पृथ्वी हजार सालों में नियंत्रित कर सकती है खुद का तापमान

पृथ्वी के इतिहास में जीवन ने बहुत तरह के उतारचढ़ाव देखे हैं. कभी महाविनाश की घटनाओं ने दुनिया से जीवन लगभग खत्म ही कर दिया लेकिन हर बार जीवन एक बार फिर से खड़ा हुआ और पनपा.

Update: 2022-11-20 05:30 GMT

पृथ्वी के इतिहास (History of Earth) में जीवन ने बहुत तरह के उतारचढ़ाव देखे हैं. कभी महाविनाश की घटनाओं ने दुनिया से जीवन लगभग खत्म ही कर दिया लेकिन हर बार जीवन एक बार फिर से खड़ा हुआ और पनपा. पृथ्वी की जलवायु (Climate of Earth) तक में बहुत सारे बदलाव आए जिसमें वैश्विक स्तर पर ज्वलामुखियों की घटनाएं, ग्रह को ठंडा करने वाले हिमयुग, सौर विकिरणों में नाटकीय बदालवों जैसे समय शामिल हैं. नए अध्ययन में सामने आया है कि पृथ्वी ने कई बार जीवन खत्म या खुद पृथ्वी जलवायु तंत्र को खत्म होने की कगार पर पहुंचाने से बचाया है जिसके लिए एक खास तरह की प्रणाली है जो हजारों सालों में एक बार पृथ्वी का तापमान नियंत्रित (Temperature Control) कर सकती है.

पहली बार इस प्रणाली की पुष्टि

पिछले 3.7 अरब सालों से पृथ्वी पर जीवन कायम है और साइंस एडवांस मं प्रकाशित अध्ययन में एमआईटी के शोधकर्ताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि पृथ्वी के पास एक स्टेब्लाइजिंग फिडबैक प्रणाली है जो हजारों सालों में एक बार सक्रिय होता है और पृथ्वी के तापमान को एक दायरे में वापस लाकर उसकी जलवायु को खत्म होने की कगार से वापस ले आता है.

सिलिकेट चट्टानों की अपक्षयण

इस प्रणाली के जरिए पृथ्वी अपनी आवासीयता बरकरार रख पाती है. यह सिलिकेट अपक्षयण नाम की प्रणाली है जो एक भूगर्भीय प्रक्रिया है जिससे सिलिकेट चट्टानों की अपक्षयण होता है जिसमें रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं. जो अंततः कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से निकाल कर महासागरों के अवसादों और चट्टानों में कैद कर देती है.

CO2 और तापमान का नियंत्रण

वैज्ञानिक लंबे समय से यह सोच रहे थे कि सिलिकेट अपक्षयण पृथ्वी के कार्बन चक्र को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाती है. यह प्रणाली कार्बन डाइऑक्साइड को और वैश्विक तापमान को बनाए रखने का काम करती है. लेकिन अभी तक हमारे वैज्ञानिकों को इस प्रणाली की प्रक्रिया के सीधे प्रमाण नहीं मिले थे.

6.6 करोड़ साल पुराने आंकड़े

शोधकर्ताओं के यह नए नतीजे 6.6 करोड़ साल के पुरातन जवलायु के आंकड़ों के जरिए पर हासिल किए औसत वैश्विक तापमान में बदालवों के रिकॉर्ड के आधार पर निकाले गए थे. एमआईटी की ने एक गणितीय विश्लेषण को लागू कर यह देखा कि क्या ये आंकड़े किसी पैटर्न का खुलासा करते हैं या नहीं जिनमें भूगर्भीय पैमाने पर वैश्विक तापमान को निर्धारित करने की परिघटना की विशेषताएं दिखाई दें.

पहली बार इस तरह की पुष्टि

उन्होंने पाया कि ऐसा निश्चित तौर पर उन्हें दिखाई दिया कि ऐके नियमित पैटर्न है जिसमें पृथ्वी का तापमान बदलता है और हजारों सालों के समय के पैमाने पर कम होता है. इस प्रभाव की अवधि वैसी ही है जैसी कि सिलिकेट अपक्षण की प्रक्रिया में होती है. इस अध्ययन में पहली बार वास्तविक आंकड़ों का उपयोग किया जिससे स्टैब्लाइजिंग फीडबैक प्रणाली की उपस्थिति की पुष्टि हुई है.

अच्छी और बुरी दोनों बात

यह प्रणाली इस बात की व्याख्या करती है कि कैसे पृथ्वी इतने ज्यादा नाटकीय भूगर्भीय घटनाओं के बावजूद आवासीय बनी रह सकी. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एक तरह से अच्छी बात क्योंकि इससे यह प्रणाली उसके प्रभाव को खत्म कर देगी. वहीं दूसरी तरफ बुरी खबर यह है कि आज की समस्याएं हल होने में सैकड़ों हजारों साल लग सकते हैं. इससे पहले भी पुरातन चट्टानों के रासायनिक विश्लेषणों से पता चला है कि तापमान में बहुत ज्यादा उतार चढ़ाव होने पर भी कार्बन चक्र में इस तरह के संतुलन के संकेत दिखाई देते हैं.

शोधकर्ताओं की दलील है की इतने सारे बाह्य बदलावों को झेलने के बाद भी जलवायु ऐसी क्यों रह सकी जिससे जीवन कायम रह गया. इसका साफ मतलब है कि किसी तरह की स्थिरिकरण प्रणाली की उपस्थिति जरूर होनी चाहिए जो तापमानों को चरम अवस्था में जाने से रोक रही हो. लेकिन शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि बहुत बड़ी समयावधि के मामले में इस तरह की कोई प्रणाली काम करती नहीं दिखी.


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