चमगादड़ हमारे लिए खतरनाक ही नहीं जरूरी भी हैं, इन खूबियों से हो जाएगा यकीन
पूरी दुनिया में कहर मचा चुके कोरोना वायरस की उत्पत्ति के बारे में अब भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी
पूरी दुनिया में कहर मचा चुके कोरोना वायरस की उत्पत्ति के बारे में अब भी कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. कुछ वैज्ञानिकइसे चीन के वुहान वायरोलॉडी लैब में बना बताते हैं, जबकि कुछ का कहना है कि ये खतरनाक वायरस चमगादड़ों से फैला. खुद चीन का भी यही दावा है. हकीकत जो भी हो लेकिन बीते डेढ़ सालों में चमगादड़ों को लेकर भारी खौफ पैदा हो चुका है. लेकिन एक सच ये भी है कि ढेरों घातक वायरसों के होने के बाद भी चमगादड़ हमारे लिए काफी जरूरी हैं.
बीते दशकभर में चमगादड़ों को कई जानलेवा बीमारियों का जनक माना जाने लगा, जैसे इबोला, सार्स और अब कोरोना महामारी. बहुत से धर्मों में ये भी मान्यता है कि चमगादड़ों का आसपास होना अनिष्ट लेकर आता है. उनके दिखने पर लोग डर जाते हैं. ये सारे कारण मिलकर चमगादड़ को ऐसा जीव बना चुके हैं, जिसका न होना ही बेहतर होगा. हालांकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. चमगादड़ असल में जैव-विविधता में अहम भूमिका निभाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर धरती से सारे चमगादड़ खत्म हो जाए तो दुनिया पर बड़ा खतरा मंडराने लगेगा.
असल में चमगादड़ों की करीब 1400 प्रजातियां हैं, जो कई तरह के कीट-पतंगों को खाकर प्रकृति का संतुलन बनाए रखती हैं. यूएस फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस (U.S. Fish and Wildlife Service) इस बारे में बात करता है. इसकी स्टडी बताती है कि चमगादड़ों की वजह से हर साल केवल अमेरिका में ही 1 खरब से ज्यादा कीमत का अनाज नष्ट होने से बच जाता है क्योंकि ये जानवर खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े-मकोड़ों को खाता है. कुछ चमगादड़ हर घंटे 1,000 से अधिक कीड़े खा जाते हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में कितना अन्न ये जीव बचाता है.
चमगादड़ों की कुछ प्रजातियां कीड़ों की जगह, पेड़-पौधों का सेवन करती हैं. इस तरह से ये क्रॉस-पॉलिनेशन (परागण) में भी अहम भूमिका निभाते हैं. जैसे एक पौधे के बीज का एक से दूसरी जगह पर ले जाना. इससे फसल की पैदावार अपने-आप ही बेहतर हो जाती है. फल-फूल खाने वाले चमगादड़ों क्रॉस-पॉलिनेशन में 95% तक योगदान देते हैं. इसी तरह से केलों के उत्पादन में भी चमगादड़ों का बड़ा रोल है. रही है. वे फल-फूल खाकर उसके बीज फैलते हैं. इससे कटते जा रहे वनों को दोबारा लगाया जा रहा है. फ्रूट-इंटिंग चमगादड़ों की ये आदत अफ्रीकी वुडलैंड में भी काम की साबित हो चुकी है. यहां सालाना 800 हेक्टेयर वन को दोबारा हरा किया जा रहा है. सांकेतिक फोटो (pixabay)
चूहों के बाद दूसरे सबसे ज्यादा संख्या में मिलने वाला ये स्तनपायी जीव ऐसा नहीं है कि जानबूझकर इंसानी आबादी में घुसपैठ कर रहा है. ये जीव घने जंगलों या फिर गुफाओं में, जहां अंधेरा हो, वहां रहता है. लेकिन इंसानी आबादी अब हर जगह पहुंच चुकी है और इस तरह से हमने इस वन्य जीव का बसेरा छीन लिया है. यही वजह है कि चमगादड़ों से होने वाली बीमारियां हम तक पहुंच रही हैं.