर 5.8 साल में बदलाव आता है. लॉस एंजेलिस की यूनिवर्सिटी ऑफ साउदर्न कैलिफोर्निया के भूभौतिकविद जॉन ई विडेल ने बताया कि उनकी पड़ताल से देखा जा सकता है कि जैसे 20 सालों में आंकलन किया गया है, पृथ्वी की सतह आतंरिक क्रोड़ की तुलना में खिसक रही है.
लंबाई का कम होना और बढ़ना
विडेल ने गया कि ताजा अवलोकन दर्शाते है कि आंतरिक क्रोड 1969-71 से धीमे घूम रहे थे. उसके बाद उस 1971-74 के बीच वह दूसरी दिशा में घूमने लगी. शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि इस दौरान अनुमान के मुताबिक ही दिन की लंबाई बढ़ी और कम भी हुई. इन अवलोकनों के संयोग से दोलन का ही अंदाजा सही लग रहा है.
क्रोड़ का सतह से तेजी से घूमना
वैज्ञानिकों ने अब तक पृथ्वी के बारे में जानकारी धीरे धीरे ही पूरे ग्रह पर भूकंपीय तरंगों के प्रसार और टकराव जैसे अप्रत्यक्ष अवलोनकनों से जमा की है. लेकिन यह अब भी बहुत ही कारगर उपकरण है. वैज्ञानिक यह पता लगाने में सफल रहे हैं कि पृथ्वी की आंतरिक क्रोड़ संभवतः गर्म घनी और ठोस लोहे की गेंद है जो करीब 2440 किलोमीटर चौड़ी है, यानि आकार में प्लूटो ग्रह से कुछ ही बड़ी है. इससे पता चलता है कि वह अतिघूर्णन (Superrotation) करती है यानि सतह से ज्यादा तेजी से घूमती है.
अतिघूर्णन की डिग्री
इस परिघटना के बारे में शोधकर्ताओं ने सबसे पहले 1996 में विस्तार से पता लगाया था. इसमें उनका अतिघूर्णन का अनुमान एक डिग्री प्रतिवर्ष का आंकलित किया गया था. विडेल और उनके यूसीएलए के साथी वेई वांग ने बाद में इसमें संशोधन कर पाया कि यह दर 0.29 डिग्री प्रतिवर्ष है. इसके लिए उन्होंने 1970 में रूस में नोवाया जेमलिया परीक्षण स्थल पर किए गए भूमिगत नाभकीय परीक्षण के आंकड़ों का उपयोग किया.
जबकि इससे पहले 1971 और 1969 में एमचिक्ता द्वीप पर हुए दो परीक्षणों को आंकड़ों से अलग ही बात पता चली थी कि अतिघूर्णन की जगह पृथ्वी की क्रोड़ उपघूर्णन (Subrotation) कर रही थी यानि हर साल 0.1 डिग्री धीमी गति से घूर्णन कर रही थी. इससे दोलन के प्रक्रिया को समर्थन मिलता है कि आंतरिक क्रोड़ दोलन करती है. लेकिन विज्ञान जगत इस पर पूरी तरह से सहमत नहीं हो सका था.