सूर्य की रोशनी पर निर्भरता होगी खत्म, अब रात में खाना बना सकेंगे पौधे
मानव जीवन की सूर्य की रोशनी पर बहुत निर्भरता है. शरीर की समस्त ऊर्जा के स्रोतों का मूल स्रोत सूर्य की रोशनी ही है
मानव जीवन की सूर्य की रोशनी (Sunlight) पर बहुत निर्भरता है. शरीर की समस्त ऊर्जा के स्रोतों का मूल स्रोत सूर्य की रोशनी ही है. ऐसा सारे जीवों के साथ ही है जो कहीं ना कहीं और किसी ना किसी रूप में भोजन के निर्माण (Food production) के लिए सूर्य की रोशनी पर ही निर्भर होते हैं. दुनिया भर का खाद्यान पौधों के प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) प्रक्रिया पर निर्भर होता है. फिलहाल दुनिया में ऐसे कई शोध चल रहे हैं जिससे कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण के जरिए पौधों पर निर्भरता को खत्म किया जा सके और इस प्रक्रिया को ज्यादा कारगर बनाया जा सके नए अध्ययन में संश्लेषण प्रक्रिया में प्रकाश पर निर्भरता को भी खत्म करने की उम्मीद जागी है.
इस कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) से पृथ्वी पर भोजन के उत्पादन को ऊर्जा के लिहाज से और भी कारगर बनाया जा सकता है. यह तकनीक भविष्य में मंगल ग्रह पर भी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है. करोड़ों सालों से समान्य प्रकाश संश्लेषण पौधों में पानी और कार्बनडाइऑक्साइड को सूर्य के प्रकाश की मदद से पौधों के जैविकभार (Biomass) और खाद्य में बदलते रहे हैं. लेकिन यह प्रक्रिया सूर्य से आने वाली रोशनी (Sunlight) की केवल एक प्रतिशत ही पौधों में पहुंच पाती है इस लिहाज से बहुत ही कारगर है.
रिवरसाइड की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावारे के शोधकर्ताओं ने सूर्य की रोशनी से मुक्त कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की ऐसी पद्धति विकसित की है जो जैविक प्रकाश संश्लेषण की जगह खाद्य पदार्थ (Food) तैयार कर सकती है. हाल ही में नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने दो चरणों की विद्युतउत्प्रेरक प्रक्रिया (electrocatalytic process) के जरिए कार्बन डाइऑक्साइड, बिजली और पानी की एसिटेट में बदलती है जो विनेगर का अहम घटक होता है. खाना बनाने वाले जीव इस एसिटेट का उपयोग कर अंधेरे में पनपते हैं.
इस प्रक्रिया में सौर पैनल से पैदा हुई बिजली का उपयोग विद्युतउत्प्रेरक प्रक्रिया (electrocatalytic process) को ऊर्जा देने में होता है. इस मिश्रित जैविक-अजैविक तंत्र से सूर्य की रोशनी के भोजन में बदलने की कारगरता को 18 गुना तक अधिक बढ़ाया जा सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नई पद्धति से जैविक प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की सीमाओं को तोड़ा जा सकता है. इसके लिए कार्बन डाइऑक्साइड से कच्चे पदार्थों को उपयोगी अणुओं और उत्पादों में बदलने वाले उपकरण, जिन्हें इलेक्ट्रोलाइजर (Electrolyser) कहते हैं, अनुकूलनता बढ़ाई गई.
कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) के इस तंत्र पर हुए प्रयोग दर्शाते हैं कि इससे बहुत विविध प्रकार के भोजन उत्पादक जीवों को अंधेरे में विकसित किया जा सकता है जिसमें हरी काई (Green Algae), खमीर, मशरूम पैदा करने वाले जीव तक शामिल हैं. इसमें ऊर्जा के लिहाज से शैवाल का उत्पादन परंपरागत प्रकाश संश्लेषण की तुलना में कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण चार गुना ज्यादा कारगर पाया गया. वहीं खमीर मक्के से निकली शक्कर से निकाले जाने की तुलना में 18 गुना ज्यादा कारगर पाया गया.
शोधकर्ताओं का दावा है कि वे खाद्य उत्पादन (Food Procution) करने वाले जीवों को बिना जैविक प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की मदद से विकसित करने के में सफल रहे हैं. प्रायः ऐसे जीवों को पौधों से मिलने वाली शक्कर के जरिए पैदा किया जाता है जिसमें पैट्रोलियम का उपयोग भी होता है जिसे बनने में करोड़ों साल लगते हैं. लेकिन नई तकनीक ज्यादा कारगर है. इसका उपयोग टमाटर (Tomato), धान, मटर आदि फसलों में भी किया जा सकता है जिसे खाद्य पैदावार भी बढ़ सकती है
इस शोध का सबसे बड़ा लाभ यही है कि यह कृषि (Agriculture) को सूर्य पर निर्भरता से मुक्ति दिलाने का रास्ता दिखा रही है. इससे अपार संभावनाएं पैदा हो सकती हैं जिसमें कठिन इलाकों में भोजन पैदा करने की क्षमता के साथ वैश्विक खाद्य समस्या (Food problem) का समाधान भी सुलझ सकता है. इससे खाद्य उत्पादन और वितरण संबंधी कई तरह की समस्याएं एक साथ सुलझ सकती हैं जो आज के जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के हालात में और ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती जा रही हैं.