इंजीनियर्स ने सुपरमून का यूं उठाया फायदा, और फिर स्वेज नहर से निकाला जहाज को, जानें कैसा रहा पूरा प्रोसेस
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्गो शिप एमवी एवरगिवेन रविवार को स्वेज नहर पर तैरने में कामयाब हो गया
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्गो शिप एमवी एवरगिवेन रविवार को स्वेज नहर पर तैरने में कामयाब हो गया. 400 मीटर लंबे और 224,000 टन के इस जहाज को निकालने की कोशिशें 6 दिनों से जारी थीं. लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि एंपायर स्टेट बिल्डिंग जितने बड़े इस जहाज को निकालने में न क्रेन काम आई और न ही दुनिया की कोई और आधुनिक मशीनरी. इसे निकालने में मदद की सुपरमून ने. जी हां, चांद की वजह से इस जहाज को निकलने में मदद मिली. जानिए सुपरमून और एमवी एवरगिवेन के रेस्क्यू की यह इंट्रेस्टिंग इनसाइड स्टोरी.
हाई टाइड की वजह से मिली मदद
एमवी एवरगिवेन 9 मई 2018 को सफर पर निकला था. जहाज 23 मार्च को धूल के तूफान की वजह से स्वेज नहर में फंस गया था. स्वेज नहर एशिया और यूरोप को आपस में जोड़ती है. इस जहाज के फंसने से रोजाना 10 बिलियन डॉलर के ट्रेड को खासा नुकसान झेलना पड़ रहा था. ऐसे में इस जहाज का निकलना बेहद जरूरी था. सुपरमून की वजह से पैदा हुई हाई टाइड की स्थिति ने जहाज के रेस्क्यू में बड़ी मदद की. स्वेज नहर पर इंजीनियर्स पिछले कई दिनों से इस जहाज को निकालने के प्रयास कर रहे थे.
सुपरमून पर टिकीं थी इंजीनियर्स की उम्मीदें
इंजीनियर्स की टीम को इस हफ्ते शुरू हो रहे सुपरमून ने बड़ी उम्मीदें थीं. इसकी वजह से पानी का स्तर सामान्य टाइड की तुलना में करीब डेढ़ फुट तक बढ़ने के आसार थे. इसकी वजह से नहर के दूसरी तरफ फंसे जहाज को बिना अनलोड किए खींचना उनके लिए आसान हो सकता था. 1300 फुट के इस जहाज पर 18,000 या इससे ज्यादा कंटेनर्स लदे थे और इन्हें अनलोड करके दूसरे जहाज पर लोड करके रवाना करने में काफी समय लग सकता था.
क्यों इंजीनियर्स मिस नहीं करना चाहते थे मौका
इंजीनियर्स को सुपरमून का फायदा उठाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ी. सुपरमून का असर सिर्फ कुछ ही दिन रहता लेकिन इसके बाद भी वो अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे. सुपरमून या फुल मून के समय समंदर में काफी तेजी से ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चांद, सूरज के साथ एक ही रेखा में होता है.
फुल मून की स्थिति में या तो चांद या फिर पृथ्वी, बीच में होते हैं. इसकी वजह से धरती पर गुरुत्वाकर्षण ताकतों में इजाफा होता है. इसकी वजह से ही समंदर की लहरें बहुत ऊंची होती हैं और लो टाइड की स्थिति में बहुत ही नीचे होती हैं. इन्हें स्प्रिंग टाइड्स के तौर पर कहते हैं और एक माह में दो बार ये स्थिति बनती है.
साल का पहला सुपरमून
स्वेज नहर में फंसे इस जहाज को साल के पहले सुपरमून के दौरान निकाला गया है. वैज्ञानिक मानते हैं कि पहले सुपरमून का प्रभाव भी काफी शक्तिशाली होता है. पहले सुपरमून में चांद, धरती के एकदम करीबी कक्षा में होता है. सुपरमून साल में कई बार होता है. रविवार को जो सुपरमून था उसे वॉर्म मून कहा गया है, यानी साल का वो समय जब दुनिया के कई हिस्सों में केचुएं मिट्टी में नजर आते हैं.
24 घंटे निकाली गई रेत
जब यह स्पष्ट हो गया कि कोई भी टगबोट एवरगिवेन को निकाल नहीं सकती है तो फिर इंजीनियर्स ने सुपरमून का इंतजार करना शुरू किया. उन्हें उम्मीद थी कि इस तरह से फंसे हुए जहाज को बाहर निकाला जा सकता है. रेस्क्यू ऑपरेशन से जुड़े लोगों के मुताबिक कई क्यूबिक फीट रेत को हटाने का काम सुपरमून को दिमाग में रखकर ही किया गया था. इसके लिए वहां पर रेत निकालने वाले ड्रेजर को तैनात किया गया और 24 घंटे रेत निकालने का काम किया गया.
क्यों जरूरी था हाई टाइड में ऑपरेशन
एपी मोलर-मयर्क्स A/S ग्लोबल ओशिन नेटवर्क के मुखिया लार्स माइकल जेनसन की मानें तो सोमवार एक अहम दिन था क्योंकि तब पानी का स्तर बढ़ना शुरू हो जाता और यह अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच जाता. पिछले दो दिनों में हर तरह की ताकत को एमवी एवरगिवेन के पास लगा दिया गया था. हायर टाइड्स की वजह से टीम को इस जहाज को निकालने में सफलता मिल सकती थी.
नहर पर लंबा ट्रैफिक जाम
स्वेज नहर पर जहाज के फंसने की वजह से पिछले कई दिनों से ट्रैफिक भी ब्लॉक हो गया था. भूमध्य सागर और लाल सागर पर सफर करने वाले जहाज, एमवी एवरगिवेन के निकलने का इंतजार कर रहे थे. 120 मील लंबी यह नहर यूरोप और एशिया के लिए काफी अहम है.
स्प्रिंग टाइड के सात दिन बाद, सूरज और चांद धरती से सही दिशा में होते. इस समय पर सूरज का गुरुत्वाकर्षण, चांद के प्रभाव को निष्क्रिय कर देता है. तब समंदर की लहरें बहुत ही नीचे होती हैं. उन स्थितियों में एमवी एवरगिवेन को निकालना और भी मुश्किल हो जाता.