Climate change : आर्कटिक की पिघलती बर्फ यूके और ग्रीनलैंड में आ सकती है सुनामी

आए दिन जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को लेकर हो रही भविष्यवाणियों में एक और कड़ी जुड़ गई है

Update: 2021-09-11 12:33 GMT

आए दिन जलवायु परिवर्तन (Climate Change) को लेकर हो रही भविष्यवाणियों में एक और कड़ी जुड़ गई है. हाल में हुए अध्ययन में विशेषज्ञों ने चेताया है कि अगर आर्कटिक (Arctic) की बर्फ यूं ही पिघलती रही, तो उसका एक असर यह भी होगा कि उससे यूके (UK) और ग्रीनलैंड में विनाशकारी सुनामी (Tsunami) आने का खतरा है. अध्ययन में बताया गया है कि आर्कटिक के पिघलने से यूके और ग्रीनलैंड के पास के महासागरों की पर्पटी हर साल 2.5 सेमी उठ रही है. इससे पिघलती बर्फ के दबाव से इलाके में ऐसे बदलाव लाएगी जो सुनामी आने का कारण बन सकती है.

समुद्र के अंदर आएगा भूकंप
विशेषज्ञों का कहना है कि पिघलती बर्फ ही इलाके में समुद्र तल की टेक्टोनिक प्लेट्स का इतना प्रभावित कर देगी जिससे समुद्र तल पर भूकंप आ जाएगा और उसका नतीजा एक विनाशकारी सुनामी ग्रीनलैंड और यूके पर कयामत ला देगी. आर्कटिक की बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है और विशेषज्ञ यही कह रहे हैं कि इसके नतीजे के तौर पर ग्रीनलैंड और आसपास के यूरोपीय देशों को विशाल सुनामी झेलनी पड़ सकती है.
टेक्टोनिकल प्लेट्स की अस्थिरता
यह चेतावनी लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के अर्थ साइंस के प्रोफेसर बिल मैग्वायर ने दी है. द साइंस टाइम की रिपोर्ट में मैग्वायर ने समझाया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गायब हो रही बर्फ की चादरें महासागरों की टेक्टोनिक प्लेट्स में अस्थिरता पैदा कर सकती हैं. इसकी वजह से ग्रीनलैंड के आसपास बड़े पैमाने पर भूकंप आ सकता है जो यूनाइटेड किंग्डम का भी सफाया कर सकता है.
टेक्टोनिकल प्लेट्स की वजह से सुनामी
प्रोफेसर मैग्वयार का मानना है कि संभावित विनाशकारी सुनामी की पैदाइश भूकंपीय तरंगे ही होंगी. जो टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधियों के कारण विकसित होंगी जो अब तक टनों की मात्रा की बर्फ से ढकी थीं. एक बार ये बर्फ पिघलने से हजारों सालों से दबी टेक्टोनिक प्लेट्स पिघले पानी को ऊपर धकेलेंगी.
पर्पटी में हो रहा है 2.5 सेमी तक का उठाव
ग्रीनलैंड, जो बर्फ का एक बहुत ही बड़ा भूभाग है, सबसे ज्यादा विनाशकारी सुनामी का अनुभव कर सकता है, क्योंकि उसके नीचे की पृथ्वी की पर्पटी उठ रही है. इस डराने वाला खुलासे में मैग्वायर ने यह भी बताया कि ग्रीनलैंड, आइसलैंड और स्वालबार्ड की हिमहानि को संवेदनशील जीपीएस उपकरणों ने पकड़ा है. इससे यहां हर साल महासागर की पर्पटी 2.5 सेटीमीटर तक उठ रही है.
ध्रुवीय भालू की हानि
इसके अलावा द साइंस टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 20 साले में ग्रीनलैंड में 4 ट्रिलियन टन की बर्फ पिघल चुकी है. वहीं सीबीएस न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्वे के वैज्ञानिकों का सावलबार्ड द्वीप समूह का अवलोकन बताता है कि साल 1995 से लेकर 2016 के बीच ध्रुवीय भालुओं की उनकी अनुवांशिकी विविधता में कुल जनसंख्या की 10 प्रतिशत हानि हुई है.

बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं ध्रवीय भालू
विशेषज्ञों का कहना है कि आर्कटिक की बर्फ पिघलने से उसका असर ध्रुवीय भालुओं के प्रजनन, उनकी गतिविधि और भोजन के तौर तरीकों पर पड़ा है. इससे वे अपने अस्तित्व के लिए जरूरी गतिविधियां चलाने में असमर्थ होते जा रहे हैं. इसे अलावा हिम हानि ने इन भालुओं को अपनी खुराक बदलने पर मजबूर कर दिया है. ध्रुवीय भालू अब सील खाने की जगह पक्षी और उनके अंडों से काम चला रहे हैं क्योंकि बर्फ पिघलने से वे सील का शिकार नहीं कर पा रहे हैं.
यह अध्ययन द रॉयल सोसाइटी पब्लिशिंग में प्रकाशित हुआ है. इस अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि ध्रुवीय भालू अपनी प्रजाति के अस्तित्व को बचाने के लिए अंतः प्रजनन यानि अनुवांशकीय रूप से नजदीकी साथीयों के साथ प्रजजन करने को मजबूर हो गए हैं. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस दर पर ध्रवीय भालु इस सदी के अंत तक विलुप्त ही हो जाएंगे.


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