ठंडे मौसम की वजह से हुआ था जैवविविधता का विस्फोट
46.7 करोड़ साल पहले पृथ्वी (Earth) पर अजीब से बदलाव हुए थे
46.7 करोड़ साल पहले पृथ्वी (Earth) पर अजीब से बदलाव हुए थे. इसका नतीजा यह हुआ कि पृथ्वी की महासागरों में पनपने वाले ट्राइलोबाइट्स, ब्रैकियोपोड्स और कोनोडोन्ट्स जैसे जव गायब होने लगे थे और उनकी जगह अकशेरुकी (Invertebrate) समुद्री जीवन के विस्फोट ने ले ली थी जो आज के महासागरों के जीवन की तरह था. इस घटना को ओर्डोविशन विकिरण (Ordovician radiation) कहा जाता है और इसे पृथ्वी के इतिहास में अब तक का सबसे विशाल जैवविविधता में इजाफे के तौर पर देखा जाता है. वैज्ञानिकों ने जीवाश्मों और भूगर्भीय रिकॉर्ड के अध्ययन आधार पर पाया है कि इसकी शुरुआत अंतरिक्ष के नहीं बल्कि पृथ्वी के ठंडी होती जलवायु ने की थी.
ठंडे मौसम की वजह
लेकिन आखिर इस ठंडक के आने की क्या वजह थी, यह बहस का विषय बना हुआ है. नए शोध में इसके कारण को खारिज किया गया है जो संभवतः इसकी विवादास्पद व्याख्या भी है, और वह है अंतरिक्ष की धूल. दो साल पहले हुए एक शोध के मुताबिक यह धूल मंगल और गुरू ग्रहों के बीच दो क्षुद्रग्रहों के टकराव से हुई थी. इस टकराव से पूरे सौरमंडल में ही धूल फैल गई थी. उस शोधपत्र में बताया गया था कि उसी धूल की वजह से पृथ्वी सूर्य की पर्याप्त रोशनी ना आने के कारण पृथ्वी पर ठंडक फैल गई थी.
दो घटनाओं का संयोग
नए शोधपत्र में डेनमार्क के भूगर्भविज्ञानी म्यूजियम मोर्स के जैन ऑडून रॉसमुसेन और उनके साथियों ने यह निषकर्ष निकाला है कि इसमें एक समस्या है. ओर्डोविशन विकरण उस क्षुद्रग्रह के टकराव के पहले हुआ था. यही वजह से कि ओर्डोविशन विकरण के समय हुई घटनाओं का कारण उस टकरावकी वजह से फैली धूल को माना गया था.
दोनों घटनाओं के समय में अंतर
डेनमार्क की कोपनहेगन यूनिवर्सिटी के भूगर्भ विज्ञानी और जीवाश्म विज्ञानी निकोलस थिबॉल्ट का कहना है कि उनके नतीजे दर्शाते हैं कि ठंडे मौसम का समय और जैवविविधता का बढ़ना क्षुद्रग्रह के विस्फोट या टकराव से बहुत पहले हो गया था. उनका कहना है कि इन घटनाओं के होने का सटीक अंतर करीब 6 लाख साल का था.
महासागरों की गहराइयों का अध्ययन
इस अंतर से साफ है कि चाहे इस खगोलीय घटना में कितनी भी क्षमता हो, वह इस ओर्डोविशन काल में हुई जलवायु और जैवविविधता वाले बदलाव का कारण नहीं हो सकती है. इस मामले की तह तक जाने के लिए शोधक्रताओं की टीम ने महासागरों की आंतरिक तल की ओर रुख किया और उन्होंने नॉर्वे के स्टेनसोडन के समुद्री तल से मिले जीवाश्मों का अध्ययन किया.
मौसम के ठंडे होने का समय
ये जीवाश्म चूनापत्थर की चट्टानों संरक्षित थे. शोधकर्ताओं ने पृथ्वी के महासागरों की जैवविविधता में आए बदलावों का पड़ताल की और ओर्डोविशन में आए इन बदलावों को खास तौर पर अध्ययन किया जिससे उन्हें ओर्डोविशन विकिरण की घटनाओं की कड़ियों को जोड़ने का मौका मिला. शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका अध्ययन दर्शाता है कि जलवायु का ठंडा होना 46.92 करोड़ साल पहले हुआ था.
घटनाओं की साम्यता
इसके दो लाख साल बात तापमान और ज्यादा ठंडा हो गाथा जिससे बर्फ बनाना शुरू हो गई थी जो दक्षिणी ध्रुव तक पहुंच गई थी. समद्र तल की परतों से खुलासा हुआ है कि जलवायु का ठंडे तापमान की ओर जाने के बदलाव और पृथ्वी कक्षा का असामान्यता एवं सूर्य के मुकाबले ध्रुरी के झुकाव में बदलाव के समय में साम्यता है. इस परिघटना का जानकारी वैज्ञानिकों को पहले से थी और यह नियमित रूप से होता रहता है.
विशेष जलवायु चक्र
हर बदलाव हजारों सालों में होता है जिसेस ग्लेशियर और उसके जैसी जलवायु चक्र चलते हैं जिसे मिलनकोविच चक्र कहा जाता है. इन चक्रों का संबंध आज के जलवायु परिवर्तन की दर से बिलकुल नहीं है. शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि क्षुद्रग्रहों के टकराव का पृथ्वी पर कोई असर ना हुआ हो ऐसा भी नहीं हैं. यह प्रभाव तो आज भी जारी है. इसका कारण पृथ्वी पर गिरने वाले एक तिहाई उल्कापिंड हैं.
तो क्या क्षुद्रग्रहों के टकराव का नहीं हुआ था असर
शोधकर्ताओं ने बताया कि क्षुद्रग्रह के टकराव का प्रभाव दो साल पहले शोधपत्र में बताए गए प्रभाव का उल्टा था. रासमुसेन का कहना है कि जैवविविधता में वृद्धि की शुरुआत करने के बजाए, अंतरिक्षीय धूल ने प्रजातियों के उद्भव में अस्थायी रोक लगा दी थी. प्रकाश संश्लेषण प्रक्रियाएं रुक गई थी. और जीवों के लिए रहना मुश्किल हो गया था.
नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित ताजा अध्ययन में कहा गया है कि और शोधकार्य ग्लेशियरकरण मिलनकोविच चक्र की ओर्डोविशन विकिरण में भूमिका को स्पष्ट कर सकता है, लेकिन खगोलीय धूल की भूमिका का खारिज होने इस दिशा में एक अहम कदम है.